श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह का आरंभ छोटी हल्द्वानी, कालाढूंगी में हुआ। शनिवार सुबह ही बड़ी संख्या में श्रद्धालु व आयोजक पूजा स्थल पर एकत्रित हुए हो गए थे। रेवा हरबोला के तत्वावधान में मंगल कलश यात्रा निकाला गया।
आज छोटी हल्द्वानी, कालाढूंगी में मंगल कलश यात्रा का भव्य शुभारंभ मुख्य यजमान भानु प्रकाश हरबोला व व्यास आचार्य नीरज त्रिपाठी द्वारा किया गया। कलश यात्रा में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे बच्चे, युवती व महिलाओं ने हिस्सा लिया। सुबह के समय कलश के साथ महिला पुरुषों ने बाजे-गाजे के साथ कलश यात्रा निकाली। कलश यात्रा में पीले वस्त्र धारण की हुई कन्याएं व महिलाएं सिर पर कलश धारण किए हुए मंगलगीत गाते हुए चल रही थीं। यात्रा विभिन्न मार्गों से निकाली गयी लोगों ने जगह- जगह पर स्वागत किया व पूरी आस्था और जयकारे के साथ पुष्प वर्षा कर स्वागत किया। कलश यात्रा में शामिल श्रद्धालुओं के जयकारे से वातावरण गुंजायमान हो गया।
राधे-राधे के उद्घोष से माहौल भक्ति के रस में डूब गया-
इसके बाद मंत्रोच्चारण के बीच पुरोहित आचार्य श्री कमल पाण्डे, नितांशु उप्रेती, पवन उपाध्याय व सुमन तिवारी द्वारा कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत की तथा आचार्यों द्वारा विधिविधान पूर्वक पूजन संपन्न की गई।उनके द्वारा भक्तों को भी अधिक से अधिक संख्या में उपस्थिति होने हेतु आहवान किया गया।
प्रथम दिवस की कथा में कथा व्यास आचार्य नीरज त्रिपाठी जी ने श्रीमद् भागवत कथा का महत्व बताते हुए कहा कि भागवत महापुराण को वेदों का सार कहा जाता है। आचार्य त्रिपाठी जी ने श्रीमद्भागवत महापुराण की व्याख्या करते हुए बताया कि श्रीमद्भागवत अर्थात जो श्री से युक्त है अर्थात चैतन्य,सौंदर्य,ऐश्वर्य यानी वह कथा जो हमारे जड़वत जीवन में चैतन्यता का संचार करती है जो हमारे जीवन को सुंदर बनाती है वह श्रीमद् भागवत कथा है। उन्होंने बताया कि यह ऐसीअमृत कथा है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। इसलिए परीक्षित ने स्वर्ग अमृत की बजाय कथामृत की ही मांग की।
कथा के दौरान उन्होंने वृंदावन का अर्थ बताते हुए कहा कि वृंदावन इंसान का मन है। इसलिए वृंदावन में जाकर भक्ति देवी तो तरुण ही हो गई पर उसके पुत्र ज्ञान और वैराग्य अचेत और निर्बल पड़े रहते हैं।उनमें जीवंतता और चैतन्यता का संचार करने हेतु नारद जी ने भागवत कथा का ही अनुष्ठान किया। इसको श्रवण कर वह पुनः जीवन्त और सफल हुए थे। व्यास जी कहते हैं कि भागवत कथा एक कल्पवृक्ष की भांति है, जो जिस भाव से कथा श्रवण करता है वह उसे मनोवांछित फल देती है। अन्त में भक्तों ने आशीर्वाद प्राप्त किया। कथा का समापन प्रभु की मंगल आरती से किया गया।