कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन धनतरेस का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष धनतेरस का पर्व 23 अक्टूबर को मनाया जाएगा। धनतेरस को भगवान धन्वंतरी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन समुद्र मन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी, भगवान कुबेर की भी पूजा की जाती है। मान्यता है कि धनतेरस के नई वस्तुएं सोना, चांदी, कपड़े, वाहन, बर्तन आदि खरीदना काफी शुभ होता है।
जैन आगम में धनतेरस को धन्य तेरस या ध्यान तेरस भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गये थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुये। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
ज्योतिषाचार्य पं. देवेन्द्र शुक्ल शास्त्री के मुताबिक हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास में त्रयोदशी तिथि 22 अक्टूबर को शाम 6.02 से शुरू हो रही है और इसका समापन अगले दिन 23 अक्टूबर को शाम 6.03 पर होगा। इस दिन प्रदोष काल शाम 5.52 मिनट से रात 8.24 तक रहेगा और वृषभ काल शाम 7.10 से रात 9.06 तक रहेगा। धनतेरस के दिन त्रिपुष्कर योग, इंद्र योग का निर्माण हो रहा है। इन सभी योग में पूजा करना शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब भगवान धन्वन्तरि प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है।
धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है, जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। सन्तोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास सन्तोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है।
धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस दिन यम के नाम का दिया जलाया जाता है। जिससे अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।