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भारत ने तत्काल संयुक्त राष्ट्र में सुधार की मांग को बताया जरूरी, कहा-ऐसा किए बिना नहीं होगा महासभा का उद्धार

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’ भारत ने इस बात पर जोर दिया कि आमसभा में जो विचार-विमर्श हो, वह समावेशी होना चाहिए और हर सदस्य देश को समान रूप से भागीदारी की अनुमति हो। माथुर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के एजेंडे को इस तरह बनाया जाना चाहिए कि इसमें होने वाली चर्चा और अधिक सूचना युक्त तथा प्रभावी हो।

संयुक्त राष्ट्रः भारत ने संयुक्त राष्ट्र में तत्काल सुधार को जरूरी बताया है। भारत ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के पुनरुद्धार को सुरक्षा परिषद सहित संयुक्त राष्ट्र के समग्र सुधार के व्यापक संदर्भ में देखा जाना चाहिए, ताकि यह वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करे और बढ़ती जटिल चुनौतियों का सामना कर सके। संयुक्त राष्ट्र स्थित भारत के स्थायी मिशन में दूत प्रतीक माथुर ने कहा, ‘‘भारत की हमेशा से राय रही है कि महासभा का पुनरुद्धार तभी किया जा सकता है जब संयुक्त राष्ट्र के प्राथमिक विचार-विमर्श, नीति-निर्माण और प्रतिनिधि अंग के रूप में इसकी स्थिति का अक्षरशः सम्मान किया जाए।’’

माथुर ने महासभा के कार्यों के पुनरुद्धार पर अस्थायी कार्य समूह को बृहस्पतिवार को संबोधित करते हुए कहा कि 193-सदस्यीय महासभा के पुनरुद्धार को संयुक्त राष्ट्र के समग्र सुधार के व्यापक संदर्भ में भी देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की सफलता उसके चार्टर में उल्लेख के अनुसार उसकी प्रमुख विचार-विमर्श और नीति निर्माण इकाई के रूप में भूमिका में महासभा के प्रभाव पर निर्भर करती है। भारत ने वैश्विक शासन संरचना में इस सुधार को ‘भविष्य की संधि’ में वास्तविकता बनाने का स्पष्ट आह्वान किया, जिस पर सदस्य देश सितंबर में उच्च-स्तरीय संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के दौरान शिखर सम्मेलन से पहले बातचीत कर रहे हैं।

सुधार के लिए उपयुक्त है 21वीं सदी

भारत की दृष्टि में यह सुधार 21वीं सदी के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उपयुक्त है। माथुर ने कहा कि महासभा के एजेंडे के विस्तार के साथ, वार्षिक आम चर्चा धीरे-धीरे महासभा के प्रत्येक नए सत्र के आरंभ में होने वाले अनेक उच्च-स्तरीय आयोजनों में से एक बनती जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत मानता है कि महासभा के पुनरुद्धार के लिए वार्षिक आम चर्चा की शुचिता बहाल होनी चाहिए। माथुरा ने कहा कि आमसभा का सार-तत्व इसकी अंतरसरकारी प्रकृति में निहित है। उन्होंने कहा, ‘‘यह वैश्विक संसद के सबसे करीब है। बहुपक्षवाद की सफलता, दुनिया के सामने आने वाली चुनौतियों की बढ़ती संख्या पर ध्यान देने के लिए महासभा की सफलता और प्रभावशीलता पर निर्भर करती है, जो राष्ट्रीय सीमाओं और क्षेत्रों से परे हैं।’

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