सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पुरुषों को तलाक का एकतरफा हक देने वाले तलाक-ए-हसन को चुनौती देने वाली याचिका पर आज सुनवाई की। सुप्रीम कोर्ट ने तलाक पीड़िता से पूछा कि क्या आप आपसी सहमति से इस तरह तलाक लेना चाहेंगी जिसमें आपको मेहर से अधिक मुआवजा दिलाया जाए। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि पहली नजर में तलाक-ए-हसन में गड़बड़ी नहीं है, क्योंकि महिला के पास खुला तलाक का विकल्प मौजूद है। बेंच ने इस मामले पर अगली सुनवाई 29 अगस्त को करने का आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील पिंकी आनंद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को गैरकानूनी करार दिया लेकिन तलाक-ए-हसन का मामला अनिर्णीत रहा। तब कोर्ट ने पूछा कि क्या याचिकाकर्ता आपसी सहमति से इस तरह तलाक लेना चाहेंगी जिसमें आपको मेहर से अधिक मुआवजा दिलाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम नहीं चाहते कि यह किसी और तरह का एजेंडा बने।
तलाक-ए-हसन की शिकार मुंबई की नाजरीन निशा और गाजियबाद की बेनजीर हिना ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। याचिका में मांग की गई है कि मुस्लिम लड़कियों को भी बाकी लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए। वकील अश्विनी उपाध्याय के जरिये दाखिल याचिका में बेनजीर ने बताया है कि उनकी 2020 में दिल्ली के यूसुफ नकी से शादी हुई थी। उनका सात महीने का बच्चा भी है। दिसंबर 2021 में पति ने एक घरेलू विवाद के बाद उन्हें घर से बाहर कर दिया। पिछले पांच महीने से उनसे कोई संपर्क नहीं रखा। अब अचानक अपने वकील के जरिये डाक से एक पत्र भेजा है जिसमें कहा गया है कि वह तलाक-ए-हसन के तहत पहला तलाक दे रहे हैं।
याचिका में कहा गया है कि धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर मुस्लिम महिलाओं को कानून की नजर में समानता और सम्मान से जीवन जीने जैसे मौलिक अधिकारों से वंचित नहीं रखा जा सकता है। याचिका में मांग की गई है कि तलाक-ए-हसन और अदालती तरीके से न होने वाले दूसरे सभी किस्म के तलाक को असंवैधानिक करार दिया जाए। याचिका में शरीयत कानून की धारा 2 को रद्द करने का आदेश देने की मांग की गई है। याचिका में डिसॉल्यूशन ऑफ मुस्लिम मैरिज एक्ट को पूरी तरह निरस्त करने की मांग की गई है।
आशा खबर/ रेशमा सिंह पटेल