जनपद में रामलीला के दौरान लक्ष्मण-परशुराम संवाद का मंचन हुआ। इस दौरान अपने युग के दो विश्व विख्यात ब्राह्मणों को लीला के जरिए लज्जित होने का सजीव मंचन दिखाया गया। दोनों के बीच पड़कर राम ने परशुराम का चित्त शांत कराया।
ऐतिहासिक रामलीला में बीती रात त्रैलोक्य विजेता रावण और प्रलयंकारी परशुराम को भरी सभा में लज्जित होना पड़ा। हालांकि महर्षि परशुराम को भले कोई समझाने वाला नहीं था, किन्तु रावण को उसकी पटरानी मंदोदरी ने बहुत समझाया, जब वह धनुष यज्ञ के आयोजन के लिए लंका से चलने के लिए तैयार हुआ। जिसका उल्लेख रामचरित मानस में इस प्रकार मिलता है कि मंदोदरि बहुविधि समुझाई, अभिमानी रावण न सोहाई।। अर्थात अहंकार से ओतप्रोत रावण अपनी पटरानी की बात को नहीं माना और आखिर धनुष यज्ञ लीला में आकर अपमान के घूंट पीकर उल्टे पैरों लौट गया। यहां रामलीला मेला पठकाना में वृंदावन की पार्टी द्वारा धनुष यज्ञ, रावण-बाणासुर संवाद व परशुराम-लक्ष्मण संवाद की लीला का मनमोहक मंचन हुआ, जिसे देख उपस्थित दर्शकगण भावविभोर हो गए। राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह हेतु स्वयंवर रचा, जिसमें पृथ्वी लोक के बड़े-बड़े दिग्गज राजा-महाराजा न्योते में आए। देखते ही देखते आयोजक राजा जनक की घोषणा पर बड़े-बड़े वीर बाणासुर रावण आदि राजा अपनी-अपनी बाहें फड़काने लगे और अपनी अपनी मूंछों पर ताव देने लगे। उन्हें देखकर ऐसा परिलक्षित हो रहा था कि जैसे उनके सामने स्वयंवर में रखा शिव धनुष क्या चीज है। जब वह पेड़ उखाड़ कर आसमान में घुमाकर फेंक देने वाले और पहाड़ को पकड़कर मुट्ठी में मसल देने वाले विश्व विख्यात या फिर विश्वविजेता योद्धा हैं।
सभा मध्य उपस्थित एक से बड़कर एक दिग्गज राजा महाराजा बार-बार ईर्ष्या, द्वेषवश लंका के राजा रावण को देखकर भयाक्रांत हो रहे थे। सभा मध्य उपस्थित राजा-महाराजा धनुष उठाने के लिए बढ़े, लेकिन कोई भी धनुष तक पहुंच पाता कि उससे पहले रावण ने उन सबको डपट दिया। स्वयं अहंकार से आल्हादित होकर वह धनुष उठाने के लिए आगे बढ़ गया। काफी जोर आजमाइश के बाद भी जब वह धनुष को हिला तक नहीं सका तो भरी सभा में लज्जित होकर लौट गया। उसके जाने के बाद सभी उपस्थित राजा-महाराजा ने बारी-बारी से अपनेे-अपने बाजुओं की जोर आजमाइश की, किन्तु विफल रहे। यद्यपि अयोध्या के राजकुमार दशरथ नंदन राम सहित लक्ष्मण यथास्थान मुनि विश्वामित्र के साथ शान्त चित्त आसीन थे। अंततः राम ने मुनि विश्वामित्र की आज्ञा पाकर शिव धनुष को प्रणाम किया और उसे उठा कर जैसे ही प्रत्यंचा चढ़ाई की धनुष टूट गया। शिव धनुष के टूटते ही महान शिव भक्त विश्व विख्यात परशुराम बड़े वेग से मौके पर आ धमके, धरती हिलने लगी और आसमान कांपने लगा। राजा गण थरथराने एवं खिसकने लगे, तभी टूटे हुए धनुष को देखते ही परशुराम अत्याधिक क्रोधातुर हुए। मौके पर अत्यंत तीक्ष्ण परशुराम-लक्ष्मण संवाद हुआ किन्तु राम की वाकपटुता के कारण जहां भगवान परशुराम शान्त चित्त हो गए, वहीं सीता विवाहोत्सव सकुशल सम्पन्न हुआ।
रामलीला में काफी सक्रिय भूमिका निभाने के लिए मेला अध्यक्ष संजय मिश्रा, महामंत्री मधुप मिश्रा, मन्त्री ऋषि मिश्रा, आशीष मोहन तिवारी राजू और पुष्पेन्द्र मिश्रा सहित समिति एवं अन्य सहयोगी रामभक्तों की रह-रह कर सराहना हो रही है। उपरोक्त जानकारी मेला मीडिया प्रभारी ओमदेव दीक्षित द्वारा मंगलवार को दी गई।