प्रतिबंधित संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) का नाम अक्सर देश विरोधी गतिविधियों में आता रहा है। दिल्ली दंगों और सीएए.एनआरसी के विरोध के समय से ही संगठन सुरक्षा एजेंसियों (एनआईए) के रडार पर रही। देश में आतंकवादी हमले कराने, टेरर फंडिंग जैसे गंभीर आरोपों से घिरे संगठन के पदाधिकारी समय समय पर विवादित बयान देकर देश और समाज के लिए समस्या खड़ी करते रहे हैं। वाराणसी भी इसका गवाह है।
बीते 12 सितम्बर को ज्ञानवापी.श्रृंगार गौरी केस में अदालत ने फैसला दिया था कि केस सुनवाई योग्य है। तब न्यायालय के फैसले पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया के चेयरमैन ओएमए सलाम ने तुरन्त बयान जारी किया था। सलाम ने कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर रोजाना पूजा के लिए दी गई हिंदू श्रद्धालुओं की याचिका को बरकरार रखने के वाराणसी के जिला जज के फैसले से अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारों पर फासीवादी हमलों को और ज्यादा मजबूती मिलेगी। हम हाईकोर्ट में इस आदेश को चैलेंज करने के मसाजिद कमेटी के फैसले के साथ खड़े हैं।
ओएमए सलाम के इस बयान को शहर के अल्पसंख्यक समाज ने खास तवज्जों नही दिया था। लेकिन बयान को लेकर जिला प्रशासन ने संवेदनशील इलाकों में चौकसी बढ़ा दिया था। जुमे की नमाज और न्यायालय के फैसले के बाद मुस्लिम धर्मगुरूओं के साथ बैठकें भी शुरू कर दीं । संवाद कायम रख पुलिस कमिश्नर के साथ पुलिस अफसरों ने लोगों का भरोसा भी जीता। इसके पहले वर्ष 2019 दिसंबर में सीएए. एनआरसी के विरोध मामले में वाराणसी में हुए प्रदर्शन में पीएफआई की ओर से फंडिंग की बात सामने आई थी।
आज देशभर में पीएफआई के कई केंद्रों पर छापेमारी से संगठन फिर सुर्खियों में है। गौरतलब हो कि केरल की पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया का गठन अल्पसंख्यकों और पिछड़ों की आवाज उठाने के नाम पर किया गया था। संगठन का फैलाव 16 राज्यों में है और दर्जनों छोट़े बड़े मुस्लिम संगठन भी इससे जुड़े हैं। तालिबान और अल.कायदा जैसे आतंकवादी संगठनों के साथ संबंध होने के आरोप भी पीएफआई पर लगते रहे हैं।