यूपी में कांग्रेस की नई टीम की संरचना उसके पुराने जातिगत समीकरणों की ओर लौटने की छटपटाहट दिखा रही है। पार्टी अब लोकसभा चुनाव के लिए खुद को खड़ा करने की जुगत में है और दलित, मुस्लिम व ब्राह्मण चेहरों को तरजीह देकर यही संदेश देने का प्रयास किया है। पार्टी अपनी रणनीति में कितना सफल होती है, यह तो नतीजों पर निर्भर करेगा। लेकिन, 80 के दशक तक इन्हीं जातिगत आधारों की बदौलत कांग्रेस सत्ता पाती रही थी।
बसपा के संगठनकर्ता के रूप में बृजलाल खाबरी ने दलितों के बीच अच्छी पैठ बनाई थी। कांग्रेस ने 90 के दशक के बाद किसी दलित नेता को प्रदेश का सर्वोच्च पद देकर स्पष्ट संदेश देने का काम किया है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यूपी की मौजूदा परिस्थितियों में कांग्रेस को अपना जनाधार बढ़ाने के लिए हर जिले व मंडल में स्थानीय चेहरों को प्रभावी भूमिका में लाना होगा। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो कुछ चेहरों को आगे करने भर से इस चुनौती पर पार पाना मुश्किल होगा।
प्रांतीय अध्यक्षों में दो ब्राह्मण, एक मुस्लिम, एक भूमिहार और एक-एक कुर्मी व यादव बिरादरी से हैं। 80 के दशक तक के चुनावों में ब्राह्मण, मुस्लिम और दलित मतदाताओं ने कांग्रेस का साथ निभाया। बसपा के उभार ने दलितों को उससे दूर किया। वहीं, अयोध्या मंदिर मुद्दे के उभार के साथ ही मुसलमान भी कांग्रेस से छिटकते चले गए। ऐसे में ब्राह्मणों के सामने भी अलग राह पकड़ने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा। नए प्रांतीय अध्यक्षों का मनोनयन पुराने समीकरणों को साधने की कवायद ही कही जाएगी।
पार्टी सूत्रों का कहना है कि प्रांतीय अध्यक्षों के कार्यक्षेत्र के बंटवारे में भी जातिगत आधार का पूरा ध्यान रखा जाएगा। पूर्वांचल में वीरेंद्र चौधरी व अजय राय, अवध में नकुल दुबे, ब्रज में अनिल यादव (इटावा) और बुंदेलखंड में योगेश दीक्षित को जिम्मेदारी दी जाएगी। वीरेंद्र जाति से कुर्मी हैं। इसी तरह से अजय राय भूमिहार और नकुल दुबे ब्राह्मण हैं। नसीमुद्दीन सिद्दीकी को अल्पसंख्यकों के बीच जनाधार बढ़ाने में लगाया जाएगा। पार्टी हाईकमान ने प्रदेश को छह जोन में बांटकर उनकी जिम्मेदारी राष्ट्रीय सचिवों को पहले ही दे दी है। बृजलाल खाबरी, नकुल दुबे, अजय राय, नसीमुद्दीन और वीरेंद्र चौधरी के पास चुनावी राजनीति का लंबा अनुभव है। योगेश दीक्षित और अनिल यादव के साथ एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस की मजबूत सांगठनिक पृष्ठभूमि है।
…तो पहले से तय थी टीम
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो रहा है। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि क्या प्रदेश अध्यक्ष व प्रांतीय अध्यक्षों की घोषणा का यह उचित समय है। नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव के बाद इनके नामों की घोषणा होती तो इसे नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का फैसला माना जाता। हालांकि, कांग्रेस के नेता अमरनाथ अग्रवाल का कहना है कि ये नाम बहुत पहले तय हो गए थे। लंबे समय से घोषणा का इंतजार था, जो अब पूरा हो गया। इससे कांग्रेस के कार्यकर्ताओं का उत्साह काफी बढ़ा है।