अगहन माह में ठंड बढ़ने के साथ ही काशीपुराधिपति की नगरी में सात समंदर पार कर मेहमान परिंदे पहुंचने लगे हैं। साइबेरियन पक्षियों के कलरव से गंगा तट गूंज रहा है।
उत्तरवाहिनी गंगा और पथरीलें अर्धचंद्राकार घाटों पर विदेशी पक्षियों का कलरव पर्यटकों के साथ स्थानीय लोगों को भी भाने लगा है। घाट पर अलुसबह लोग नावों में सवार होकर इन पक्षियों को दाना चुगाने में खूब दिलचस्पी ले रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों में इन मेहमान पक्षियों का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है।
मानसरोवर घाट के कैलाश और पप्पू मांझी बताते हैं कि साइबेरियन पक्षी अक्टूबर से लेकर फरवरी माह तक यहां प्रवास करते हैं। काशी सहित भारत में गर्मी का एहसास होते ही वापस लौट जाते हैं। ठंड की शुरुआत होते ही साइबेरियन पक्षी काशी में आने लगते है। अक्टूबर माह के अंत से ही साइबेरियन मेहमानों की आमद शुरू हो जाती है। ये पक्षी नदियों, जंगल के निकट झीलों में ज्यादातर समय बिताते हैं।
उल्लेखनीय है कि इन पक्षियों का भोजन पर्यटकों की ओर से दिया जाने वाला सेव नमकीन होता है। जैसे पर्यटक या नाविक इन पक्षियों को आवाज देते हैं, सभी भोजन पाने के लिए चह-चहाते हुए पहुंच जाते हैं। ये पक्षी पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र होते हैं। गंगा तट पर ये पक्षी प्राकृतिक सौंदर्य में चार चांद लगा देते हैं। लगभग तीन माह इनकी अठखेलियां पर्यटक और सैलानियों को अपनी ओर काफी आकर्षित करते हैं। ये पक्षी लगभग छह हजार किलोमीटर की दूरी काशी आने के लिए तय करते हैं। इस दूरी में बर्फीले क्षेत्र से लगाते रेगिस्तान तक की बाधा भी रहती है। इसके बाद ये पक्षी गंगा घाटों के किनारे मंदिरों, ऊंचे पेड़ों पर प्रवास करते हैं।
वन विभाग के अफसरों के अनुसार इनमें साइबेरियन पक्षी साइबेरियन सी गल, बेवलर, सन बर्ड सहित अनेक पक्षियों की प्रजाति शामिल होती हैं। प्रवासी पक्षी बनारस और कैथी के आसपास बड़ी संख्या में रहते है। इन दिनों साइबेरिया सहित कुछ अन्य क्षेत्रों में बर्फ जमी होती है। जबकि बनारस का मौसम उस समय न तो बहुत ठंड होता है न बहुत गर्म। साथ ही यहां पर इन पक्षियों के खाने के लिए कई तरह के नदी में छोटी मछलिया, जीव-जंतु भी मिल जाते हैं।