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इलाहाबाद हाई कोर्ट यूपी पुलिस की पुराने ढर्रे से जांच पर नाराज

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जमानत अर्जी पर समय से जानकारी न देने पर इलाहाबाद हाई कोर्ट नाराज, पुलिस  कमिश्‍नर वाराणसी को स्‍पष्‍टीकरण - Allahabad High Court ordered to  Commissioner of Police ...

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रयागराज, रामपुर और अलीगढ़ के तीन अलग-अलग आपराधिक मामलों में पुलिसिया जांच पर सख्त टिप्पणी की है। कोर्ट ने पुलिसिया जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब सरकार ने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत निष्पक्ष जांच के लिए ऑडियो-वीडियो के जरिए बयान लेने की व्यवस्था की है तो पुलिस अभी तक क्यों लेखबद्ध बयान तक सीमित है? क्या पुलिस अभी तक अपडेट नहीं हुई है? या वह कानून में हुए संशोधन को अपनी दैनिक जांच प्रक्रिया में शामिल नहीं करना चाहती है या कानून का पालन नहीं करना चाहती है? जबकि, राज्य सरकार ने ऑडियो-वीडियो के जरिए बयान लेने की व्यवस्था 2009 में ही लागू कर दी है।

हाई कोर्ट ने कहा कि आपराधिक मामलों की सुनवाई के दौरान दाखिल होने वाली जांच रिपोर्टों को देखकर ऐसा लग रहा है कि पुलिस निष्पक्ष जांच प्रक्रिया को अपनाना ही नहीं चाहती। वह जांच रिपोर्टों को मैनुपलेट (अपनी इच्छानुसार तैयार) करने का इरादा रखती है। इसकी वजह से पुराने ढर्रे पर ही अभी काम किए जा रहे हैं। कोर्ट ने मामले में पुलिस अधिकारियों को अपडेट नहीं किए जाने पर नाराजगी जताई और राज्य सरकार से पूछा है कि जांच प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाए जाने के लिए वह क्या कदम उठा रही है। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने अलीगढ़ के आकाश, रामपुर के वसीम, प्रयागराज के विवेक सिंह की अलग-अलग याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने इन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान पाया कि इन मामले में सीआरपीसी की धारा 161 के तहत बयान ले लिया गया और उसके बाद कोर्ट में 164 का बयान भी हो गया। इसके बावजूद पुलिस ने बयान लेकर केस से आरोपियों का नाम निकाल दिया और धाराएं कम कर उन्हें बदल दिया। पुलिस ने जब कोर्ट में जांच रिपोर्ट दाखिल किया तो जांच रिपोर्ट की भाषाएं एक पैटर्न पर हूबहू हैं। जांच रिपोर्टों में लिखा गया है कि ‘आरोपित पर आरोप बखूबी सिद्ध होते हैं’ लेकिन उसमें आरोप किन धाराओं में सिद्ध हो रहे हैं, जांच के दौरान क्या-क्या रिकॉर्ड और तथ्य सामने आए यह नहीं लिखा गया है।

कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि तीन अलग-अलग जिलों की जांच रिपोर्ट देखकर यह पता चलता है कि पूरे प्रदेश में जांच रिपोर्ट इसी पैटर्न पर तैयार किया जा रहा है। इससे यह साफ होता है कि पुलिस विभाग 2009 में किए गए संशोधन के बावजूद अभी तक अपने ऑफिसर्स को अपडेट नहीं कर सका है। उन्हें ट्रेनिंग नहीं दे सका है। उन्हें नई व्यवस्था के तहत होने वाले संशोधन के बारे में नहीं बता सका, जिससे कि जांच और निष्पक्ष हो सके। कोर्ट ने कहा कि इससे यही लगता है कि पुलिस निष्पक्ष जांच कराने के पक्ष में नहीं है।

हाई कोर्ट ने सरकारी अधिवक्ता और पेशी के दौरान विधि सचिव और डीजीपी के प्रतिनिधि के तौर पर कोर्ट में पेश हुए एडीजी प्रेम प्रकाश से भी कई सवाल किए। कोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग और सरकार यह बताए कि निष्पक्ष जांच के लिए उनके द्वारा क्या-क्या कदम उठाए जा रहे हैं? कोर्ट ने इस बारे में शीर्ष अधिकारियों को अवगत कराने का निर्देश दिया है, जिससे कि इस दिशा में ठोस कदम उठाए जाएं। कोर्ट ने मामलों में दाखिल जवाबी हलफनामें को भी रिकॉर्ड पर लेने से मना कर दिया और निर्देश दिया कि वह इन जानकारियों के साथ अपना हलफानामा दाखिल करें। कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 20 जुलाई की तिथि लगाई है।

एडीजी ने कहा कि पुलिस उठाएगी कदमः कोर्ट में पेश हुए एडीजी प्रेम प्रकाश ने विभाग की तरफ से कहा कि इस दिशा जल्द ही ठोस कदम उठाया जाएगा और जांच करने वाले अफसरों को जांच के लिए नए नियमों और कानूनों के मुताबिक प्रशिक्षित किया जाएगा। इस पर कोर्ट ने कहा कि पुलिस विभाग इस मामले में जो भी कदम उठाए उसकी जानकारी वह अपने हलफनामे पर अगली सुनवाई के दौरान प्रस्तुत करे।

इंस्पेक्टर पर कार्रवाई न होने पर जताई नाराजगीः कोर्ट ने प्रयागराज के विवेक सिंह की ओर से दाखिल जमानत अर्जी पर सुनवाई के दौरान बयान के आधार पर आरोपितों के नाम काटने और धाराओं में परिवर्तन करने पर इंस्पेक्टर राज किशोर पर कार्रवाई न करने पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि इंस्पेक्टर ने इसके पहले भी एक मामले में ऐसा ही किया था। उस पर कार्रवाई का निर्देश दिया गया था। उसका पालन क्यों नहीं किया गया। इस पर एडीजी ने कार्रवाई करने की बात कही।

आशा खबर /रेशमा सिंह पटेल

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