बिहार के जाने-माने फोटो जर्नलिस्ट अजय प्रकाश दुबे का निधन हो गया है।वह लम्बे समय से कैंसर से पीड़ित थे। फोटो जर्नलिस्ट अजय प्रकाश दुबे के निधन पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शोक प्रकट किया है।
सीएम नीतीश ने अपने शोक संदेश में कहा कि स्व. अजय प्रकाश दुबे समर्पित पत्रकार थे और अपने दायित्वों का बखूबी निर्वाह किया करते थे। वे लम्बे समय तक अंग्रेजी दैनिक अखबार ‘हिन्दुस्तान टाइम्स से जुड़े रहे थे। उनके निधन से फोटो जर्नलिज्म को गहरा आघात पहुंचा है। मुख्यमंत्री ने दिवंगत आत्मा की चिर शांति तथा उनके परिजनों को दुख की इस घड़ी में धैर्य धारण करने की शक्ति प्रदान करने की ईश्वर से प्रार्थना की है।
एपी दुबे के जानने वाले पत्रकार संतोष सिंह बताते हैं कि एपी दुबे के पिता आरएन दुबे नहीं चाहते थे कि उनका बेटा फोटोग्राफर बने। ‘आरएनडी’ उन दिनों दिल्ली से प्रकाशित दी हिंदुस्तान टाईम्स के सम्पादकीय विभाग में कार्यरत थे। ‘आरएनडी’ और उनकी पत्नी, यानी ‘एपी’ की मां कमला देवी की इच्छा थी कि उनका बेटा बेहतरीन अधिकारी बने। उन दिनों वे दिल्ली के यमुना पार लक्ष्मी नगर इलाके की तंग गलियों में रहते थे लेकिन समय कुछ और चाह रहा था। उन दिनों दी हिंदुस्तान टाईम्स, दिल्ली संस्करण के फोटो विभाग के प्रमुख थे त्याग राजन साहब। त्याग राजन साहब ‘एपी’ में वे सभी गुण देख रहे थे, जो किसी भी पत्र-पत्रिका के फोटोग्राफर में चाहिए होता है। ‘एपी’ की अंग्रेजी भी ‘ठीक-ठाक’ थी उन दिनों। आम तौर पर भारत में अपवाद छोड़कर, फोटोग्राफर की अंग्रेजी भाषा बहुत बेहतर नहीं होती और यह उस समय सामने दिखने लगता है जब वह संध्या काल में सम्पादकीय विभाग में फोटो प्रस्तुत करता है और ‘कैप्शन’ लिखने के लिए अपनी निगाहों को इधर-उधर करने लगता है कि कौन खाली है, जो कैप्शन लिख दे।
त्याग राजन के पहल करने पर ‘एपी’ ने ‘पाना इण्डिया’ के लिए कार्य शुरू कर दिया। ‘पाना इण्डिया’ के बाद त्याग राजन साहब उन्हें कस्तूरबा गाँधी मार्ग स्थित हिंदुस्तान टाइम्स में ले आये और अरुण जेटली के साथ ‘एपी’ को पटना संस्करण के लिए भेज दिए। वह साल 1986 था। उन दिनों पटना की सड़कों पर विक्रम कुमार, अरुण जेटली, एपी डूबे, अशोक कर्ण, कृष्ण मुरारी किशन, कृष्ण मोहन शर्मा, दीपक कुमार, राजीव, पीके डे, ललन कुमार आदि फोटोग्राफरों की साईकिल, स्कूटर, मोटर साईकिल दौड़ा करती थी। एपी के पास भी आसमानी रंग का एक स्कूटर था और वह टेढ़ा होकर बाएं हाथ झुककर बैठा करता था और कंधे पर ब्राउन रंग का वाटर-प्रूफ कैमरा बैग लटका होता था। साथ ही, आखों पर चश्मा।
उन दिनों की बहुत सारी कहानियां हैं ‘एपी’ से सम्बंधित लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कहानी दो दुबे और एक मुर्गा का टांग वाला फोटो-कहानी है जो न केवल पटना की सड़कों पर, बिहार के पाठकों के घरों में, बल्कि सम्पूर्ण देश में चर्चा का विषय रहा जब वह प्रथम पृष्ठ पर चार कॉलम में सन्डे मील के रूप में प्रकाशित हुआ।
उन दिनों तस्वीरों के माध्यम से हिंदुस्तान टाइम्स में ऐसी अनेकानेक कहानियां प्रकाशित हुई थी जो अख़बार के मालिक, सम्पादकीय विभाग, संवाददाता और प्रदेश के पत्र सूचना कार्यालय के अधिकारियों में छत्तीस का आंकड़ा बन गया था। फिर भी अधिकारियों में, चाहे खाकी वर्दी वाले हों या सफ़ेदपोश अधिकारी, सभी में ‘चारित्रिक मोल’ था। आज वह जमाना चला गया। यह मैं नहीं, ‘एपी’ कहे थे। ‘एपी’ यह भी कहे थे कि बिंदेश्वरी दुबे वाली तस्वीर के प्रकाशन के बाद भले तत्कालीन डीजीपी ज्योति सिन्हा प्रशासनिक रूप से अपना डंडा चला रहे थे, लेकिन ‘संबंधों” में कभी भी केश के बराबर भी ‘बदलाब’ नहीं आया था। उस समय क्या मुख्यमंत्री, क्या मंत्री, क्या अधिकारी – सभी पत्रकारों को, छायाकारों को ‘उनके खिलाफ लिखने अथवा तस्वीर छपने के बाद भी’, मधुर सम्बन्ध रहते थे। आज जो दृश्य है प्रदेश की पत्रकारिता में वह कष्टदायक है।आपको नमन। ईश्वर से प्रार्थना है कि आप की आत्मा को शांति दें, साथ ही, आपके परिवार और परिजनों को इस क्षण सहनशक्ति दें।