सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने 3-2 के बहुमत से ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध करार दिया है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण को वैध करार दिया जबकि चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण से असहमति जताई।
तीनों जजों ने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान की मूल भावना का उल्लंघन नहीं करता है। तीनों जजों ने संविधान के 103वें संशोधन को वैध करार दिया है। बेंच के सदस्य जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि आरक्षण अनिश्चित काल के लिए नहीं बरकरार रखा जा सकता है। वहीं जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि आरक्षण की नीति की दोबारा पड़ताल करने की जरूरत है। जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने बहुमत के फैसले से असहमति जताते हुए कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटे से एससी,एसटी और ओबीसी को बाहर करना ठीक नहीं है।
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने 27 सितंबर को सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से तत्कालीन अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा बालाजी के फैसले के बाद आई जिसमें कोर्ट ने ये कहा था कि सामान्य वर्ग के लोगों का अधिकार खत्म न हो। उन्होंने कहा था कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के मुताबिक ये सरकार की जिम्मेदारी है कि बराबरी कायम रहे और उसी की वजह से ईडब्ल्यूएस लाया गया। अटार्नी जनरल ने कहा था कि 50 फीसदी आरक्षण में कोई छेड़छाड़ नहीं है। एससी, एसटी और ओबीसी के लिए कुछ नहीं बदला है और वे लाभप्रद स्थिति में रहेंगे। ईडब्ल्यूएस को 10 फीसदी आरक्षण ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण से स्वतंत्र है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट बार-बार कह चुका है कि संसद आर्थिक आधार पर आरक्षण पर विचार करे। 50 फीसदी आरक्षण की सीमा को मौलिक ढांचा की सीमा नहीं समझना चाहिए। संविधान संशोधन की पड़ताल तभी की जानी चाहिए अगर लगता है कि इससे संविधान की मूल भावना का उल्लंघन किया गया है। मेहता ने कहा था कि संसद राष्ट्र की भावना का प्रतिनिधित्व करती है। अगर संसद संविधान में कोई प्रावधान जोड़ती है तो उसकी वैधता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
ईडब्ल्यूएस उम्मीदवारों की ओर से वरिष्ठ वकील विभा दत्त मखीजा ने कहा था कि अब ईडब्ल्यूएस उम्मीदवार पात्र हो गए हैं।
उन्होंने कहा था कि ये मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। हमें संविधान के बदलाव को देखना होगा। समय के हिसाब से समाज आगे बढ़ा है, जैसे धारा 377 और ट्रांसजेंडर्स के अधिकार इत्यादि। उन्होंने कहा था कि ईडब्ल्यूएस का अधिकार संविधान की धारा 21 से मिलता है और गरीबी एक मुख्य कारक है। तब चीफ जस्टिस ने कहा था कि इस बात का कोई अध्ययन नहीं है कि जिन परिवारों को आरक्षण नहीं मिला है वे पीढ़ी दर पीढ़ी गरीब रहे हैं। जो चीज अस्थायी है उसे स्थायी नहीं कहा जा सकता है। एससी परिवार में जन्म लेना एक कलंक की बात होती है जो पीढ़ियों तक चलती है। तब मखीजा ने कहा था कि जाति आधारित आरक्षण का आधार ही ये है कि गरीबी सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन की वजह से है। तब जस्टिस भट्ट ने कहा था कि नहीं, ये जानबूझकर नहीं दिया जाता है। तब मखीजा ने पूछा कि क्या संविधान केवल जाति के आधार पर ही आरक्षण देता है। हमें नहीं लगता कि संविधान के रचनाकारों ने ऐसा सोचा होगा।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि ये बराबरी के संवैधानिक मूल्य का उल्लंघन करता है और संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण की कभी चर्चा नहीं की गई है। वहीं ईडब्ल्यूएस के समर्थन में दलील देनेवालों के मुताबिक ये आरक्षण काफी समय से अपेक्षित था और इसका स्वागत किया जाना चाहिए।