दिवंगत हो चुके वरिष्ठ परामर्शदाता को यहां सर्जन के पद पर तैनाती की गई है। मौत के बाद मनचाही जगह के लिए आया यह तबादला आदेश उनकी पत्नी और दो मासूम बच्चों के दिल पर किसी वज्रपात सरीखा है। इस आदेश की प्रति मिलने के बाद परिवार वालों की आंखों के आंसू नहीं थम रहे।
सैकड़ों मरीजों की जान बचाने वाले एक डॉक्टर की गुहार शासन के आगे नक्कारखाने में तूती की आवाज साबित हुई। लिवर की बीमारी की वजह से पिछले पांच साल से तबादला मांग रहे इस चिकित्सक को जीते-जी अफसरों की टालमटोल और बहानेबाजी के अलावा कुछ नहीं मिल सका। लेकिन, उनकी तेरहवीं हो जाने के अगले दिन शासन ने शुक्रवार को उनका तबादला चित्रकूट से प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मंडलीय चिकित्सालय कर दिया।
दिवंगत हो चुके वरिष्ठ परामर्शदाता को यहां सर्जन के पद पर तैनाती की गई है। मौत के बाद मनचाही जगह के लिए आया यह तबादला आदेश उनकी पत्नी और दो मासूम बच्चों के दिल पर किसी वज्रपात सरीखा है। इस आदेश की प्रति मिलने के बाद परिवार वालों की आंखों के आंसू नहीं थम रहे। मूलरूप से कानपुर के घाटमपुर निवासी डॉ. दीपेंद्र की तैनाती 11 वर्ष पहले चित्रकूट के संयुक्त जिला चिकित्सालय में वरिष्ठ परामर्शदाता के पद पर हुई थी।
डॉ. दीपेंद्र सिंह की मौत लिवर संक्रमण से बीते 17 जून को हो चुकी है। डॉ. दीपेंद्र चाहते थे कि उनका तबादला प्रयागराज हो जाए, ताकि वह अपने परिवार वालों की निगरानी में ड्यूटी के साथ-साथ अपना उपचार करा सकें। इसके लिए वह अफसरों की परिक्रमा कर रहे थे, लेकिन चिट्ठियों की फाइलें मोटी होती गईं। पत्थरदिल व्यवस्था के आगे उनको जूझने और इंतजार करने के अलावा कुछ भी हासिल नहीं हो सका।
चिकित्सा सचिव रवींद्र की ओर से जारी तबादला आदेश में डॉ. दीपेंद्र की प्रयागराज में नवीन तैनाती का आदेश प्रथम क्रमांक पर ही अंकित है। उनकी पत्नी डॉ. आभा सिंह ने अमर उजाला को बताया कि वह पति की जान बचाने के लिए पांच साल से शासन को पत्र लिखकर उनके तबादले के लिए आग्रह करती रहीं। इस दौरान उन्होंने कई पत्र लिखे, लेकिन किसी ने नहीं सुनी। अब तबादला होना सरकारी वज्रपात सरीखा है।
तेरहवीं के दूसरे दिन ही मनचाही जगह के लिए डॉ. दीपेंद्र का तबादला उनके सहपाठियों और सहयोगी चिकित्सकों को भी अखर रहा है। इसलिए भी कि उनकी मौत के बाद यह तबादला आदेश डॉक्टर्स डे पर जारी हुआ है। तेज बहादुर सप्रू चिकित्सालय में तैनात उनके सहकर्मी डॉ. जीसी पटेलु कहते हैं कि मौत के बाद यह आदेश उनके परिवार वालों, परिचितों के लिए किसी आघात सरीखा है। सवाल यह भी है कि डॉक्टर की मौत की सूचना स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग के महानिदेशक महानिदेशक को 17 जून को ही दी जा चुकी है।
भाई साहब का जब तबादला नहीं हुआ तो हम लोगों ने ऐच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) की मांग तक की थी, लेकिन वह भी नहीं दी गई। जब वक्त था, तब शासन ने तबादला किया न ही वीआरएस दिया। आज तबादला आदेश देखकर हमारे पास कुछ भी कहने के लिए शब्द नहीं हैं। इतना जरूर है कि अगर समय रहते उनका तबादला प्रयागराज के लिए हो जाता तो हम लोग और बेहतर इलाज करा सकते थे, उनकी जान बचाई जा सकती थी