सपा के मोहपाश से अब अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा बाहर निकल रही है। गुजरात के द्वारिका में हुई बैठक में कोलकाता के डॉ. सगुन घोष को राष्ट्रीय अध्यक्ष और बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया है। महासभा में हुआ यह बदलाव सपा के लिए झटका साबित हो सकता है।
अखिल भारतवर्षीय यादव महासभा की स्थापना 1924 में हुई, लेकिन ज्यादातर समय इसकी कमान उत्तर प्रदेश के नेताओं के हाथों में रही। मुलायम सिंह यादव के सियासी सफर में महासभा के योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता है। पहले चौधरी हरमोहन सिंह ने और फिर 2008 से अब तक पूर्व सांसद उदय प्रताप सिंह ने इसकी कमान संभाली। सियासी तौर पर भले ही महासभा में सभी दल के लोग रहे, लेकिन किसी न किसी रूप में यह सपा को खाद-पानी देने का कार्य करती रही। पर अब हालात बदल गए हैं।
अगस्त में उदय प्रताप ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। द्वारिका में रविवार को हुई महासभा कार्यकारी समिति की बैठक में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया गया। डॉ. सगुन घोष को अध्यक्ष और जौनपुर के बसपा सांसद श्याम सिंह यादव को कार्यकारी अध्यक्ष चुना गया। जल्द ही कार्यकारिणी में बदलाव होंगे। अब चौधरी हरमोहन सिंह का परिवार भाजपा के साथ है। ऐसे में महासभा में सपा का दखल खत्म होता नजर आ रहा है।
सियासी जानकार इसे सपा के लिए बड़ा खतरा मान रहे हैं। क्योंकि महासभा के जरिए चलने वाले सामाजिक आंदोलन किसी न किसी रूप में सपा को ताकत देते थे। हालांकि नवनिर्वाचित अध्यक्ष डॉ. घोष ने क हा कि महासभा दलगत राजनीति से दूर रहती है। इसलिए नए बदलाव को सियासी तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।
यदुकुल पुनर्जागरण मिशन का भी असर
सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के बाद उनके भाई शिवपाल यादव किसी न किसी रूप में महासभा से जुड़े रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने यादव क्षत्रपों के साथ मिलकर यदुकुल पुनर्जागरण मिशन की शुरुआत कर दी है। इससे यादव समाज के बीच बिखराव हुआ है।
दिल्ली में एकजुटता दिखाने की कोशिश
महासभा से जुड़े सूत्र बताते हैं कि द्वारिका में हुई बैठक से सपा समर्थक कई नेता असंतुष्ट हैं। ऐसे में जल्द ही नई दिल्ली में सम्मेलन होगा। इसमें सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को बुलाने की तैयारी है। देखना यह है कि महासभा पहले जैसी ताकत के साथ सपा की मददगार साबित होती है या नहीं।