कैथल जिला में भी पशुओं की लाइलाज बीमारी लंपी स्किन डिजीज ने दस्तक दे दी है। जिला में इस बीमारी से अब तक एक दर्जन से अधिक पशु चपेट में आ चुके हैं। पशु चिकित्सक अधिकारियों का कहना है कि अभी तक इस बीमारी का उनके पास कोई इलाज नहीं है। मौजूदा बीमारी से निपटने के लिए पशुपालन विभाग के उच्चाधिकारियों को पत्र लिखे गए हैं। पशुपालन विभाग ने प्रभावित क्षेत्रों में डॉक्टरों की टीमों को अलर्ट कर दिया है।
कैथल जिले के गांव रसूलपुर में भी इस बीमारी का असर देखने को मिला है। जहां पर अब तक दर्जनों पशुओं की मौत हो चुकी है। गांव रसूलपुर के पशुपालक सुनील ने बताया कि उनकी गाय को एनएसडी नामक बीमारी हुई थी और उसके शरीर पर चकत्ते पड़ गए थे। जिसके कुछ समय बाद उसकी मौत हो गई थी। पशुपालन वीरभान ने बताया कि उनके पशुओं की मौत भी इस बीमारी के कारण ही हुई है।
पशु पालन विभाग के एसडीओ डॉ. कुलदीप सिंह ने बताया कि लंपी वायरस की बात करें तो संक्रमण मच्छर-मक्खी और चारा के साथ ही संक्रमित मवेशी के संपर्क में आने से भी फैलती है। इसके इलाज के लिए कोई टीका उपलब्ध नहीं है। ऐसे में डॉक्टर्स लक्षण के आधार पर उपलब्ध दवाओं का ही उपचार में उपयोग करते हैं। इस बीमारी से बचाव के लिए जरूरी है कि साफ-सफाई का खास ध्यान रखा जाए और मवेशियों को किसी संक्रमित मवेशी के संपर्क में आने से बचाया जाए। डॉ कुलदीप सिंह का कहना है कि इस बीमारी से ग्रसित पशुओं के दूध का प्रयोग करने की बजाय उसे जमीन में दबा दें, क्योंकि दूध में भी इस बीमारी का वायरस मौजूद रहता है। यह राहत की बात है कि पशुओं के मल मूत्र में इस बीमारी का वायरस नहीं पाया जाता। पशुओं की लार में जरूर यह वायरस पाया जाता है और इसके जरिए दूसरे पशुओं में फैल भी सकता है।
आशा खबर / शिखा यादव