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आशीष मिश्र को जमानत नहीं, लखनऊ पीठ ने मीडिया ट्रायल पर की टिप्पणी

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आशीष मिश्र (फाइल फोटो)

अदालत ने इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया की भूमिका पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आजकल मीडिया कंगारू अदालतें चला रहा है। मीडिया ट्रायल अपने आप जांच करने के अलावा, अदालत द्वारा मामले का संज्ञान लेने से पहले ही संदिग्ध के खिलाफ जनमत बनाने लगता है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने मंगलवार को लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी के पुत्र आशीष मिश्र उर्फ मोनू की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। न्यायमूर्ति कृष्ण पहल की एकल पीठ ने फैसले में मीडिया ट्रायल पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि हाई प्रोफाइल आपराधिक मामलों में न्यायपालिका की पवित्रता से आगे बढ़ते हुए देखा जाता है, जैसा कि जेसिका लाल, इंद्राणी मुखर्जी और आरुषि तलवार आदि के मामलों में स्पष्ट था।

अदालत ने इलेक्ट्रॉनिक व सोशल मीडिया की भूमिका पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि आजकल मीडिया कंगारू अदालतें चला रहा है। मीडिया ट्रायल अपने आप जांच करने के अलावा, अदालत द्वारा मामले का संज्ञान लेने से पहले ही संदिग्ध के खिलाफ जनमत बनाने लगता है। परिणामस्वरूप जिस आरोपी को निर्दोष माना जाना चाहिए था, उसे अपराधी माना जाता है। अदालत में मुकदमे से पहले मीडिया में संदिग्ध का अत्यधिक प्रचार या तो निष्पक्ष सुनवाई को कम करता है या आरोपी या संदिग्ध को निश्चित रूप से अपराध करने वाले व्यक्ति के रूप में चिह्नित करता है। अब विशेष रूप से टूल किट के उपयोग से इलेक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया द्वारा समस्या कई गुना बढ़ गई है। विभिन्न चरणों और मंचों पर, यह देखा गया है कि मीडिया द्वारा कंगारू अदालतों को चलाने वाले गैर-सूचित और एजेंडा संचालित बहसें की जा रही हैं।

जमानत का उपयुक्त मामला नहीं
लखीमपुर खीरी में पिछले साल तीन अक्तूबर को किसानों के विरोध प्रदर्शन के समय हिंसा हुई थी। इसमें आठ लोग मारे गए थे। कोर्ट ने फैसले में इसे जमानत का उपयुक्त मामला बताते हुए कई तथ्य गिनाए-
– मौके पर तीन वाहन थे। थार वाहन अभियुक्त के पिता के नाम पंजीकृत था और वह मौके से बरामद इस वाहन में देखा गया। हालांकि, आवेदक को इसे चलाते नहीं देखा गया।
– अभियुक्त की संलिप्तता को ध्यान में रखते हुए, गवाहों के प्रभावित होने की आशंका, आरोपों की प्रकृति और सजा की गंभीरता, पक्षों की दलीलों पर विचार करने के बाद मामले के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त किए बिना मुझे यह जमानत के लिए उपयुक्त मामला नहीं लगता। ऐसे में आवेदक आशीष की जमानत अर्जी खारिज की जाती है।

– कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आदेश में की गई टिप्पणियां जमानत आवेदन के निपटान से संबंधित पक्षों द्वारा लाए गए तथ्यों तक सीमित हैं। इनका सुनवाई के दौरान मामले के गुण-दोष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

धारा 144 का पालन किसी पक्ष ने नहीं किया
कोर्ट ने कहा, जिला प्रशासन ने धारा 144 लगाई थी, जो दोनों पक्षों पर समान रूप से लागू थे, लेकिन किसी ने इसका पालन नहीं किया। 

आशा खबर / शिखा यादव 

 

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