भारत माता को ब्रिटिश शासन से आजादी दिलाने के लिए मात्र 23 वर्ष की उम्र में हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूलने वाले अमर शहीद राजगुरु को बुधवार को कृतज्ञ राष्ट्र ने श्रद्धापूर्वक याद किया।
क्रांतिकारी राजगुरु की 114 वीं जयंती के अवसर पर बेगूसराय में विभिन्न संघ-संगठनों ने श्रद्धांजलि अर्पित कर नमन किया। जिला मुख्यालय के शहीद स्थल पर युवाओं ने पुष्पांजलि अर्पित कर अमर शहीद क्रांतिकारी को नमन किया। दूसरी ओर शहीद सुखदेव सिंह समन्वय समिति द्वारा सर्वोदय नगर में आयोजित जयंती समारोह में उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शिक्षक अमरेन्द्र कुमार सिंह ने कहा कि आज ही के दिन 24 अगस्त 1908 को राजगुरु का जन्म हुआ था। ऐसे महान देशभक्त क्रांतिकारी राजगुरु को भूले नहीं भुलाया जा सकता है। वह हमारे देश के ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने छोटी सी उम्र में ही अंग्रेजों के ऊपर लगातार करारा प्रहार किया। राजगुरु के नाम से प्रसिद्ध शिवराम हरि राजगुरु भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे।
वक्ताओं ने कहा कि आठ अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त, वीर भगत सिंह के साथ उन्होंने केंद्रीय असेंबली में बम फेंका और गिरफ्तारी हुई। राजगुरु छात्र जीवन से ही क्रांतिकारी और भारत माता के स्नेहिल पुत्र थे। तभी तो जीवन के शुरुआती दिनों में 19 दिसम्बर 1928 को भगत सिंह के साथ लाहौर अंग्रेज अधिकारी जेपी सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह एवं सुखदेव के साथ इन्हें लाहौर में फांसी के फंदे पर लटका दिया गया, लेकिन फांसी के फंदे पर लटकते समय भी भारत माता के इस सपूत के चेहरे पर शिकन नहीं आई।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में राजगुरु की शहादत एक ऐसी ऐतिहासिक शहादत है, जिसे आज ही नहीं कल के इतिहास में भी मिटाया नहीं जा सकता, वे आधुनिक भारतीय इतिहास के पवित्र स्मृति हैं। इस अवसर पर सुशील कुमार राय, राजेन्द्र महतो, अनिकेत कुमार पाठक एवं अमर कुमार गौतम आदि ने भी तैल चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए राजगुरु के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर चर्चा किया।