छड़ी यात्रा का उद्देश्य विधर्मियों को समाप्त कर सनातन धर्म का वर्चस्व कायम करना : महंत प्रेम महाराज
श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा, हरिद्वार की पवित्र छड़ी यात्रा-2022 का सोमवार को ऋषिकेश स्थित मायाकुंड, तारा माता मंदिर में पहुंचने पर संतों ने पुष्प वर्षा कर भव्य स्वागत किया।
छड़ी यात्रा के प्रमुख जूना अखाड़ा के सभापति महंत प्रेम महाराज ने बताया कि यह यात्रा 24 सितंबर को माया मंदिर से छड़ी के पूजन के उपरांत प्रारंभ हुई थी, जो हरिद्वार से बागेश्वर सहित कुमाऊं मंडल के तमाम शहरों से होती हुई आज ऋषिकेश तारा माता मंदिर पहुंची है। यहां से यह त्रिवेणी घाट ,दुर्गा मंदिर, दत्तात्रेय मंदिर, मायाकुंड तारा माता मंदिर व त्रिवेणी घाट पर पहुंची और जहां पर गंगा पूजन किया गया।
यहां पर तारा माता मंदिर के महंत संध्या गिरी, श्री राम गिरी, खुशी गिरी, महेश गिरी, मिंटू त्यागी, नीतू त्यागी ,गंभीर सिंह मेवाड़ ने पुष्प वर्षा का भव्य स्वागत किया। प्रेम महाराज ने बताया कि श्री पंच दशनाम जूना अखाड़े द्वारा संचालित पौराणिक पावन पवित्र छड़ी यात्रा आद्य जगतगुरु शंकराचार्य ने लगभग ढाई हजार वर्ष पहले अपनी दिग्विजय यात्रा, जिसमें उन्होंने सनातन धर्म की स्थापना के लिए पूरे भारतवर्ष में चार दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी,का ही रूप है।
तब जगद्गुरु शंकराचार्य ने पवित्र धर्म दंड अथवा धर्म ध्वजा जो छड़ी का ही प्रतीक था ,के माध्यम से विधर्मियों को समाप्त कर सनातन धर्म का वर्चस्व कायम किया था। तभी से उनके बताए गए मार्ग पर चलते हुए साधु सन्यासियों और अखाड़ों द्वारा उत्तराखंड, हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और दक्षिणी प्रदेशों में पवित्र छड़ी यात्राएं निकाली जाती हैं। इसमें अमरनाथ, मणिमहेश, कैलाश मानसरोवर, उत्तराखंड के चारों धाम सहित पौराणिक स्थलों की यात्रा आज भी संचालित की जा रही हैं।
-मुगल शासकों ने इन यात्राओं को रोकने की कोशिश की थी-
इन यात्राओं को समय-समय पर मुगल शासकों ने रोकने का प्रयास भी किया था। अलाउद्दीन खिलजी और मोहम्मद तुगलक शाह ने हिन्दू जनता पर अत्याचार किए ,जिससे त्रस्त होकर शंकराचार्य द्वारा स्थापित दस नाम परंपरा के सन्यासियों ने प्रयागराज कुंभ के दौरान के अखाड़ों का गठन किया था। इसी क्रम में उत्तराखंड के कर्णप्रयाग में जूना अखाड़ा की स्थापना की गई थी। इसके स्थापना काल से जूना अखाड़ा के नागा सन्यासी मुगलों के अत्याचार से निपटने के लिए सैनिक गतिविधियों, धार्मिक यात्रा आयोजित कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्राचीन काल में यह परंपरा थी कि कुंभ पर्व के समापन के पश्चात अखाड़ा पौराणिक पावन छड़ी यात्रा निकालेंगे और कैलाश मानसरोवर सहित उत्तराखंड के चारों धामों एवं अन्य पौराणिक मंदिरोंं और स्थानों का जीर्णोद्धार भी करेंगे। इसी उद्देश्य को लेकर यह यात्रा निकाली जा रही है।-
-24 सितंबर को माया मंदिर, हरिद्वार से शुरू हुई इस यात्रा का समापन यहीं पर आकर होगा-
इसका समापन आगामी 01 नवंबर को हरिद्वार में माया देवी मंदिर में किया जाएगा। छड़ी यात्रा में प्रमुख रूप से छड़ी के प्रमुख महंत जूना अखाड़ा के सभापति श्री महंत प्रेम महाराज ,श्री महंत पुष्कर गिरी, छवि महल, शिवदत्त गिरी ,वशिष्ठ गिरी, तूफान गिरी, महंत पुष्कर गिरी ,महंत शैलेंद्र गिरी ,महंत संध्या गिरी ,जगतगुरु शंकराचार्य ,श्री पीठाधीश्वर नरेंद्र नंद सरस्वती, सहित काफी संख्या में संत उपस्थित हैं। चौकी ऋषिकेश से प्रारंभ होकर देहरादून मंसूरी लाखामंडल होते हुए बड़कोट में रात्रि विश्राम करेगी, जिसके बाद वह पूरे उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों में पहुंचेगी जहां उनका भव्य स्वागत किया जाएगा।