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अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्तीय संसाधन बढ़ाने के रोडमैप पर केंद्र-राज्य विज्ञान सम्मेलन में चर्चा की गई

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निजी क्षेत्र एसटीआई योगदान बढ़ाने तथा सहयोगात्‍मक वित्‍त पोषण तंत्र विकसित करने के द्वारा अनुसंधान एवं विकास के लिए वित्तीय संसाधन बढ़ाने के रोडमैप तथा भविष्‍य की कार्ययोजना पर को केंद्र-राज्य विज्ञान सम्मेलन में चर्चा की गई।

इंफोसिस के सह-संस्थापक डॉ. क्रिस गोपालकृष्णन ने आरएंडडी में निजी क्षेत्र के निवेश को दोगुना करने पर आयोजित पैनल में कहा कि हमें अनुसंधान, अनुवाद संबंधी शोध में निवेश बढ़ाने और व्यावसायीकरण को सुविधाजनक बनाने के लिए अनुसंधान में वृद्धि करने की आवश्यकता है। इनमें निजी क्षेत्र के माध्यम से तेजी लाई जा सकती है।

उन्होंने ज्ञान सृजन, प्रसार और अनुप्रयोग के लिए वित्त पोषण सहायता पर जोर दिया और संरचनाओं की भूमिका, उद्योग और शिक्षा के सह-स्थान के साथ-साथ कर छूट जैसे प्रोत्साहनों को रेखांकित किया। उन्‍होंने कहा कि उद्योग से सीएसआर का कम से कम 1 प्रतिशत पीने के पानी, कैंसर, एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध जैसी वर्तमान समस्याओं और भविष्य की विभिन्‍न समस्याओं को हल करने पर खर्च किया जाना चाहिए।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. अखिलेश गुप्ता ने अनुसंधान में निजी निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए अनुसंधान एवं विकास कर कटौती की बहाली, परोपकारी वित्त पोषण और अनुसंधान में निजी निवेश को प्रोत्‍साहित करने के लिए एफडीआई के लिए वातावरण के सृजन जैसे प्रोत्साहनों पर जोर दिया।

उन्होंने एमएसएमई में नवोन्‍मेषण, जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (बीआईआरएसी), प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी), उद्योग और शिक्षा के सह-स्थान से जुड़े क्लस्टर मॉडल जैसे मॉडलों का दायरा बढ़ाने, साथ ही साथ अनुसंधान में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा सरकार को वित्त पोषित उत्पादों को वापस लाने जैसे कदमों की आवश्यकता भी रेखांकित की।

उन्होंने कहा कि अनुसंधान में 100% एफडीआई की अनुमति के साथ, कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने आर एंड डी में एफडीआई को व्‍यापक रूप से आकर्षित किया है, और अन्य राज्य ऐसे उदाहरणों का अनुकरण कर सकते हैं।

बेंगलुरु के सी-कैंप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. तस्लीमारिफ सैय्यद ने बायोटेक स्टार्ट-अप की दुनिया में उभरते हुए अग्रणी देश के रूप में भारत की स्थिति और देश के बायोटेक उद्योग के बढ़ते मूल्यांकन के बारे में जानकारी दी।

उन्होंने स्टार्ट-अप के लिए मिड-स्टेज फंडिंग और वेंचर कैपिटल (वीसी) और उद्योग के साथ सहयोग की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि ऐसे मॉडल को, जहां वीसी और उद्योग राज्य सरकारों सहित सरकार के साथ साझेदारी कर सकते हैं, को व्‍यापक स्‍तर पर प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य के कृषि और जलवायु के साथ-साथ विश्व स्तर पर अधिक से अधिक महत्वपूर्ण होने के साथ ही बायोटेक क्षेत्र का महत्व भी बढ़ रहा है, और गहन विज्ञान और गहरी तकनीक के लिए प्रारंभिक चरण के वित्तपोषण से इस अवसर का उपयोग करने में मदद मिल सकती है।

राजस्थान सरकार की प्रमुख सचिव (एस एंड टी) श्रीमती मुग्धा सिन्हा ने कहा कि “सफल जमीनी स्तर पर कार्यान्वयन मॉडल से प्रेरित एसटीआई शासन नीतियों के साथ प्रयोग किए जाने की आवश्यकता है।

उन्‍होंने कहा कि विज्ञान को सभी विभागों के लिए एक सेवा प्रदाता के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए – बिंदुओं को जोड़ने वाला एक इंटरफेस, और नीति निर्माताओं को विज्ञान से संबंधित बातों से अवगत कराया जाना चाहिए। टियर 2 उद्योगों, जिन्हें सरकार से प्राथमिक सहयोग की आवश्यकता है, की पहचान करने की जरूरत है।

आईआईटी, गांधीनगर के निदेशक प्रोफेसर अमित प्रशांत  ने अनुवाद अनुसंधान के लिए सहयोग के माध्यम से अनुसंधान संगठनों और उद्योग के बीच सेतु को मजबूत करने पर जोर दिया।

भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा साइंस सिटी, अहमदाबाद में गुजरात सरकार के साथ संयुक्त रूप से आयोजित सम्मेलन के पैनल ने अनुसंधान एवं विकास में निवेश को मजबूत करने के लिए वित्त पोषण तंत्र पर विचारों के आदान-प्रदान के लिए एक मंच के रूप में कार्य किया।

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