सीएसआईआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस कम्युनिकेशन एंड पॉलिसी रिसर्च एनआईएससीपीआर), नई दिल्ली का रिसर्च जर्नल डिवीजन त्वरित विज्ञान कार्यशाला योजना के तहत ’विद्वतापूर्ण प्रकाशनों को लेकर व्यावहारिक प्रशिक्षण’ पर 12-18 मई 2022 के दौरान विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी), भारत सरकार द्वारा प्रायोजित एक सप्ताह की राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन कर रहा है।
उपर्युक्त ‘कार्यशाला’ के पांचवें दिन व्याख्यानों, संवादपरक सत्र के साथ-साथ वनस्पति संग्रहालय तकनीकों पर व्यावहारिक प्रशिक्षण द्वारा ‘विज्ञान संचार में संग्रहालयों की भूमिका’ पर प्रकाश डाला गया। रिसोर्स पर्सन, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक और प्रमुख, रॉ मैटेरियल्स हर्बेरियम एंड म्यूजियम, दिल्ली (आरएचएमडी), सीएसआईआर-एनआईएससीपीआर की पूर्व प्रमुख डॉ. सुनीता गर्ग, जिन्हें इस विषय में चार दशकों का प्रचुर अनुभव है, ने अपने अनुभव साझा किए।
डॉ. गर्ग ने अपने भाषण में इस विशाल देश की समृद्ध जैव विविधता की रक्षा में विज्ञान संग्रहालयों की अपरिहार्य भूमिका के बारे में विस्तार से बताया और न सिर्फ विज्ञान पाठ्यक्रम के छात्रों बल्कि सामान्य रूप से लोगों के बीच विज्ञान सीखने को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया। उन्होंने कहा कि संग्रहालय भौतिक अवलोकन के लिए वास्तविक नमूने प्रदान करके, एक गहरी दृश्य स्मृति प्रदान करता है, जो छात्रों के लिए सीखने का सबसे प्रभावी ढंग है। मूल प्रामाणिक नमूनों को संरक्षित करके संग्रहालय, प्रासंगिक विषय विशेषज्ञ के साथ सही नमूनों के प्रमाणीकरण के लिए केंद्र के रूप में कार्य करता है जो वैज्ञानिक अनुसंधान में अत्यंत अनिवार्य है, विशेष रूप से जीव विज्ञान में जो जैविक नमूनों से संबंधित है, चाहे वह संपूर्ण पौधा हो या जानवर हो या उसी का हिस्सा। उन्होंने विशेष रूप से हर्बल उद्योग में मिलावट के कारण होने वाली समस्याओं के बारे में बताया। डॉ. गर्ग ने इस विषय में उद्यमिता के क्षेत्र पर भी प्रकाश डाला है।
डॉ. सुनीता गर्ग और डॉ. प्रसन्ना ने व्यावहारिक रूप से दर्शाया कि वनस्पति विज्ञान में वनस्पतियों का संग्रह कैसे किया जाता है। वनस्पति संग्रह तकनीक संबंधित पौधों के नमूनों की रूपात्मक प्रमुख विशेषताओं को संरक्षित करने में मदद करती है। प्रतिभागियों को हर्बेरियम शीट तैयार करने पर व्यक्तिगत प्रयास करके सत्र में सीखी गई बातों को प्रदर्शित करने का अवसर भी दिया गया।
वरिष्ठ वैज्ञानिक मजूमदार एवं डॉ. एन.के. प्रसन्ना ने कार्यशाला के पांचवें दिन के तीनों सत्रों का सुचारु रूप से संचालन किया।