सुप्रीम कोर्ट की संविधान बेंच आज भी ईडब्ल्यूएस आरक्षण को चुनौती देनेवाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान बेंच सुनवाई कर रही है।
20 सितंबर को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का बचाव करते हुए कहा था कि ये समाज के कमजोर तबकों के लिए है। एससी, एसटी और ओबीसी अपने आप में पिछड़ी जातियां हैं। लेकिन सामान्य वर्ग में भी कमजोर तबके हैं जिन्हें संविधान की धारा 15(5) और 15(6) में मान्यता मिली है। ईडब्ल्यूएस की देश में कुल आबादी 25 फीसदी है।
इस पर चीफ जस्टिस यूयू ललित ने कहा था कि क्या कोई आंकड़ा है जो ये बताए कि सामान्य वर्ग में ईडब्ल्यूएस का फीसद कितना है। अटार्नी जनरल ने कहा कि 18.1 फीसदी। तब जस्टिस भट्ट ने कहा कि आखिरी जनगणना 2011 में हुई थी। उसके बाद का क्या अपडेट है। अटार्नी जनरल ने कहा कि एक बड़ी संख्या जो मेधावी है, वो सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आवेदन करने से वंचित हो सकते हैं। ईडब्ल्यूएस आरक्षण एससी, एसटी और ओबीसी की हकमारी नहीं कर रहा है। ये पचास फीसदी से अलग है। इसमें मूल ढांचे के उल्लंघन का कोई मामला नहीं है।
वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि पिछड़ी जातियों को ईडब्ल्यूएस से बाहर कर बराबरी के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं किया गया है। इस मामले में एक आयोग की जरूरत है। ईडब्ल्यूएस जातीय आधार पर नहीं है, क्योंकि इसमें मुस्लिमों, ईसाइयों और सिखों के गरीब तबके को शामिल किया गया है। अगर इसमें जाति की बात होती तो उसमें मुस्लिम, ईसाई और सिख नहीं होते। इस पर जस्टिस एस रविंद्र भट्ट ने कहा कि ये सही अवधारणा नहीं है।
तमिलनाडु सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि इंदिरा साहनी के फैसले में जाति को सामाजिक वर्ग माना गया है। इस फैसले में कहा गया है कि आर्थिक आधार पर कोई भी वर्गीकरण धारा 14 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि धारा 14 संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है और ये बराबरी के सिद्धांत पर आधारित है। उन्होंने कहा कि आर्थिक सवाल अपने आप में आर्थिक मानदंड का उल्लंघन है।