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पीएम मोदी बोले- भारत की आशाओं और सपनों को आगे बढ़ाएगा मिशन, सोमनाथ बोले- सॉफ्ट लैंडिंग चुनौतीपूर्ण

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प्रधानमंत्री ने बताया कि चंद्रयान-1 से पहले तक चंद्रमा को सूखा, भूगर्भीय रूप से निष्क्रिय और निर्जन खगोलीय पिंड माना जाता था। लेकिन, चंद्रयान-1 वैश्विक चंद्र अभियानों के लिए पथ प्रदर्शक बनकर उभरा, क्योंकि इससे पहली बार चंद्रमा पर जल कणों की उपस्थिति की पुष्टि हुई।

चंद्रयान-3 के सफल लॉन्च को भारत की उम्मीदों और सपनों की उड़ान बताते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा, यह दिन अंतरिक्ष के क्षेत्र में स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया जाएगा। पीएम मोदी फिलहाल फ्रांस में हैं। उन्होंने सिलसिलेवार ट्वीट कर बताया, भारत का अंतरिक्ष क्षेत्र में बेहद समृद्ध इतिहास है। आप सभी से इस मिशन, अंतरिक्ष, विज्ञान और नवाचार में देश की प्रगति के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल करने का आग्रह करता हूं। पूरा भरोसा है कि इससे आप सभी को गर्व होगा।

चंद्रयान-1 वैश्विक चंद्र अभियानों के लिए पथ प्रदर्शक बनकर उभरा
प्रधानमंत्री ने बताया कि चंद्रयान-1 से पहले तक चंद्रमा को सूखा, भूगर्भीय रूप से निष्क्रिय और निर्जन खगोलीय पिंड माना जाता था। लेकिन, चंद्रयान-1 वैश्विक चंद्र अभियानों के लिए पथ प्रदर्शक बनकर उभरा, क्योंकि इससे पहली बार चंद्रमा पर जल कणों की उपस्थिति की पुष्टि हुई। चंद्रयान-1 की इस खोज को दुनियाभर के 200 से ज्यादा वैज्ञानिक शोध पत्रों में प्रकाशित किया जा चुका है। चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर डाटा से पहली बार चंद्रमा पर क्रोमियम, मैंगनीज व सोडियम की उपस्थिति का पता लगाया गया। चंद्रमा पर मौजूद सोडियम का वैश्विक मानचित्र तैयार किया गया। क्रेटरों के आकार व वितरण की सटीक जानकारी मिलनी शुरू हुई, चंद्रमा की सतह पर बर्फ के स्पष्ट प्रमाण मिले। चंद्रयान-2 की तमाम खोजें अब तक 50 वैज्ञानिक शोधपत्रों में प्रकाशित व चित्रित हो चुकी हैं।

चंद्रमा के चुंबकीय विकास की अधिक जानकारी देगा
प्रधानमंत्री ने कहा, चंद्रयान-1 और 2 से मिली जानकारियों की बदौलत अब चंद्रमा को एक गतिशील व भूवैज्ञानिक रूप से सक्रिय पिंड के रूप में देखा जाता है। शायद भविष्य में, यह बसने योग्य हो सकता है। हमारे तीसरे चंद्र मिशन ने अब अपनी यात्रा शुरू की है। पीएम मोदी ने बताया कि चंद्रयान-3 को कक्षा बढ़ाने की प्रक्रिया के बाद लूनर ट्रांसफर ट्रेजेक्टरी में डाला जाएगा और 3 लाख किमी से अधिक की दूरी तय करते हुए, यह आने वाले कुछ सप्ताह में चंद्रमा तक पहुंच जाएगा। यान पर मौजूद वैज्ञानिक उपकरण चंद्रमा की सतह का अध्ययन करेंगे और हमारे ज्ञान को बढ़ाएंगे। चंद्रयान-3 अभियान चंद्रमा के चुंबकीय विकास की अधिक जानकारी देगा। इसरो जैसे ही चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग कराने में कामयाब होगा, भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा।

अब भी चुनौतीपूर्ण है चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग : सोमनाथ
इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने लॉन्च के बाद बताया कि अब सबसे बड़ी चुनौती चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करना है। उन्होंने बताया कि पृथ्वी जैसे वातावरण में लैंडर को पैराशूट के जरिये सॉफ्ट लैंड कराया जा सकता है। लेकिन, चंद्रमा पर यह संभव नहीं, ऐेसे में थ्रस्टर की मदद से लैंडर की गति कम करते हुए बहुत सावधानी से लैंडिंग करनी होगी। इसके अलावा चांद के अंधेरे पक्ष की सतह की जानकारी नहीं होना भी मुश्किल खड़ी करता है। यहां, बहुत मंद तिरछी रोशनी होती है, जिसकी वजह से परछाइयां बहुत लंबी बनती हैं, इससे सतह का सटीक आकलन कर पाना मुमकिन नहीं है।

सोमनाथ ने कहा, लैंडर व सतह के बीच की सटीक दूरी पता लगाने का भी कोई ऐसा जरिया नहीं है, जिससे सही समय पर तेजी से थ्रस्टर को चलाकर गति धीमी की जा सके।  ऐसे में जब लैंडर को उतारा जाएगा, तो पूरी प्रक्रिया के दौरान थ्रस्टर की मदद से इसकी गति को धीमा किया जाएगा, हालांकि इसमें ईंधन के खत्म होने का जोखिम बना रहता है। बहरहाल, इसरो ने इस बार पिछले अभियान की नाकामयाबी से सबक लेकर और उन कमियों को दूर कर लिया है, जिनकी वजह से 2019 में विक्रम लैंडर की सॉफ्ट लैंडिग नहीं हो पाई थी।

14 दिन में रचेंगे इतिहास
सोमनाथ ने बताया कि लैंडर के साथ गए रंभा व आईएलएस 14 दिन सक्रिय रहेंगे। इस दौरान सभी पेलोड ऐसे प्रयोगों को अंजाम देंगे, जो पहले कभी नहीं हुए। इस दौरान पेलोड की मदद से चंद्रमा के वायुमंडल व सतह का अध्ययन किया जाएगा। इसके अलावा रोवर चंद्रमा की खनिज संरचना को समझने के लिए सतह की खुदाई भी करेगा। लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान जब अलग होंगे, तो लैंडर इसकी तस्वीरें भी लेगा। रोवर चंद्रमा की सतह पर कंपन का पता लगाएगा। लेजर बीम के जरिये चट्टान को पिघलाने का प्रयास करेगा, ताकि उत्सर्जित गैसों का अध्ययन हो सके।

चंद्रमा पर दिन में लैंडिंग
सोमनाथ ने बताया कि चंद्रयान-3 लैंडर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास 70 डिग्री अक्षांश पर भेजेगा, जहां इसके रात होने से पहले 14 पृथ्वी दिवस तक रोशनी रहने की उम्मीद है। रात में तापमान में भारी गिरावट के बीच ज्यादातर सिस्टम 15 दिनों में खराब हो जाएंगे। अगर, ये 15 दिन बाद भी ठीक रहे और फिर से रोशनी पहुंचने पर इनकी बैटरी चार्ज हो पाई, तो रोवर सहित दूसरे पेलोड का लंबी अवधि के लिए इस्तेमाल हो पाएगा।

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