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सुप्रीम कोर्ट ने कहा- नफरत फैलाने वाले भाषणों को परिभाषित करना काफी मुश्किल, समाधान के लिए बताया यह तरीका

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पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों का समाधान सामूहिक प्रयासों से ही खोजना संभव है। आप एक साथ आपस में बैठकर समाधान खोजने का प्रयास क्यों नहीं करते। घृणास्पद भाषणों की परिभाषा काफी कठिन है। कोर्ट का कहना है कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति बार-बार सुप्रीम कोर्ट न आये।

सांप्रादायिक बयानों और भड़काऊ भाषणों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों को परिभाषित करना काफी मुश्किल है। ऐसे मामलों से निपटने में सबसे बड़ी समस्या कानून और न्यायिक घोषणाओं के कार्यान्वयन और निष्पादन में है। हरियाणा में सांप्रदायिक हिंसा भड़कने के कुछ दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की।

पढ़िए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी की पीठ ने हरियाणा और दिल्ली एनसीआर के इलाकों में हिंदू संगठनों द्वारा आयोजित की जाने वाले रैलियों के खिलाफ भड़काऊ बयानों से संबंधित अन्य मामलों में सुनवाई कर रही थी। पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषणों का समाधान सामूहिक प्रयासों से ही खोजना संभव है। आप एक साथ आपस में बैठकर समाधान खोजने का प्रयास क्यों नहीं करते। घृणास्पद भाषणों की परिभाषा काफी कठिन है। कोर्ट का कहना है कि ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति बार-बार सुप्रीम कोर्ट न आये। सामाजिक तनाव किसी के हित में नहीं है।

शिकायत की नई प्रथा
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता का कहना है कि कानून बेहद स्पष्ट है। अगर कोई नफरत भरे भाषण देता है तो एफआईआर दर्ज की जा सकती है। कोई भी अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। उनका कहना है कि अब नफरत फैलाने वाले भाषणों की शिकायतों नजदीकी पुलिस थानों की बजाय सीधा सुप्रीम कोर्ट में की जा रही है। अवमानना कार्रवाई की मांग कर रहे हैं। इसके अलावा अब एक नई प्रथा देखने को मिल रही है कि लोग रैली से पहले ही आशंका व्यक्त करने लगते हैं कि भड़काऊ भाषण दिए जा सकते हैं। इसलिए वे कोर्ट से अग्रिम फैसले की मांग करते हैं।

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