हिंदी साहित्य जगत के गंभीर और विचारोत्तेजक आलोचनात्मक लेखन के लिए ख्यात वयोवृद्ध वरिष्ठ लेखक मैनेजर पाण्डेय का निधन हो गया। उन्होंने दिल्ली में अपने आवास पर रविवार सुबह अंतिम सांस ली। यह जानकारी वरिष्ठ साहित्यकर कौशल किशोर ने उनकी पुत्री रेखा पाण्डेय की साझा की गई सूचना के हवाले से दी।
राजकमल प्रकाशन समूह के संपादक सत्यानंद निरूपम, प्रसिद्ध लेखक ऋषिकेश सुलभ और कहानीकार सिनीवाली शर्मा आदि ने 81 वर्षीय मैनेजर पाण्डेय के निधन पर गहरी शोक संवेदना जताई है। मैनेजर पाण्डेय का जन्म 23 सितंबर, 1941 को बिहार के गोपालगंज जिले के लोहटी में हुआ था। वे हिंदी में मार्क्सवादी आलोचना के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक हैं। उनकी उच्च शिक्षा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हुई। वहां से उन्होंने एमए और पीएचडी की उपाधि प्राप्त कीं। उन्होंने बरेली कॉलेज और जोधपुर विश्वविद्यालय में अध्यापन किया। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिन्दी के प्रोफेसर और जेएनयू में भारतीय भाषा केन्द्र के अध्यक्ष भी रहे।
आलोचक मैनेजर पाण्डेय आखिर समय तक लोक जीवन से गहरे जुड़े रहे। वे गोस्वामी तुलसीदास भी प्रेरित और प्रभावित थे। तुलसीदास के ‘संग्रह-त्याग न बिनु पहिचाने’ से वे अपना आलोचनात्मक विवेक निर्मित करते हैं। हालांकि “भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य” उनकी महत्वपूर्ण पुस्तक है।
आलोचक मैनेजर ने तमाम आलोचनात्मक अनुसंधान के माध्यम से साहित्य के इतिहास लेखन में नई कड़ियों को जोड़ने का काम किया। ‘संगीत रागकल्पद्रुम’ के विभिन्न खंडो को खोज कर उनमें से मुगलकालीन शासकों की हिंदी कविताओं को प्रकाश में लाना हो या ‘लोकगीतों और गीतों में 1857’ की खोज करना, साहित्य के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ता है।
मैनेजर पाण्डेय की प्रमुख कृतियांः शब्द और कर्म, साहित्य और इतिहास-दृष्टि, भक्ति आन्दोलन और सूरदास का काव्य, सूरदास (विनिबंध), साहित्य के समाजशास्त्र की भूमिका, आलोचना की सामाजिकता, उपन्यास और लोकतंत्र, हिंदी कविता का अतीत और वर्तमान, आलोचना में सहमति-असहमति, भारतीय समाज में प्रतिरोध की परम्परा, साहित्य और दलित दृष्टि, शब्द और साधना।