श्रद्धालु नवरात्र भर प्रतिदिन 20 घंटे मां विंध्यवासिनी का कर सकेंगे दर्शन
– नवरात्र भर नहीं लगेगा शयन, आरती के समय बंद रहेगा मंदिर का कपाट
शारदीय नवरात्र मेला प्रारंभ होने के साथ सोमवार को मां विंध्यवासिनी के साथ मंदिर का भी अद्भुत व अलौकिक श्रृंगार किया गया। विंध्यवासिनी मंदिर को दुल्हन की तरह सजाया गया तो वहीं बिजली की चकाचौंध से मंदिर को नया रुप दिया गया है। नवरात्र भर प्रतिदिन दोपहर एक से डेढ़ बजे तक व रात 12 से भोर चार बजे तक लगने वाला शयन नहीं लगेगा। इससे नवरात्र के समय श्रद्धालु प्रतिदिन 20 घंटे मां विंध्यवासिनी का दर्शन-पूजन कर सकेंगे। आरती के समय श्रद्धालु मां विंध्यवासिनी का दर्शन नहीं कर सकेंगे। इस समय मां की आरती व श्रृंगार होने के कारण मंदिर का कपाट बंद रहता है।
मां विंध्यवासिनी के आंगन तक पहुंचने के लिए चारों तरफ से सीढ़ियां बनी है। पश्चिम दिशा में गणेश द्वार से प्रवेश करने वाले भक्त मां की अद्भुत छवि का दर्शन कर दक्षिण द्वार से निकल आते हैं। जबकि पूर्व में स्थित द्वार से प्रवेश करने से भक्त मां का दर्शन कर दूसरे पूर्वी द्वार से बाहर निकलते हैं। किसी वीआईपी के आगमन पर उन्हें आम भक्तों को रोककर गणेश द्वार से गर्भगृह में प्रवेश कराया जाता है। नवरात्र आरंभ होने के साथ विंध्यधाम का अद्भुत नजारा देखने को मिला। अब नवरात्र भर विंध्यधाम के साथ विंध्य पर्वत भक्तों से गुलजार रहेगा।
बदल गया है धाम का रास्ता
मां विंध्यवासिनी धाम आने वाले आठ रास्तों में से चार का नजारा एकदम बदल चुका है। चार छह फीट की गलियों की जगह अब करीब 35 फीट चौड़ा रास्ता मिलेगा। यह संभव हो पाया है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ड्रीम प्रोजेक्ट विंध्य कारिडोर से। अब श्रद्धालु माता के धाम से ही पतित पावनी मां गंगा का भी दर्शन कर पाएंगे।
हर कोण से मिलेगा पताका दर्शन
मां विंध्यवासिनी के दरबार में अब तक पताका दर्शन से वंचित भक्तों को इस बार धाम के नीचे से ही यानी हर कोण से पताका दर्शन मिलेगा।
चारों आरती में बदलता है मां का स्वरूप
मां विंध्यवासिनी अपने भक्तों के कल्याण के लिए प्रत्येक दिन चार रूपों में दर्शन देती हैं। जीवन के चार पुरुषार्थ अर्थ, धर्म, काम एवं मोक्ष प्रदान करने वाली आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी की चार स्वरूपों में चार (अवस्था) आरती होती है। प्रत्येक अवस्था में मां का स्वरूप बदल जाता है।
प्रधान श्रृंगारिया विश्वमोहन उर्फ शिवजी मिश्र ने बताया कि भक्तों का कल्याण करने वाली मां विंध्यवासिनी विभिन्न अवस्था में दर्शन देकर अपने भक्तों की सारी मनोकामना अवश्य पूरी करती हैं। मां विंध्यवासिनी की आरती के मात्र दर्शन कर लेने से हजारों अश्वमेघ यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
नवरात्र भर मां विंध्यवासिनी की साधना करते हैं तंत्र साधक
सिद्धपीठ विंध्याचल में तंत्र-मंत्र के साधक नवरात्र भर रुककर आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी की साधना करते हैं। देश के कोने-कोने से भक्त मन्नत लेकर विंध्यधाम आते हैं और मां के दरबार से उन्हें निराश नहीं होना पड़ता। अत्यधिक भीड़ के बीच स्थानीय भक्त मां विंध्यवासिनी के ठीक सामने स्थित झांकी से ही मां का दर्शन कर विभोर हो जाते हैं।
बाजार में उमड़ी भीड़, व्रत सामग्री महंगी
महिलाओं ने नवरात्र की तैयारी के लिए पूजन सामग्री, नारियल, चुनरी, मिष्ठान, कलश, फल आदि की खरीददारी की। वहीं सिंगाड़े का आटा, साबुदाना की भी बिक्री हुई। नवरात्र की खरीदारी को लेकर बाजार भी खिल उठा। बाजार में भीड़ तो दिखी, लेकिन महंगाई के चलते जरुरत के हिसाब से ही खरीदारी हुई।
मां विंध्यवासिनी की महत्ता
हजारों मील का सफर करने वाली पतित पावनी गंगा धरती पर आकर आदिशक्ति मां विंध्यवासिनी का पांव पखार कर त्रिलोक न्यारी शिवधाम काशी में प्रवेश करती हैं। हजारों मील लंबे विंध्य पर्वत व गंगा नदी का मिलन मां विंध्यवासिनी धाम विंध्याचल में ही होता है। धाम से आगे जाकर गंगा उत्तर वाहिनी जाती है। जबकि विंध्य पर्वत दक्षिण दिशा की ओर मुड़ जाता है। अनादिकाल से सिद्धपीठ विंध्याचल धाम ऋषि मुनियों की तपस्थली रहा है। माता के धाम में त्रिकोण पथ पर संत देवरहा बाबा, नीम करौरी बाबा, गीता स्वामी, माता आनंदमयी, बाबा नरसिंह, अवधूत भगवान राम, पगला बाबा, बंगाली माता आदि अनेक सिद्ध साधकों की तपस्थली है। इनके आश्रम में आज भी भक्तों का तांता लगा रहता है। मां विंध्यवासिनी लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं। जब भक्त करुणामयी मां विंध्यवासिनी का दर्शन कर निकलते हैं तो मंदिर से कुछ दूर कालीखोह में विराजमान मां काली के दर्शन मिलते हैं। विंध्य पर्वत पर निवास करने वाली मां अष्टभुजा ज्ञान की देवी सरस्वती के रूप में भक्तों को दर्शन देती हैं। माता के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए पहुंचे भक्त माला-फूल, नारियल व चुनरी के साथ ही प्रसाद अर्पण कर मत्था टेकते हैं।
आरती का समय
– सुबह तीन से चार बजे तक मंगला आरती।
– दोपहर 12 से एक बजे तक मध्याह्न आरती।
– शाम सात से आठ बजे तक सांध्य आरती।
– रात्रि साढ़े नौ से साढ़े दस बजे तक राजश्री आरती।