बिहार का बहुचर्चित बरौनी खाद कारखाना एक बार फिर से शुरू होने के लिए तैयार है। हिन्दुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (हर्ल) नाम से पुनर्निर्मित इस कारखाना से बहुत जल्द अपना यूरिया के नाम से नीम कोटेड यूरिया खाद का व्यवसायिक उत्पादन शुरू हो जाएगा।
इस कारखाना के चालू हो जाने से बिहार एवं पड़ोसी राज्यों के साथ-साथ नॉर्थ-ईस्ट के कई राज्यों को फायदा पहुंचेगा। इसके साथ ही प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लाखों युवाओं को रोजगार मिलेगा। बरौनी के फर्टिलाइजर कारखाना में लुक्का जल (चिमनी से आग निकलना) गया है। यह जिले के लोगों के लिए ही नहीं, बिहार और भारत के लिए खुशखबरी है। इंतजार खत्म हुआ और बंद बेकार पड़े कारखाना के चालू होने की आकांक्षा फलीभूत होने पर है।
बरौनी का खाद कारखाना करीब 20 वर्षों से बंद पड़ा था। कभी बिहार के मुख्यमंत्री डाॅ. श्रीकृष्ण सिंह के सपनों का कारखाना, तब के झारखंड सहित बिहार की किसानों को उर्वरक देने के लक्ष्य के कारखाना को कामगार ट्रेड यूनियन और सरकारी व्यवस्था ने पंगु बनाते हुए लूट का स्थान बना दिया और कारखाना 2003 आते-आते बंद हो गया। यह बेगूसराय जिला और बिहार के लिए एक दुखद संदेश था, लेकिन वर्षों की तालाबंदी और कारखाना परिसर के किसी जंगली क्षेत्र जैसे दृश्य को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की वर्तमान केन्द्र सरकार की पहल तथा स्थानीय लोगों की भावनाओं ने एकबार फिर चालू करा दिया। लेकिन, भावी पीढ़ी को इस कारखाना के सतत संचालन का ध्यान रखना होगा, जिससे कि नेतागिरी के चक्कर में कारखाना को पुराना दिन नहीं देखना पड़े।
समाजवादी महेश भारती कहते हैं कि बिहार के एकलौते खाद कारखाना का पुनरुद्धार हुआ। कारखाना के निकटतम पड़ोसी बीहट के रामकृष्ण ने लिखा और फोटो लगाया कि नाउम्मीदी के बीच उम्मीद की किरण दिखाई पड़ी है, कारखाना का लुक्का जल गया। इंतजार खत्म हुआ और बंद बेकार पड़े कारखाना के चालू होने की आकांक्षा फलीभूत होने पर है। बरौनी में थर्मल और रिफाइनरी कारखाने की स्थापना के बाद से ही उर्वरक कारखाना की बात उठने लगी थी।
रिफाइनरी से प्रचुर मात्रा में निकलने वाला नेफ्था, खाद कारखाना का कच्चा माल होता। बिहार के यशस्वी और दूरदर्शी मुख्यमंत्री डाॅ. श्रीकृष्ण सिंह (श्रीबाबू) ने जब अपने प्रभाव से सुविधाविहीन स्थिति में बरौनी में रिफाइनरी खुलवा दिए तो उनके दिमाग में बिहार के किसानों के खेतों के लिए खाद की आवश्यकता भी थी। 1960-61 में रिफाइनरी के निर्माण शुरू होने के साथ ही खाद कारखाना स्थापना की फाइल भी तैयार हो गई। श्रीबाबू की मृत्यु के बाद बिहार सरकार ने नवम्बर 1962 में इसका प्रतिवेदन केन्द्र सरकार को भेजा।
केन्द्र सरकार ने 1967 में तीन लाख 30 हजार टन यूरिया प्रतिवर्ष तैयार करने की क्षमता वाले खाद कारखाना की स्वीकृति दी। तब 24 करोड़ विदेशी मुद्रा सहित 92 करोड़ की लागत से 350 एकड़ किसानों की अधिग्रहीत जमीन में कारखाना खोलने की तैयारी शुरू हुई। एक ओर बगल के बरौनी थर्मल की बिजली और दूसरी ओर रिफाइनरी से निकलने वाले खाद बनाने के कच्चा माल नेफ्था की उपलब्धता सुनिश्चित थी। दस वर्षों के निर्माण की लंबी प्रक्रिया और बढ़ते लागत के बीच व्यवसायिक तौर पर एक नवम्बर 1976 को यहां यूरिया का उत्पादन शुरू हुआ।
लेकिन, करीब 1205 कर्मचारियों, 265 अधिकारियों और 280 एकड़ में आधुनिक ढ़ंग से बसाए गए टाउनशिप वाले इस कारखाना का दुर्भाग्य भी साथ रहा। 1976 में उत्पादन शुरू हुआ और तबसे लगातार प्रबंधन एवं यूनियन का टकराव यहां की पहचान बन गई। 1994-95 आते-आते कारखाना की बीमारी बढ़ने लगी, 40-50 हजार मैट्रिक टन तक यूरिया उत्पादन करने वाले कारखाना को घाटा तथा उत्पादन में क्षय ने बंदी के कगार पर पहुंचा दिया। कारखाना को चलाने के लिए 1990-2001 के बीच प्रबंधन, सरकार और ट्रेड यूनियन नेताओं के बीच कई तरह के प्रयोग, समझौते और नुस्खे अपनाए गए।
इसके बाद भी कारखाना घाटा सहते और कार्यरत लोगों, प्रबंधन एवं सरकार की लूट-खसोट नीतियों के कारण बंदी के कगार पर पहुंचते गया तथा 2003 में पूर्ण रूपेण बंद हो गया। स्थानीय लोगों और जनप्रतिनिधियों के दबाव पर 2008 में लालू यादव, नीतीश कुमार एवं रामविलास पासवान ने यहां आकर पुनर्निर्माण का शिलान्यास भी किया था, लेकिन वह दिखावा बनकर रह गया।
महेश भारती कहते हैं कि एक बड़े कारखाने की मौत ने बेगूसराय जिले ही नहीं, बिहार की प्रगति को नुक्सान पहुंचाया। बिहार के जातिवादी नेताओं की जमात और जातिवादी सरकार को कारखाना के विकास से मतलब कम ही था। करीब 20 वर्षों के बाद कारखाना से एक बार फिर धुंआ निकलने की आशा जगने पर कुछ लोग पुरानी चीजों को याद करने और दोषारोपण से बचने या दोष एक दूसरे पर डालने की परंपरा का निर्वाह करने लगते हैं।कारखाना बचेगा तो देश का विकास होगा, एक कारखाने के चलने से उस इलाके के विकास की तस्वीर बदल जाती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दृढ़ संकल्प ले पुनर्निर्मित इस खाद कारखाना के चालू होने से निश्चित ही बेगूसराय जिले को ही नहीं, पूरे बिहार और भारत को फायदा होगा।