रात 11 बजे तक श्रद्धालु नयनाभिराम छवि के पा सकते हैं दर्शन
जय जयकारों से दिनभर गूंजता रहा ठाकुर बांकेबिहारी का आंगन
हरियाली तीज के मौके पर आज जन जन के आराध्य श्रीबांकेबिहारी जी महाराज ने अपने भक्तों को सोने-चांदी से बने हिंडोले (झूला) में विराजमान होकर दर्शन दिए। ठाकुरजी की नयनाभिराम छवि के देखकर श्रद्धालु ऐसे भक्तिरस में डूबे कि पूरे मंदिर परिसर बांकेबिहारी के जय जयकारों से गूंजने लग गया। यह सिलसिला जैसे दोपहर का था उससे भी ज्यादा देरशाम तक बना रहा। ठाकुरजी की एक झलक पाने के लिए हर कोई बेताब नजर आ रहा है।
रविवार की सुबह 7.45 बजे बांकेबिहारी मंदिर के पट खुलते ही श्रद्धालु ठाकुर जी के दर्शन के लिए आगे बढ़े। हरे रंग के वस्त्र और स्वर्ण आभूषण धारण किए ठाकुर बांकेबिहारी ने स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजमान होकर भक्तों को दर्शन दिए। मंदिर की गलियों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रही। हरियाली तीज पर ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के अलावा राधावल्लभ मंदिर, स्नेह बिहारी मंदिर, राधादामोदर, राधारमण, श्याम सुंदर, शाहबिहारी जी, यशोदानंदन धाम सहित अनेक मंदिरों में भी हिंडोला उत्सव मनाया जा रहा है। प्रेम मंदिर, रंगजी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ी है।
हरियाली तीज पर रविवार की भोर से ही तीर्थ नगरी की हर सड़क पर भीड़ थी। शहर के बाहर बनी पार्किंग पर अपने वाहन खड़े कर भीड़ बांकेबिहारी मंदिर की ओर बढ़ रही थी । शहर में चप्पे चप्पे पर तैनात पुलिस श्रद्धलुओं की सुरक्षा व्यवस्था में लगी थी। मंदिर के सेवायत प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी ने बताया कि हरियाली तीज पर ठाकुर बांकेबिहारी इस हिंडोले में पूरे ठाठ-बाट के साथ विराजते हैं। उन्होंने बताया कि वृंदावन के मंदिरों में हिंडोला उत्सव (झूलनोत्सव) का शुभारंभ आज से हो गया है यह महोत्सव रक्षाबंधन तक झूलनोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बांकेबिहारी के अलावा वृंदावन के अन्य मंदिरों में भी हरियाली तीज का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है।
सायंकालीन सेवा
– पट खुलने का समयः शाम 5 बजे।
– शयन आरतीः रात 10.55 बजे।
– दर्शन बंद होने का समयः रात 11 बजे।
15 अगस्त 1947 में पहली बार बांकेबिहारी महाराज विराजे थे आकर्षक हिण्डोले में
आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को ठाकुर जी पहली बार इस दिव्य आकर्षक हिंडोले पर विराजित हुए थे। उस दिन हरियाली तीज का दिन था। हिंडोले के ऊपरी हिस्से की पच्चीकारी अपने आप में अद्भुत है। हिंडोले के दोनों और आदमकद सखियों की प्रतिमाएं बरबस ही भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के अनन्य भक्त सेठ हरगुलाल बेरीबाल परिवार ने इस हिंडोले को तैयार कराया था। लकड़ी पर नक्काशी उकेरने के बाद एक हजार तोला सोना और दो हजार तोला चांदी के पतरों से झूले को अंतिम रूप दिया गया। 1947 से हर वर्ष हरियाली तीज के अवसर पर ठाकुर बांकेबिहारी स्वर्ण-रजत हिंडोले में विराजते हैं।