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हिमाचल के कांगड़ा में नौ सीटें जीतने वाली पार्टी की बनती आई है सरकार, जानें वजह

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हिमाचल की सियासत में कांगड़ा जिला ही राजनीतिक दलों के लिए सत्ता की राह तैयार करता रहा है। माना जाता है कि कांगड़ा से जिस दल की जितनी ज्यादा सीटें, उतनी ही उसके सत्ता में आने की गारंटी पक्की। वर्ष 1998 से चुनाव-दर-चुनाव हिमाचल की सियासत में यह ट्रेंड चलता आ रहा है। बारी-बारी प्रदेश की सत्ता संभालते आए भाजपा और कांग्रेस इस जिले से 9 से लेकर 11 सीटें जीतकर प्रदेश की सियासत के सिरमौर बनते रहे हैं। सत्ता से जुड़ी इस गणित को समझ कर भाजपा और कांग्रेस दोनों पार्टियों और उसके नेताओं का ज्यादा फोकस भी कांगड़ा की जंग पर रहता आया है। इसी कड़ी में वर्ष 2022 की चुनावी जंग में भी दोनों दलों ने ध्यान केंद्रित कर अपने-अपने प्रत्याशियों के लिए दिन-रात पसीना बहाया है।

बता दें कि पहले जिला कांगड़ा में 16 विधानसभा क्षेत्र होते थे। वर्ष 2012 में पुनर्सीमांकन के बाद थुरल विधानसभा क्षेत्र खत्म हो गया। थुरल सीट के इलाकों को आसपास की विधानसभा में समायोजित किया गया। तबसे जिला कांगड़ा में 15 सीटें हैं। वर्ष 1998 के विधानसभा चुनाव में कांगड़ा जिले से भाजपा ने 10 सीटों के साथ बड़ी जीत दर्ज की। कांग्रेस पार्टी को पांच सीटें मिली थीं। एक निर्दलीय प्रत्याशी को जीत मिली थी। कांगड़ा ने सत्ता की राह तैयार की और प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में कांगड़ा से कांग्रेस को 11 और भाजपा को चार सीटों पर विजय मिली। एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। कांगड़ा में आगे रहने वाली कांग्रेस के पास सत्ता की चाबी आ गई।

2007 में भाजपा के नौ और कांग्रेस के चार प्रत्याशी जीते। बसपा का एक और एक निर्दलीय जीतकर विधानसभा पहुंचे थे। तब सरकार भाजपा की बनी। 2012 में फिर कांग्रेस की सरकार बनी, उस दौरान भी कांगड़ा जिले से 10 सीटें कांग्रेस, भाजपा की तीन और दो निर्दलीय की रहीं। 2017 के विधानसभा चुनाव में 11 सीटें भाजपा, चार कांग्रेस को मिलीं। एक निर्दलीय उम्मीवार जीता। ऐसे में प्रदेश में अभी भाजपा की सरकार है। अब वर्ष 2022 चुनावी जंग निपट चुकी है और इंतजार आठ दिसंबर को आने वाले नतीजों का है। अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि इस बार कांगड़ा जिला किस पार्टी के लिए सत्ता की राह को तैयार करता है।

जिला कांगड़ा से शांता कुमार रहे हैं मुख्यमंत्री
प्रदेश के सबसे बड़े और सबसे ज्यादा विधानसभा सीटों वाले जिला कांगड़ा से एक ही बार मुख्यमंत्री बना है। वर्ष 1977 में शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे। प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका होने के बावजूद कांगड़ा को शांता कुमार के बाद दूसरा मुख्यमंत्री नहीं मिला है।

कांगड़ा की सियासत का महाभारत कनेक्शन
कांगड़ा को प्राचीन समय में त्रिगर्त नाम से जाना जाता रहा है। यहां की राजनीतिक और सांस्कृतिक विरासत भी बहुत पुरानी है। त्रिगर्त के राजा रहे सुशर्मा का जिक्र महाभारत में भी आता है। सुशर्मा ने कौरव पक्ष की ओर से महाभारत का युद्ध लड़ा था। इस तरह से देश की प्राचीन राजनीति में भी कांगड़ा की भूमिका रही है।

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