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इंस्पेक्टर, दरोगा तथा आरक्षी की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड देना गैरकानूनी

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सांकेतिक तस्वीर।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग में कार्यरत इंस्पेक्टर, दरोगा, तथा आरक्षी की सत्यनिष्ठा रोकने का दंड देने को गैरकानूनी करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि सत्यनिष्ठा रोके जाने का दंड उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों के लिए बने कानून में नहीं है। कोर्ट ने उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की सत्यनिष्ठा रोके जाने का आदेश निरस्त कर दिया है। यह आदेश जस्टिस राजीव मिश्र ने दरोगा विनोद कुमार की याचिका पर पारित किया।

याची के खिलाफ  एसपी मऊ ने 2019 में सत्यनिष्ठा रोके जाने का आदेश पारित किया था। एसपी के इस आदेश के खिलाफ  डीआईजी आजमगढ़ परिक्षेत्र ने भी दंड आदेश को सही करार कर दिया था। एसपी व डीआईजी दोनों के आदेशों को हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।

याची के वरिष्ठ अधिवक्ता विजय गौतम ने तर्क था कि उत्तर प्रदेश अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम चार में जो दंड प्रतिपादित किया गया है, उसमें सत्यनिष्ठा रोकने के दंड का कोई प्रावधान नहीं है। कोर्ट ने एसपी व डीआईजी द्वारा पारित आदेशों को रद्द कर दिया तथा याची को समस्त लाभ देने का निर्देश दिया है।

मामले के अनुसार याची दरोगा विनोद कुमार पर आरोप था वर्ष 2019 में जब वह थाना घोसी जनपद मऊ में नियुक्त थे तो उन्होंने धारा 363, 366, 504, 506, 120 बी आईपीसी के मुकदमे की विवेचना में कुछ गलतियां की थीं तथा अंतिम रिपोर्ट लगा दी थी।  शिकायत पर इसकी जांच क्षेत्राधिकारी नगर मऊ ने की थी एवं जांच में क्षेत्राधिकारी ने पाया था कि याची दरोगा ने विवेचना में अभियुक्तों को लाभ पहुंचाया था।

आशा खबर / शिखा यादव 

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