आजमगढ़ की सभी 10 सीट पर सपा का कब्जा है। यहां पहले नगर पालिका व पंचायत मिलाकर 13 सीटें थी, जो इस बार बढ़कर 16 हो गई हैं। आजमगढ़ मुख्यालय वासी सीट पर करीब 35 साल बाद सपा ने कब्जा जमाया है। इसी तरह यहां सपा दो से बढ़कर पांच सीट जीतने में कामयाब रही है।
समाजवादी पार्टी ने निकाय चुनाव में शत प्रतिशत विधायक वाले जिले में अपना दबदबा बरकरार रखा है। यहां पार्टी बढ़त बनाने में कामयाब रही। आजमगढ़ नगर पालिका परिषद गठन के बाद पहली बार सपा ने अध्यक्ष पद पर विजय हासिल किया है।आजमगढ़ की सभी 10 सीट पर सपा का कब्जा है। यहां पहले नगर पालिका व पंचायत मिलाकर 13 सीटें थी, जो इस बार बढ़कर 16 हो गई हैं। आजमगढ़ मुख्यालय वासी सीट पर करीब 35 साल बाद सपा ने कब्जा जमाया है। इसी तरह यहां सपा दो से बढ़कर पांच सीट जीतने में कामयाब रही है।
भाजपा दो से घटकर एक पर आ गई है। यहां नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर 10 निर्दल जीते हैं। इसमें चार सपा के बताए जा रहे हैं। क्योंकि पार्टी ने इन नगर पंचायतों में उम्मीदवार नहीं उतारा था। इसी तरह अंबेडकर नगर की सभी पांच विधानसभा क्षेत्र पर सपा विधायक हैं। यहां निकाय चुनाव में सपा एक से बढ़कर दो हो गई, जबकि बसपा दो से घटकर एक पर आ गई है। भाजपा एक सीट पर बरकरार रही। इसी तरह तीन निर्दल में राजे सुल्तानपुर से सपा के बागी विनोद विजयी हुई है, जबकि टाडा से सबाना भी सपा से जुड़ी रही हैं। शामली में तीनों विधानसभा क्षेत्र पर सपा साबिज है। नगर निकाय चुनाव में यहां एक सीट पर सपा और दो पर रालोद विजेता रही, जबकि बसपा दो से घटकर एक पर आ गई और भाजपा एक से बढ़कर दो हो गई है। चार निर्दलीय जीतें हैं।
दरअसल, नगर निकाय चुनाव भले ही सीमित क्षेत्र और शहरी मतदाताओं के जरिए होते हैं। लेकिन, इनके संदेश दूरगामी होते हैं। साथ ही जब ये चुनाव लोकसभा चुनाव से पहले उसके रिहर्सल के तौर पर लड़े गए हों, इनका महत्व और भी बढ़ जाता है। पिछड़ा वर्ग आरक्षण की नई व्यवस्था से हुए नगर निकाय के चुनाव नतीजों ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी कई महत्वपूर्ण संदेश दिए हैं।
इस चुनाव ने रणनीतिक रूप से फिर चूके मुख्य विपक्षी दल सपा के लिए संदेश तो दिया ही है, पहली बार शत प्रतिशत नगर निगमों व अन्य निकायों में पहले से बेहतर प्रदर्शन कर जीत हासिल करने वाली भाजपा को भी अलर्ट किया है।नतीजे यह भी बता रहे हैं कि बसपा को मजबूती से मैदान में आने के लिए पुराने प्रयोगों से बात बनने वाली नहीं है और आम आदमी पार्टी व एआईएमआईएम को नजरअंदाज कर रणनीति बनाना, आगे मुख्य राजनीतिक दलों को भारी पड़ सकता है। इस चुनाव में सिंबल पर चुनाव में हिस्सा लेने वाले दलों को न सिर्फ उनकी चूक का एहसास कराया है, बल्कि लोकसभा चुनाव के लिए उन्हें सजग भी किया है।
नतीजों से स्पष्ट हो गया है कि शहरों में भाजपा का दबदबा कायम है। पार्टी इन नतीजों को ऐतिहासिक करार देकर लोकसभा चुनाव की ऊंचे मनोबल से तैयारी का आगाज कर सकती है। लेकिन, कई जगह उसके अपने ही विधायक-सांसद चिंता का सबब बने हैं। कई सांसदों-विधायकों को अपने शुभचिंतकों के सिवा कोई दूसरा पसंद नहीं है।सिर पर लोकसभा चुनाव होने के बावजूद कई जगह सांसदों-विधायकों ने मनचाहे प्रत्याशी को टिकट न मिलने से न सिर्फ भितरघात किया, बल्कि कई जगह तो बागी लड़ाकर उनकी मदद भी की। लोकसभा चुनाव से पहले भितरघातियों व बागियों को लेकर भाजपा को स्पष्ट संदेश देना होगा। नगर पंचायतों व पालिका परिषदों के कई सीटों के नतीजे इसकी बानगी हैं।दूसरी तरफ, सत्ता विरोधी मतों को सहेजने में सपा रणनीतिक रूप से फेल साबित हुई। प्रत्याशी चयन से लेकर प्रचार तक उसकी यह चूक नजर आई है। मथुरा व बरेली में प्रत्याशी पर अंत तक दुविधाजनक स्थिति और कई शहरों में प्रत्याशी घोषणा के साथ ही कमजोर चेहरे देने का संदेश, सपा के लिए भारी पड़ा।पार्टी शाहजहांपुर में तो अपना प्रत्याशी ही भाजपा में जाने से नहीं रोक पाई। रही सही कसर शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों के नियमित अंतराल पर सपा छोड़ भाजपा में शामिल होने से पूरी हो गई। शिवपाल के साथ आने से एकजुट नजर आया परिवार ऐन चुनाव के बीच अलग-थलग नजर आने लगा। सपा के लिए लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के लिए नई रणनीति के साथ आने का संदेश बड़ा साफ है।