।फसल जैव विविधता में ओडिशा के बाद छत्तीसगढ़ देश में दूसरे स्थान पर है। छत्तीसगढ़ समेत देश और पूरी दुनिया में पाई जाने वाली 359 फसलें ऐसी हैं, जिनकी उत्पत्ति छत्तीसगढ़ में हुई है।इसमें धान की 355, सरसों की तीन व टमाटर की एक किस्म शामिल है।इस संबंध में केंद्र सरकार के पौधा किस्म अधिकार संरक्षण प्राधिकरण ने यहां की 359 किस्म को जैव विविधता प्रमाण के लिए वास्तविक प्रजनक प्रमाण पत्र जारी किया है।
देश भर में कुल 5046 फसल प्रजातियों को प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। इसके लिए देश के कई कृषि शोध संस्थानों में इनका परीक्षण कर फसल प्रजाति की विभिन्नता, एकरूपता और गुणों के स्थिरीकरण के आधार पर वास्तविक प्रजनन की पहचान के बाद प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं।
राजधानी रायपुर स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञानी डा. दीपक शर्मा के अनुसार छत्तीसगढ़ के किसानों के 1782 फसल प्रजातियों की पहचान कर वास्तविक प्रजनक प्रमाणन के लिए भेजा गया था। इसमें से 1002 किस्म के फसल प्रजातियों का पंजीयन के बाद 359 को प्रमाण पत्र जारी किया गया है। 780 फसलों को पंजीयन नहीं किया गया है।
छत्तीसगढ़ के कृषि विज्ञानियों के अनुसार ये वे प्रजातियां है जिनके दुर्लभ होने से भारत सरकार के पौधा किस्म अधिकार संरक्षण प्राधिकरण में अधिसूचित नहीं थे। अब छत्तीसगढ़ के कृषि विज्ञानियों की आपत्ति के बाद इनमें से कई फसल प्रजातियों को प्राधिकरण की सूची में शामिल किया जा रहा है। इससे छत्तीसगढ़ से भेजी गई कई फसल प्रजातियों में और भी नाम जुड़ेंगे। इनमें अमारी भाजी, चौलाई भाजी, छत्तीसगढ़ की अन्य भाजियां, खेकसी, ककोड़ा, विंग्ड बीन, सेम, चाैधारी सेम के अलावा कई प्रकार की साग सब्जियां शामिल हैं।
भारत सरकार के पौधा किस्म प्राधिकरण के अनुसार बीजापुर के किसान लिंगोराम ने 50 फसल प्रजाति, कोण्डागांव के शिवनाथ यादव ने धरोहर समिति से 274, दंतेवाड़ा के कोसाराम ओटामी ने 30 और बस्तर के कमलकिशोर कश्यप ने 100 से अधिक फसल प्रजातियों का संरक्षण अपने स्तर पर करने का काम किया है।विश्वविद्यालय ने इन किस्मों की पहचान के बाद इन्हें वास्तविक प्रजनक किस्म मिलने पर पंजीकरण के लिए भी भेजा है।