जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की पीठ ने मौजूदा एकनाथ शिंदे सरकार के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति को रद्द करने के दिसंबर 2022 के आदेश को निरस्त करने से इन्कार कर दिया।
जस्टिस गौतम पटेल और जस्टिस नीला गोखले की पीठ ने मौजूदा एकनाथ शिंदे सरकार के अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति को रद्द करने के दिसंबर 2022 के आदेश को निरस्त करने से इन्कार कर दिया। पीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में रद्द करने के आदेश को चुनौती देने वाली रामहरि दगड़ू शिंदे, जगन्नाथ मोतीराम अभ्यंकर और किशोर मेधे की याचिका खारिज कर दी। अभ्यंकर आयोग के अध्यक्ष थे, जबकि अन्य दो इसके सदस्य थे। इन्हें 2021 में तीन साल की अवधि के लिए नियुक्त किया गया था।
सरकारी आदेश को नहीं कह सकते भेदभावपूर्ण
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ताओं के पास पदों पर बने रहने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है और इसलिए उनकी नियुक्ति रद्द करने के सरकारी आदेश को मनमाना या भेदभावपूर्ण नहीं ठहराया जा सकता है। पीठ ने कहा कि आयोग न तो वैधानिक था और न ही संविधान के किसी प्रावधान के तहत अनिवार्य था। इसलिए याचिकाकर्ताओं की नियुक्ति का कोई वैधानिक आधार नहीं था। याचिकाकर्ताओं को बिना किसी चयन प्रक्रिया का पालन किए या आम जनता से आवेदन आमंत्रित किए बिना सरकार के विवेकाधिकार पर नामित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने दावा किया था कि जब भी सरकार में बदलाव होता है तो अपने समर्थकों को प्रशासन में जगह देने के लिए परिवर्तन किए जाते हैं। उनका कहना था कि यह न्याय सिद्धांत के खिलाफ है। याचिका के अनुसार, जून 2022 में शिंदे और नए प्रशासन के सत्ता में आने के बाद सरकार ने आदिवासी उप योजना परियोजनाओं में 29 परियोजना स्तरीय (योजना समीक्षा) समितियों में नियुक्त 197 अध्यक्षों और गैर-सरकारी सदस्यों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया था।