उत्तर प्रदेश सरकार ने हाथरस हिंसा की साजिश के आरोप में गिरफ्तार पत्रकार सिद्दीकी कप्पन की जमानत अर्जी का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया है। यूपी सरकार ने कहा है कि कप्पन के राष्ट्रविरोधी एजेंडा रखने वाले पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) जैसे चरमपंथी संगठन से गहरे संबंध रहे हैं। वह दूसरे आरोपितों के साथ मिलकर देश में आंतक, धार्मिक कलह भड़काने की साजिश में शामिल था।
यूपी सरकार का कहना है कि कप्पन को ऐसे आरोपित के साथ गिरफ्तार किया गया जो पहले भी दंगों में शामिल रहा है। कप्पन हाथरस एक पत्रकार के तौर पर रिपोर्ट करने के लिए नहीं जा रहा था, बल्कि वह पीएफआई डेलिगेशन का हिस्सा था, जिसका मकसद हाथरस पीड़ित के परिजनों से मिलकर साम्प्रदायिक दंगे भड़काना था। 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने कप्पन की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था।
कप्पन की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि कप्पन के खिलाफ आरोप है कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने 45 हजार रुपये आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए दिया। इसका कहीं कोई सबूत नहीं है। यह महज आरोप हैं। पॉपुलर फ्रंट कोई प्रतिबंधित संगठन नहीं है। कप्पन एक पत्रकार हैं और वो हाथरस की घटना को कवर करने जा रहे थे।
कप्पन की जमानत अर्जी का विरोध करते हुए यूपी सरकार की ओर से पेश वकील गरिमा प्रसाद ने कहा था कि इस मामले में आठ आरोपित हैं और उसमें से कुछ आरोपितों के खिलाफ दिल्ली हिंसा के भी आरोप हैं। तब सिब्बल ने कहा था कि ये आरोप कप्पन पर नहीं हैं। उसके बाद चीफ जस्टिस ने गरिमा प्रसाद को अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था।
उल्लेखनीय है कि कप्पन दो साल से जेल में बंद है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2 अगस्त को कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। कप्पन एक मलयाली अखबार में रिपोर्टर है और वो केरल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट की दिल्ली इकाई का सचिव है। कप्पन को अक्टूबर 2020 को हाथरस गैंगरेप मामले को कवर करने के लिए जाने के दौरान गिरफ्तार किया गया था।