यूक्रेन की सदस्यता का मुद्दा नाटो सदस्यों के बीच दरार की वजह भी बन सकता है। कुछ सदस्यों का मानना है कि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता दी जानी चाहिए।
रूस-यूक्रेन में युद्ध के बीच लिथुआनिया की राजधानी विनियस में 11-12 जुलाई को होने वाले नाटो के शिखर सम्मेलन में संगठन की एकजुटता की अग्निपरीक्षा होगी। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सामने सबसे बड़ी चुनौती यूक्रेन की सदस्यता होगी, जिसका उसे पिछले साल भरोसा भी दिया गया था।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैक सुलिवन का कहना है कि सम्मेलन में कोशिश होनी चाहिए कि यूक्रेन को नाटो में शामिल कराने पर सदस्य देश ज्यादा ध्यान दें। दुनिया के सबसे बड़े सुरक्षा गठबंधन नाटो को 32वें सदस्य के रूप में स्वीडन को शामिल करने के लिए सहमति तक पहुंचने में भी संघर्ष करना पड़ रहा है।
संगठन में टकराव से पुतिन को फायदा
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के कार्यकाल के दौरान नाटो में अमेरिकी राजदूत रहे डगलस ल्यूट के अनुसार, संगठन सदस्यों की एकजुटता में दरार पड़ती है, तो इसका सबसे ज्यादा फायदा रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को होगा। उन्होंने कहा, पुतिन सोच रहे थे कि रूस-यूक्रेन युद्ध से नाटो बिखरेगा, लेकिन हुआ उल्टा। इस युद्ध ने नाटो को और मजबूत किया है।
स्वीडन की सदस्यता के खिलाफ है तुर्किये
सम्मेलन में एक बार फिर लोगों की नजर तुर्किये के राष्ट्रपति रेसेप तैयप अर्दोआन पर होगी, जो स्वीडन की सदस्यता के खिलाफ हैं। तुर्किये का मानना है कि स्वीडन व फिनलैंड कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी और गेलन आंदोलनकारियों को शरण देता है।
n यूक्रेन परमाणु संयंत्र पर भी हो चर्चा- रूस
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने कहा कि नाटो के शिखर सम्मेलन में यूक्रेन के जपारोझझिया परमाणु संयंत्र पर भी चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि यूक्रेन परमाणु संयंत्र पर व्यवस्थित तरीके से प्रहार कर रहा है।