भगवान भोले शंकर के सबसे पावन माह सावन की शुरुआत 14 जुलाई से हो रही है। इस दौरान बड़ी संख्या में लोग शिवालयों में जलाभिषेक कर कल्याण की कामना करेंगे, इसको लेकर शिवालयों में तैयारी पूरी हो गई है। बुधवार को गुरु पूर्णिमा के साथ ही गंगाजल लेकर शिवभक्तों के रवाना होने का सिलसिला शुरू हो गया है।
श्रावणी मेला को लेकर प्रशासनिक स्तर पर बेगूसराय जिला के गढ़पुरा में स्थित बाबा हरिगिरि धाम में तैयारी पूरी कर ली गई है। सिमरिया गंगा घाट एवं झमटिया गंगा घाट पर कांवरिया की भीड़ को लेकर रोशनी, सुरक्षा, अस्थाई शौचालय, टेंट हाउस आदि की व्यवस्था कर लेने का दावा किया गया है। घाट, मंदिर एवं कांवरिया पथ में बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है। भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बेरिकेटिंग सहित अन्य उपाय भी किए हैं। उल्लेखनीय है कि कभी अंगुतराप और स्वर्णभूमि के नाम से प्रसिद्ध बेगूसराय के उत्तरी सीमा पर गढ़पुरा प्रखंड मुख्यालय से मात्र एक किलोमीटर दूर स्थित पावन शिवालय बाबा हरिगिरि धाम मिथिला के देवघर के रूप में जाना जाने लगा है।
इस शिवालय के ख्याति का आलम यह है कि रात तो रात, यहां दिन में भी शादी होते रहता है। चन्द्रभागा (अतिक्रमण के कारण विलुप्त) नदी के पश्चिमी तट पर पौराणिक काल से स्थित इस शिवालय की महिमा वर्ष 2000 से काफी फैल गई। अब यहां प्रतिवर्ष दस लाख से अधिक श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं, तो वहीं एक हजार से भी अधिक मुंगन, उपनयन और शादी समेत अन्य संस्कार कराए जाते हैं।
कथाओं के अनुसार श्मशान भूमि पर बाबा हरिगिरि नामक महात्मा द्वारा स्थापित इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना उगना के साथ महाकवि विद्यापति ने भी जयमंगलागढ जाने के क्रम में की थी। रुद्रयामल तंत्र एवं कालिका पुराण में कहा गया है कि मिथिला एवं अंग देश की सीमा पर दक्षिणायन चंद्रभागा तट पर शिव आकर बसे हैं। जिसकी पूजा सप्त कुंड के जल से किया जाता है तथा वही त्रिदंडी मुनियों का निवास है। सप्त कुंड और मुनियों के निवास के प्रमाण भी यहां हैं, हालांकि अब सिर्फ दो कुंड ही बचा हुआ है।
इस पौराणिक स्थल का नामकरण हरिगिरी धाम होने के संबंध में कहा जाता है कि पहले यहां घना जंगल के बीच तांत्रिक और अघोरियों का वास होता था। बगल से बहने वाली चंद्रभागा नदी के चिता भूमि पर सिद्ध महात्मा भी रहते थे। इनमें से हरिगिरी बाबा, तामरी बाबा और मनधारी बाबा की प्रसिद्ध थी तथा हरिगिरि बाबा ने इसकी स्थापना की थी। बाद के दिनों में इसका उन्नयन होने लगा और ख्याति बिहार के साथ बंगाल, आसाम और नेपाल तक काफी फैल गई। आज हरिगिरी धाम महज एक मंदिर नहीं, आस्था, विश्वास, भाईचारा और धार्मिक समन्वय का केंद्र बन गया है।
सावन माह में यहां भक्तजनों का कारवा सिमरिया घाट से गंगाजल लेकर पैदल के साथ बस निजी वाहन एवं ट्रेन से उमड़ते ही रहता है। सरकार द्वारा यहां श्रावणी मेला के साथ साथ शिवरात्रि, माघी पूर्णिमा एवं कार्तिक पूर्णिमा मेला का आयोजन धूमधाम से किया जाता है।
आशा खबर / शिखा यादव