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भारत @142.86 करोड़: काम करने वालों की बढ़ी आबादी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत, ये चुनौतियां भी लेंगी जन्म

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India Population Surpass China: एक अनुमान के अनुसार, देश में कामकाजी आबादी 97 करोड़ के करीब है।  इसे अच्छा संकेत माना जा रहा है। बड़ी आबादी में समृद्धि बढ़ाने से स्थानीय उपभोग बढ़ेगा, यह अर्थव्यवस्था को बाहरी झटके को सहने की क्षमता देगा।

भारत विश्व में सर्वाधिक आबादी वाला देश बन गया है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) की ‘स्टेट ऑफ वर्ल्ड पॉपुलेशन रिपोर्ट’ ने यह दावा किया। बुधवार को संगठन के डैशबोर्ड के अनुसार, भारतीयों की आबादी 142.86 करोड़ और चीन की 142.57 करोड़ है। रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका इन दोनों से बहुत पीछे 34 करोड़ के साथ तीसरे नंबर पर है। भारत की आबादी का बड़ा हिस्सा युवाओं का होगा, जो लंबी अवधि में हितकारी माना जा रहा है।

बड़ा युवा वर्ग न केवल कामकाजी वर्ग के रूप में, बल्कि एक बड़े उपभोगकर्ता वर्ग के रूप में भी देखा जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार, देश में कामकाजी आबादी 97 करोड़ के करीब है।  इसे अच्छा संकेत माना जा रहा है। बड़ी आबादी में समृद्धि बढ़ाने से स्थानीय उपभोग बढ़ेगा, यह अर्थव्यवस्था को बाहरी झटके को सहने की क्षमता देगा। समृद्ध आबादी के ज्यादा उपभोग से नए अवसर भी पैदा होंगे।

संयुक्त राष्ट्र के फरवरी 2023 तक के डाटा के आधार पर विभिन्न विशेषज्ञों ने दावा किया था कि अप्रैल 2023 में भारत आबादी में चीन को पीछे छोड़ देगा। हालांकि, इसकी कोई निश्चित तारीख रिपोर्ट में नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के अधिकारियों का मानना है कि चीन व भारत से मिले डाटा की अनिश्चितता से तारीख बताना संभव नहीं। भारत में 2011 के बाद अगली जनगणना लंबित है।

वर्ष 2050 तक आठ देशों में दुनिया की 50 फीसदी आबादी
रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2050 तक भारत, पाकिस्तान, कांगो, मिस्र, इथोपिया, नाइजीरिया, फिलीपीन व तंजानिया में दुनिया के 50 प्रतिशत नागरिक रह रहे होंगे, रोचक ढंग से चीन इन 8 देशों में नहीं है। 

  • अजरबैजान में 100 लड़कियों पर 113 लड़कों और चीन में 112 लड़कों का जन्म यहां की आबादी में बड़े पैमाने पर बढ़ती लैंगिक असमानता बताता है। वैश्विक औसत 100 लड़कियों पर 106 लड़कों का जन्म है। बीते 3 दशकों में जिन 12 देशों में यह अनुपात ज्यादा बिगड़ा उनमें भारत भी शामिल है।
  • भारत की आबादी दोगुनी होने में 75 वर्ष लगे, विश्व को भी 76 वर्ष ही लगे। यानी देश की जनसंख्या वृद्धि दर वैश्विक औसत के करीब रही।

बढ़ती आबादी से चिंतित भारतीय
रिपोर्ट में 1007 भारतीयों सहित करीब 7.8 हजार लोगों पर किए सर्वे के हवाले से कहा गया कि 63 प्रतिशत भारतीयों में बढ़ती जनसंख्या से चिंताएं घर कर चुकी हैं। वे इसकी वजह से कई आर्थिक मसले खड़े होते देख रहे हैं। आर्थिक के साथ-साथ भारतीयों को पर्यावरण, मानवाधिकार, यौन अधिकार व प्रजनन स्वास्थ्य पर भी इसका दुष्प्रभाव नजर आ रहा है। हालांकि, रिपोर्ट में इससे चिंता न करने की बात कही गई है।

रिपोर्ट में बताया गया कि 2021 में भारत ने जबरन परिवार नियोजन पर अपना विरोध सामने रखा था। संसद में कहा गया कि सरकार ऐसी नीतियों का समर्थन नहीं करती, क्योंकि इनके नुकसान ही सामने आए हैं।

भारत और चीन दोनों देशों में घट रही आबादी, इसलिए चिंता की जरूरत नहीं
रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया की कुल 804.5 करोड़ आबादी में से एक-तिहाई लोग चीन व भारत में रहते हैं। लेकिन अब दोनों ने ही जनसंख्या वृद्धि को धीमा किया है।

चीन में बीते छह दशकों में पहली बार आबादी घटी है। वहीं, भारत में वर्ष 2011 में जनसंख्या की सालाना वृद्धि दर 1.2 प्रतिशत रही। इसमें भी कमी दर्ज की गई। यह आंकड़ा इससे पहले के दशक में 1.7 प्रतिशत था।

कौशल विकास समान शिक्षा पर देना होगा जोर
एजेंसी की भारत प्रतिनिधि आंद्रिया वोग्नर के अनुसार बड़ी आबादी से डरने की जरूरत नहीं है। नागरिकों को अधिकार मिलते रहें, तो इसे प्रगति और विकास का चिह्न मानना चाहिए।

  • आंद्रिया के अनुसार, सवाल उठाने के बदले 140 करोड़ लोगों को 140 करोड़ अवसरों की तरह देखना चाहिए। इनमें से करीब 25.4 करोड़ लोग 15 से 24 वर्ष आयु वर्ग में आते हैं। वे इनोवेशन, नई सोच और लंबे समय काम आने वाले समाधान का स्रोत बन सकते हैं।
  • आंद्रिया बताती हैं कि महिलाओं व लड़कियों को समान शिक्षा व कौशल विकास के अवसर और तकनीक व डिजिटल इनोवेशन तक पहुंच देकर ज्यादा तेजी से आगे बढ़ा जा सकता है। भारतीय संगठन पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की अधिकारी पूनम मुतरेजा के अनुसार भारत ने अपनी आबादी को नियंत्रित रखने में कई सही कदम उठाए हैं।

पाकिस्तान में 35 वर्ष में दोगुना आबादी
यूक्रेन व नाइजर को महज 19, कांगो व अंगोला को 23, सोमालिया व जांबिया को 25, नाइजीरिया को 29 और पाकिस्तान को महज 35 वर्ष आबादी दोगुना करने में लगे। चीन का आंकड़ा रिपोर्ट में नहीं।

नौ साल वृद्धि औसत उम्र में

  • 76 वर्ष होगी औसत वैश्विक उम्र 2023 में जन्मी महिला की।
  • 71 वर्ष होगी औसत वैश्विक उम्र 2023 में जन्मे पुरुष की।

(1990 की तुलना में महिला-पुरुष की औसत उम्र में करीब नौ साल की वृद्धि दर्ज की गई। भारत में महिलाओं की आैसत उम्र वैश्विक आंकड़े की तुलना में दो वर्ष कम होगी। पुरुषों की 71 वर्ष ही रहेगी।)

भारत : 26% आबादी 10-24 वर्ष के बीच

0 से 14 वर्ष 25 25 17 36 18
10 से 19 16 18 12 22 13
10 से 24 24 26 18 32 19
15 से 64 65 68 69 60 65
65 से अधिक 10 7 14 4 18
टीएफआर 2.3 2 1.2 3.3 1.7
(टीएफआर व उम्र के अलावा बाकी आंकड़े कुल आबादी का फीसदी)

चीन को यह भी गवारा नहीं : संख्या ही नहीं, गुणवत्ता पर भी निर्भर हैं लाभ
दुनिया की सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश की हैसियत भारत से गंवाने पर चीन ने कहा कि उसके पास अब भी 90 करोड़ के करीब ‘क्वालिटी’ कामगार हैं, जो उसके विकास को तेजी देते रहेंगे। यूएन रिपोर्ट के बाद प्रतिक्रिया में चीन के विदेश मंत्रालय प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा, जनसंख्या से मिलने वाले फायदे संख्या पर नहीं, गुणवत्ता पर भी निर्भर करते हैं। जैसे आबादी महत्वपूर्ण है, वैसे ही प्रतिभा भी। वेनबिन ने कहा, चीन की आबादी 140 करोड़ के करीब है। इनमें से कामकाजी उम्र के नागरिकों की संख्या 90 करोड़ के आसपास है।

मुश्किलें : बच्चों का जन्म घटा, हर तीसरा नागरिक बुजुर्ग
साल 2022 में चीन की आबादी 8.50 लाख घटी। इस साल 9.56 लाख बच्चे पैदा हुए, जो 2021 के 10.62 लाख से कम हैं। प्रति 1 हजार 6.77 बच्चे पैदा हुए, जबकि 2021 में संख्या 7.52 थी। यह चीन की आबादी के नकारात्मक चरण में पहुंचने का संकेत है। वहीं, चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के अनुसार 2020 के आखिर तक देश में 60 वर्ष से अधिक उम्र के 26.4 करोड़ नागरिक थे। 2035 तक यह संख्या 40 करोड़ पहुंच जाएगी, यह कुल आबादी का 30 प्रतिशत हिस्सा होगी।

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