उत्तराखंड की तीर्थनगरी हरिद्वार स्थित नारायणी शिला मंदिर पितरों को मोक्ष मिलने का तीर्थ स्थल है। ऐसे ही दो और तीर्थ स्थल हैं। इनमें से दूसरा राज्य के बद्रीधाम में ब्रह्म कपाली (ब्रह्म कपाल) और तीसरा बिहार राज्य में गया तीर्थ स्थल है, जहां पर लोग अपने पितरों की शांति, मोक्ष, श्राद्ध,तर्पण और नारायणबलि करने को पूरी श्रद्धा के साथ पहुंचते हैं।
राज्य में पितरों की मुक्ति का प्रमुख स्थान हरिद्वार स्थित नारायणी शिला मंदिर में पितृ पक्ष के दौरान देश के कोने-कोने से हर रोज हजारों लोग अपने पितरों की शांति के लिए श्राद्ध, तर्पण और नारायणबलि करने पहुंचते हैं। यही नहीं यहां दुनिया भर के देशों में बसे प्रवासी भारतीय भी अपने पितरों की शांति और श्राद्ध को यहां आते हैं।
पौराणिक मान्यता है कि हरिद्वार स्थित नारायणी शिला मंदिर पर तर्पण करने से पितरों को मोक्ष और पुर सुकून की प्राप्ति होती है। पितृ पक्ष में यहां श्राद्ध और तर्पण करने से न केवल पितृ प्रसन्न होते हैं बल्कि उनकी बहुत कृपा प्राप्त होती है।
पितृ पक्ष में की जाने वाली श्राद्ध पूजा के लिए बिहार के गया मंदिर के बाद हरिद्वार के नारायणी शिला मंदिर का विशेष स्थान है। इसके बाद अंतिम श्राद्ध और तर्पण बद्रीनाथ स्थित ब्रह्म कपाली में करने का विधान है, जहां पिण्डदान करने से ब्रह्म हत्या का पाप भी दूर हो जाता है। पितृ दोष से पीड़ित लोग यहां पहुंचकर अपने पितरों के लिए दान और जप करते हैं।
मान्यता है कि जिनकी अकाल मृत्यु हो जाती है और वह प्रेत-आत्मा बनकर अगर बार-बार किसी को परेशान करते हैं तो उनके वंशज उनके नाम से यहां पर नारायण बलि करते हैं। साथ ही कई लोग अपने पितरों के आत्मा की शांति के लिए यहां पर एक जगह लेकर उनका छोटा सा टीला बनाकर आवास स्थापित भी करते हैं, जिससे उनको प्रेत योनि से मुक्ति मिल जाती है। यहां मंदिर के आसपास हजारों छोटे-बड़े घरनुमा बनाए गए टीले हैं।
इस बारे में नारायणी शिला मंदिर के महंत पंडित मनोज कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि स्कंद पुराण के अनुसार, नारद जी की प्रेरणा पाकर एक बार गयासुर नामक राक्षस भगवान नारायण से मिलने बद्रीधाम पहुंचा, लेकिन उसे धाम का द्वार बंद मिला। इस पर गयासुर वहां रखे भगवान नारायण के कमलासन रूपी श्री विग्रह को उठाकर ले जाने लगा और गयासुर ने श्रीनारायण को युद्ध के लिए ललकारा।
इस पर श्रीनारायण ने गदा से प्रहार किया तो गयासुर ने कमलासन आगे कर दिया। इससे कमलासन का एक भाग टूटकर वहीं गिर गया, जिसे आज बद्रीधाम में ब्रह्म कपाल के नाम से जाना जाता है जबकि इसका मध्य भाग टूटकर हरिद्वार और तीसरा भाग बिहार के गया नामक स्थान में गिरा। इससे यह तीनों स्थल पूर्वजों के लिए बहुत पवित्र माने गए हैं। श्रीनारायण ने कहा था कि जो भी जीव मुक्ति इच्छा के लिए इन तीनों स्थानों पर तर्पण करेगा, उसे मुक्ति मिल जाएगी।
पं. त्रिपाठी ने बताया कि वैसे तो प्रत्येक दिन यहां पितरों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और नारायण बलि कराने के लिए लोगों की भीड़ रहती है, किन्तु प्रत्येक अमावस्या और पितृ पक्ष में विशेष भीड़ रहती है। पितृ अमावस्या पर तो कर्मकाण्ड कराने वालों की भी भारी भीड़ रहती है। यहां मंदिर में भगवान नारायण की शिला के दर्शन करने मात्र से ही पितरों को सद्गति प्राप्त होती है।
उन्होंने बताया कि नारायणी शिला के बराबर में ही प्रेतशिला है। यहां पूजा करने से प्रेत योनि प्राप्त किए पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलने के साथ सद्गति की प्राप्ति होती है। इससे लोगों का कल्याण होता है और उनके घर सुख और शांति का वास होता है। उन्होंने बताया कि इसके अलावा देश के अन्य राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र आदि में कुल 52 ऐसे पवित्र स्थान हैं ,जहां पर श्राद्ध, तर्पण कर्म किया जाता है।