पीएम ने भरोसा दिया है कि अगले पांच साल में भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था के क्लब में शामिल हो जाएगा। जी-20 का भारत में आयोजन भी इस दिशा में अहम कड़ी माना जा रहा है। इस तरह का आयोजन पाकिस्तान में हो पाना काफी दूर की कौड़ी है। चीन की नजर भारत के इस उभार पर टिकी है।
जी-20 शिखर सम्मेलन में अब एक हफ्ते से भी कम का समय बचा है। सात सितंबर को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन भारत आएंगे। आठ सितंबर को प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनकी द्विपक्षीय बैठक प्रस्तावित है। इसके साथ दुनिया के कई बड़े नेता नई दिल्ली आ रहे हैं। अवसर और समय देखकर प्रधानमंत्री मोदी ने अंतरराष्ट्रीय बिरादरी और देश की घरेलू राजनीति को बड़ा संदेश दे दिया है। प्रधानमंत्री का यह संदेश जी-20 में भारत के रणनीति की तरफ संकेत कर रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत जम्मू-कश्मीर हो या अरुणाचल कहीं भी जी-20 की बैठक कर सकता है। ऐसा कहकर पीएम मोदी ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं।
प्रधानमंत्री का यह वाक्य काफी महत्वपूर्ण है। कश्मीर का जिक्र करके प्रधानमंत्री ने जहां पाकिस्तान को संदेश दिया है, वहीं अरुणाचल को लेकर नया नक्शा जारी करने वाले चीन को भारत की संप्रभुता के बारे में बताया है। चीन के साथ लद्दाख में गतिरोध बना हुआ है। गौरतलब है कि चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के जी-20 शिखर सम्मेलन में शामिल होने को लेकर चीन ने कोई साफ संकेत नहीं दिया है। संभावना यही है कि शी जिनपिंग के प्रतिनिधि के तौर पर प्रधानमंत्री ली छ्यांग अपने देश का प्रतिनिधित्व करेंगे।
ऐसे दिया घरेलू राजनीति में संकेत
लद्दाख में चीन के साथ गतिरोध को लेकर विपक्ष के नेता राहुल गांधी लगातार इस मुद्दे को उठा रहे हैं। अपने इस बयान के जरिए प्रधानमंत्री ने देश की घरेलू राजनीति को भी संदेश देने की कोशिश की है। उनके संदेश से साफ है कि भारत अपने पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान दोनों की गैर जरूरी नाराजगी की कोई परवाह नहीं करता। देश की एकता, अखंड़ता और इसकी संप्रभुता से कोई समझौता नहीं किया जा सकता। भारत न तो दबता है, न झुकता है। अपने रास्ते पर चलता रहता है। उन्होंने इसी प्रतिबद्धता के साथ जी-20 का नारा वसुधैव कुटुम्बकम् पर भी अपना पक्ष रखा।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने उम्मीद जताई है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत में जी-20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे। इस बारे में चीन के आखिरी फैसले का सभी को इंतजार है। जी-20 की स्थापना दुनिया को आर्थिक रफ्तार देने के इरादे से 1999 में हुई थी। इसमें अर्थ व्यवस्था के प्रमुख कारक के रूप में प्रमुख राष्ट्र इससे जुड़े। 2022 में इसकी मेजबानी इंडोनेशिया ने की थी। इस बार भारत जी-20 की अध्यक्षता कर रहा है। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। एशिया में चीन एक बड़ी अर्थव्यवस्था है। अमेरिका के साथ जारी ट्रेड वॉर के दौर में वह खुद को उसके सामानांतर समझता है। जबकि भारत विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है।
पीएम ने भरोसा दिया है कि अगले पांच साल में भारत दुनिया की तीसरी अर्थव्यवस्था के क्लब में शामिल हो जाएगा। जी-20 का भारत में आयोजन भी इस दिशा में अहम कड़ी माना जा रहा है। इस तरह का आयोजन पाकिस्तान में हो पाना काफी दूर की कौड़ी है। चीन की नजर भारत के इस उभार पर टिकी है। अंतरराष्ट्रीय निवेश और अर्थव्यवस्था के आंकड़े पर गौर करें तो कोविड-19 संक्रमण काल के बाद से अंतरराष्ट्रीय कंपनियों का भारत में निवेश का रुझान बढ़ा है। इसके समानांतर चीन की अर्थव्यवस्था चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है।
घरेलू राजनीति में विरोधियों को दिया संदेश
अरुणाचल और कश्मीर में जी-20 की बैठक करने की प्रतिबद्धता दोहराना बड़ा संदेश है। यह संदेश लद्दाख सीमा में दाखिल चीन की सेना और इसे मुद्दा बनाने की विपक्ष की कोशिशों पर भी है। इसके अलावा प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा है कि देश में सांप्रदायिकता और भ्रष्टाचार के लिए कोई जगह नहीं है। गौरतलब है कि देश में राजस्थान, म.प्र., छत्तीसगढ़ समेत कुछ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके लिए दोनों राष्ट्रीय दलों के नेता प्रचार अभियान में भी जुटे हैं। इसे 2024 में प्रस्तावित लोकसभा चुनाव का सेमी फाइनल भी माना जा रहा है।
दूसरे 18 सितंबर से 22 सितंबर तक संसद का विशेष सत्र भी आहूत है। ऐसे में संभावना है कि सितंबर के आखिरी सप्ताह में कभी भी चुनाव आचार संहिता की घोषणा हो सकती है। इसे देखते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने समाचार एजेंसी को दिए साक्षात्कार में एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। वह इसके जरिए देश में राष्ट्रीय एकता, अखंडता, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती साख और चहुमुंखी विकास के साथ-साथ प्रबल होते राष्ट्रवाद का संदेश देना चाहते हैं।