इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि संज्ञेय अपराध की प्राथमिकी की पुलिस को दंड प्रक्रिया संहिता के तहत विवेचना कर रिपोर्ट पेश करने का पूरा अधिकार है। किन्तु, असंज्ञेय अपराधों में ऐसा नहीं है। अंसज्ञेय अपराध में दर्ज रिपोर्ट पर पुलिस अपने आप विवेचना नहीं कर सकती। विवेचना करने से पूर्व न्यायिक मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी होगी।
यह आदेश न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने शिवम सोलंकी की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने कहा कि मजिस्ट्रेट से अनुमति लिए बगैर पुलिस विवेचना अवैध है और इसके आधार पर सारी कार्यवाही विधि विरुद्ध है। कोर्ट ने कहा चार्जशीट संज्ञेय अपराध की है। जबकि, केस के तथ्य से संज्ञेय अपराध का खुलासा नहीं करते। असंज्ञेय अपराध के आरोप की बिना मजिस्ट्रेट की अनुमति के विवेचना कर चार्जशीट दाखिल करना धारा 155 (2) के खिलाफ है। इसलिए पुलिस चार्जशीट भी अवैध है। इसलिए पूरी कार्यवाही अवैध हो जायेगी।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी बेटी को आरोपी ने रामनगर कालोनी के गेट पर बुलाया और साथियों के साथ पीड़िता से गाली गलौज की। मारपीट की। असंज्ञेय अपराध की एफआईआर दर्ज की गई। नियमानुसार विवेचना से पहले मजिस्ट्रेट से अनुमति लेनी चाहिए थी। ऐसा नहीं किया और चार्जशीट दाखिल कर दी।