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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली एक और अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल

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प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए एक और अर्ज़ी सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई है। अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर में पुजारी रह चुके करुणेश कुमार शुक्ला ने नई याचिका दायर की है। वह राम जन्मभूमि मामले में भी मुख्य भूमिका निभा चुके हैं और कृष्ण जन्मभूमि मामले में भी मुख्य याचिकाकर्ता हैं।

करुणेश शुक्ला के पहले प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। एक याचिका 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ चुके रिटायर्ड कर्नल अनिल कबोत्रा ने याचिका दाखिल की है। याचिका में कहा गया है कि यह कानून विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा अवैध तरीके से पौराणिक पूजा, तीर्थस्थलों पर कब्जा करने को कानूनी दर्जा देता है। याचिका में कहा गया है कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को अपने धार्मिक स्थलों पर पूजा करने से रोकता है।

इसके पहले मथुरा के धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर ने भी याचिका दायर कर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती दी है। 26 मई को वकील रुद्र विक्रम सिंह ने भी याचिका दायर कर कहा है कि 15 अगस्त, 1947 की मनमानी कटऑफ तारीख तय कर अवैध निर्माण को वैधता दी गई। याचिका में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 2, 3 और 4 असंवैधानिक है। ये धाराएं संविधान की धारा 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करती हैं। ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाती हैं, जो संविधान के प्रस्तावना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

वाराणसी के स्वामी जितेंद्रानंद ने 25 मई को याचिका दायर कर इस एक्ट को चुनौती दी है। स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा है कि सरकार को किसी समुदाय से लगाव या द्वेष नहीं रखना चाहिए लेकिन उसने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख को अपना हक मांगने से रोकने का कानून बनाया है। प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली एक याचिका भाजपा नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी दायर की है। 12 मार्च, 2021 को मामले में अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी हुआ था।

याचिका में कहा गया है कि 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त, 1947 वाली बनाए रखने को कहता है। यह हिंदू, सिख , बौद्ध और जैन समुदाय को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। इस एक्ट में अयोध्या को छोड़कर देश मे बाकी धार्मिक स्थलों का स्वरूप वैसा ही बनाए रखने का प्रावधान है, जैसा 15 अगस्त, 1947 को था।

हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी महासंघ ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका का विरोध करते हुए जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। एक याचिका सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दायर की है।

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