साथ ही टिप्पणी भी की कि पर्याप्त समय बीत जाने के बावजूद अपर्याप्त सजा नहीं दी जा सकती है। मामले में आरोपी/दोषी को 15 दिनों में निचली कोर्ट में आत्म सपर्पण करने का आदेश दिया है। यह भी कि आत्म समर्पण न करने पर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट नियमानुसार कार्रवाई करें।
यह आदेश न्यायमूर्ति वीके बिरला और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने यूपी राज्य बनाम राम औतार सिंह की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने मामले में कर्ण सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और राजस्थान राज्य बनाम बनवारी लाल मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को आधार बनाया है।
मामले में शिव सरन सिंह की ओर से सात दिसंबर 1982 को अपने भाई बाबू सिंह की हत्या की प्राथमिकी दर्ज कराई थी। आरोप था कि राम औतार ने अपनी बहन को मारने के बदले बाबू सिंह को गोली मार दी, जिससे उसकी मौत हो गई।
इसे चुनौती देते हुए यूपी सरकार ने सत्र अदालत केफैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने पाया कि ट्रायल कोर्ट का फैसला सही नहीं है। उसने विरोधी पक्ष राम औतार को दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई।