जौनपुर की विवाहित बेटियों ने जनहित याचिका दायर कर राजस्व संहिता के प्रावधान को दी चुनौती
-चीफ जस्टिस की बेंच ने एडवोकेट जनरल को जारी किया नोटिस और सरकार से मांगा जवाब
जौनपुर के विवाहित बेटियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर राजस्व संहिता-2006 की धाराओं की संवैधानिकता को चुनौती दी है। कहा है कि राजस्व संहिता की धाराएं 4(10), 108, 109 और 110 शादीशुदा महिलाओं को संविधान में मिले मौलिक अधिकारों संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 19(1)(जी), 21 और 300 ए का उल्लंघन करता है। कहा गया है कि राजस्व संहिता की धारा 108, 109 और 110 विवाहित बेटियों को कृषि भूमि के उत्तराधिकार के क्रम में अविवाहित बेटियों, पुरुष वंशजों और विधवाओं के मुकाबले भेदभाव करती हैं।
शादीशुदा बेटियों को इस श्रेणी से बाहर रखा गया है और वरीयता क्रम में बहुत नीचे रखा गया है। उत्तराधिकारियों की अनुपस्थिति में शादीशुदा बेटियों को विरासत का हिस्सा माना जाता है। याचियों ने राजस्व संहिता की इन धाराओं को रद्द कर शादीशुदा बेटियों को भी उसके माता-पिता की कृषि भूमि में हिस्सा देने की मांग की है।
खादिजा फारूकी व अन्य की जनहित याचिका पर चीफ जस्टिस राजेश बिंदल व जस्टिस जे जे मुनीर की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए उक्त प्रावधान की वैधानिकता पर उठे सवाल को लेकर प्रदेश के एडवोकेट जनरल को नोटिस जारी किया है तथा राज्य सरकार से जवाब तलब किया है।
याचियों की ओर से पैरवी कर रही सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता डॉ. अनुदिता पुजारी ने बहस की। उन्होंने तर्क दिया कि राजस्व संहिता की धारा 109 विवाहित महिलाओं को विरासत में शामिल करने से रोकती है। इसके अनुसार यदि कोई महिला मर जाती है, शादी करती है, पुनर्विवाह करती है तो उसे जो संपत्ति विरासत में मिली है, वह निकटतम जीवित पुरुष उत्तराधिकारी को हस्तांतरित हो जाती है।
इस प्रकार उसकी संपत्ति छीन ली जाती है। इसके अलावा धारा 4(10) परिवार शब्द को परिभाषित करती है और स्पष्ट रूप से विवाहित बेटियों को परिवार से बाहर करती है। याचिका में कहा गया है कि राजस्व संहिता के प्रावधान 174 वें विधि आयोग की रिपोर्ट-2000 की पूरी तरह अवहेलना करता है, जिसमें सिफारिश की गई थी कि कोई भी कानून ऐसा नहीं होना चाहिए जो विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच भेद करे।
इस पर कोर्ट ने पूछा की इससे तो शादीशुदा महिलाओं को मायके और ससुराल दोनों जगह कृषि भूमि का हक मिल जाएगा। याची ने तर्क दिया कि फिर शादी के बाद पुरुषों को भी कृषि भूमि से वंचित किया जाए। याची ने कहा कि हाल ही में परिवार की परिभाषा को संशाधित करते हुए इसमें तीसरे लिंग को शामिल किया गया लेकिन शादीशुदा महिलाओं को शामिल नहीं किया गया।
आशा खबर / शिखा यादव