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स्वयं से जुड़ना ही योगः प्रो. सुरेन्द्र

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जीवनभर व्यक्ति दूसरांे से जुडता रहता है। दूसराें से जुड़ाव का भाव दुखः का कारण बनता है। दूसरे से जुडने के स्थान पर स्वयं से जुड़ना ही योग है। गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा एवं खेल विभाग में एक दिवसीय कार्यशाला योग को जीवन में कैसे धारण करें, विषय पर आयोजित की गई। कसर्यशाला का शुभारम्भ योग मनीषि प्रो. सुरेन्द्र कुमार, अध्यक्ष योग विज्ञान विभाग ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया।

कार्यशाला के प्रथम सत्र को बतौर मुख्य वक्ता प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने कहॉ कि योग से जीवन में स्थिरता आती है, जिसके बल पर व्यक्ति योग की परम सिद्धि समाधि तक पहुंच जाता है। हठयोग, श्रीमद्वभगवत गीता, घेरंड सहित जैसे योग परक ग्रंथों में उपलब्ध प्रमाण से योग की जीवन में उपयोगिता सिद्ध करते हुये प्रो. कुमार ने योग मे अन्न के स्थान को बहुत महत्वपूर्ण बताया। जीवन मे सर्वोधिक महत्वपूर्ण श्वास-प्रश्वास रूपी प्राण है।

प्राण (श्वास की गति) मन के आधीन है। मन के अनुसार ही प्राण कार्य करता है। मन की प्रवृत्ति से चित्त तथा भाव का निर्माण होता है। बुद्वि शान्त होने पर मन की एकाग्रता स्थिर हो जाती है। कार्यशाला में प्रो. सुरेन्द्र कुमार ने मन की स्थिरता के लिए छात्रों को ध्यान लगाने की प्रयोगात्मक प्रक्रिया भी कराया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. शिवकुमार चौहान ने कार्यशाला की प्रस्तावना प्रस्तुत की। कार्यशाला में प्रभारी विभाग डॉ. अजय मलिक ने अतिथियों का स्वागत किया।

इस अवसर पर विभागीय आन्तरिक गुणवता प्रकोष्ठ के समन्वयक डॉ. कपिल मिश्रा, डा. प्रणवीर सिंह, डॉ. अनुज कुमार, कनिक कौशल, सुनील कुमार आदि उपस्थित रहे। आयोजन समिति की ओर से प्रो. सुरेन्द्र कुमार को स्मृति चिन्ह भेट किया गया। कार्यक्रम का संचालन एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. शिवकुमार चौहान और धन्यवाद ज्ञापन असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. कपिल मिश्रा ने किया।

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