दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली हिंसा मामले में साजिश रचने के आरोपित और जामिया एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष शिफा उर रहमान की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को 1 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
7 अप्रैल को कड़कड़डूमा कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी थी। रहमान के वकील अभिषेक सिंह ने कहा था कि शिफा उर रहमान के मौलिक अधिकारों का सुनियोजित तरीके से हनन किया गया है। जामिया एलुमनाई एसोसिएशन का सदस्य होना कोई अपराध नहीं है। विरोध करना और अपनी राय व्यक्त करना अपराध कैसे हो सकता है। जामिया कोआर्डिनेशन कमेटी के व्हाट्स ऐप ग्रुप का सदस्य होना भी अपराध नहीं है। सिंह ने कहा था कि विरोध करना मौलिक अधिकार है। आप विरोध करनेवाले को दंगाई की श्रेणी में क्यों रख रहे हैं। आरोपित ने प्रदर्शनकारियों को कुछ वित्तीय मदद भी की थी। क्या प्रदर्शनकारियों को वित्तीय मदद करना यूएपीए के तहत अपराध है। उन्होंने कहा था कि सवाल ये नहीं है कि नागरिकता संशोधन कानून या एनआरसी देश के हित में है या नहीं बल्कि सवाल ये है कि किसी कानून का विरोध करना अपराध कैसे हो गया।
जमानत याचिका का विरोध करते हुए दिल्ली पुलिस ने कहा था कि ये दंगे सुनियोजित साजिश का हिस्सा हैं। इस दंगे में काफी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया। जरूरी सेवाएं बाधित की गईं। इस हिंसा में पेट्रोल बम, लाठी, पत्थर इत्यादि का इस्तेमाल किया गया था। दिल्ली पुलिस ने कहा था कि यूएपीए की धारा 15(1)(ए)(i)(ii) और (iii) के तहत अपराध किए गए हैं। दिल्ली हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी। दंगे के पहले चरण में 142 लोग जख्मी हुए थे जबकि दूसरे चरण में 608 लोग।
रहमान को दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 26 अप्रैल 2020 को गिरफ्तार किया था। उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120बी, 124ए, 302, 307, प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रोपर्टी एक्ट की धारा 3 और 4 , आर्म्स एक्ट की धारा 25 और 27 के अलावा यूएपीए की धारा 13,16,17 और 18 के तहत मामला दर्ज किया गया है।