जेलों में कैदियों को मिलने वाले भोजन की गुणवत्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते रहते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश का एक जिला जेल ऐसा भी है जहां गुणवत्ता के लिहाज से कैदियों को फाइव स्टार होटलों जैसा भोजन परोसा जाता है। फर्रुखाबाद जिले के फतेहगढ़ स्थित जिला जेल में बंद 1140 कैदियों को परोसे जाने वाले भोजन को भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) ने फाइव स्टार रेटिंग दी है।
जेल को खाद्य श्रेणी में फाइव स्टार रेटिंग मिलने के बाद जेल अधीक्षक बीएस मुकुंद की सराहना सभी आला अधिकारी मुक्तकंठ से कर रहे हैं। कभी अपराध की दुनिया में उठे हाथ अब आधुनिक तरीके से भोजन पकाकर जेल का नाम रोशन कर अपने साथी बंदियों को लजीज भोजन मुहैया करा रहे हैं। सिर पर कैप, हाथों में दस्ताने, मुंह पर मास्क लगाए ये बंदी फाइव स्टार होटल के भोजन को भी मात दे रहे हैं। इसी वजह से खाद्य सुरक्षा विभाग की ओर से फतेहगढ़ जेल को फाइव स्टार होटल की रेटिंग दी गई है। खाना पका रहे इन बंदियों का परिधान और साफ-सफाई देखकर जिलाधिकारी संजय सिंह खुद अपने हाथों से खाना परोस कर इन बंदियों को खिला चुके हैं।
फतेहगढ़ स्थित जिला जेल जहां कभी पाकशाला में पसीने से लथपथ बंदी अपने गंदे हाथों से आटा गूंथते थे लेकिन जबसे जेल अधीक्षक के रूप में बीएस मुकुंद ने कार्यभार संभाला, पाकशाला की व्यवस्था में काफी बदलाव आया। उनके आने के बाद बंदी विशेष परिधान एवं हाथों में दस्ताने पहनकर आटा गूंथते हैं और रोटी मेकर से रोटियां तैयार कर बंदियों को परोसते हैं। बीएस मुकुंद ने विगत वर्ष भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) में प्रमाणीकरण के लिए आवेदन किया। इसके बाद प्राधिकरण की ओर से थर्ड-पार्टी निरीक्षण कराया गया। दिल्ली से पहुंची टीम ने जेल की पाकशाला का निरीक्षण किया और भोजन की गुणवत्ता के लिए फाइव स्टार रेटिंग जारी की। सोमवार को जिलाधिकारी ने एफएसएसएआइ की ओर से जारी ‘ईट राइट’ प्रमाणपत्र जेल अधीक्षक को सौंपा।
जेल अधीक्षक बीएस मुकुंद ने हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में कहा कि उन्हें यह प्रेरणा जेल के डीआईजी जैन साहब से मिली। मौजूदा समय में जब वह फतेहगढ़ जिला जेल आये तो जेल मंत्री, डीआईजी जेल ओर जिलाधिकारी संजय सिंह के निर्देश पर उन्होंने बंदियों को बेहतर खाना देने का प्रयास किया। उनका कहना है कि उनके छोटे से प्रयास ने जेल की तस्वीर बदल दी। उनका कहना है कि उन्हें विश्वास नहीं था कि उन्हें फाइव स्टार रेटिंग मिलेगी। उनका कहना है कि जिला जेल में स्वचलित पाकशाला दो साल पहले शुरू हुई थी। उन्होंने उसमें आमूल-चूल परिवर्तन किया। पाकशाला में 35 से 40 वर्ष की उम्र के बंदियों को शामिल किया गया। खास बात यह है कि इस पाकशाला में जिन बंदियों को स्किन रोग तथा अन्य कोई बीमारी है उन्हें शामिल नहीं किया गया है। पूर्ण स्वस्थ्य बंदी ही पाकशाला में काम कर रहे हैं। जिन बंदियों को डेंड्रफ है उन्हें भी शामिल नहीं किया गया है। उन्होंने बताया कि जिला कारागार में इस समय 1140 बंदी हैं, जिनमे 38 महिला हैं। महिला बंदी अपना अलग खाना बनाती हैं। वह खुद महिलाओं को सर्व करती हैं।
हत्या के दोषी बंदियों को पाकशाला में प्रवेश नहीं
पाकशाला में प्रयोग की जाने वाली सब्जी, आलू तथा हरी सब्जियां बंदी खुद तैयार करते हैं। हल्दी, मिर्च, धनियां, गर्म मसाले बंदी जेल में ही पीसते हैं। इसकी वजह से भोजन स्वादिष्ट और पौष्टिक होता है। जेल अधीक्षक का कहना है कि जब उन्होंने जेल का चार्ज सम्भाला था तब 250 बंदी रोज अस्ताल में दवा लेते थे। आज यह संख्या घटकर 100 पर पहुंच गई है। मुकुंद का कहना है कि परिजनों की हत्या के दोषी बंदियों को पाकशाला में प्रवेश वर्जित है। उन्हें पाकशाला की किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं किया जाता। इनमें आत्महत्या की भावनाएं प्रबल रहती हैं। यह किसी समय पाकशाला में चाकू आदि का प्रयोग कर आत्महत्या कर सकते हैं।