बिहार के बाद अब मध्य प्रदेश में जातिगत जनगणना पर हलचल तेज हो गई है। रविवार को कांग्रेस नेता कमलनाथ ने कहा कि पार्टी की सरकार बनने पर प्रदेश में जातीय गणना कराई जाएगी। हालांकि, विशेषज्ञों की राय है कि चूंकि जनगणना प्रक्रिया संघ सूची के अंतर्गत आती है, इसलिए राज्यों को इसे संचालित करने का अधिकार नहीं है।
देश में एक बार फिर जातिगत जनगणना को लेकर हलचल शुरू हो गई है। दरअसल, इस बार मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस ने घोषणा की है कि पार्टी की सरकार बनने पर प्रदेश में जातिगत जनगणना कराई जाएगी। इससे पहले बिहार सरकार भी इस तरह का सेंसस करा रही थी, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने इस पर अंतरिम रोक लगा दी।
पिछले कुछ समय में जातीय जनगणना राजनीति के केंद्र में बनी हुई है। पिछले दिनों इंडिया गठबंधन की बैठक में भी इसको तवज्जो दिया गया था। इस बीच में हमें जानना जरूरी है कि आखिर जातिगत जनगणना को लेकर एमपी में क्या हुआ है? राज्य में कास्ट सेंसस की घोषणा की वजह क्या है? जातिगत जनगणना को लेकर अलग-अलग राज्यों में क्या हुआ है। कब किसने जनगणना कराई, उसके नतीजे क्या रहे? बिहार में जातिगत जनगणना हो रही है उसका क्या स्टेटस है? राज्य सरकारों को जनणना को लेकर क्या अधिकार है? जातिगत जगनणना के पीछे की राजनीति क्या है?
भोपाल के रविंद्र भवन में रविवार को मध्य प्रदेश पिछड़ा वर्ग संयुक्त मोर्चा के महासम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन में पीसीसी चीफ और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ शामिल हुए। उन्होंने कार्यक्रम में कहा कि मध्य प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी 55% है, भाजपा सरकार जातिगत गणना इसलिए नहीं करा रही कि कहीं उसकी पोल न खुल जाए। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की सरकार बनने पर प्रदेश में जातिगत जनगणना कराई जाएगी, ताकि पता लगाया जा सके कि हमारे समाज में गरीब व्यक्ति कितने हैं। उनकी क्या सहायता की जा सकती है। ताकि पिछड़े वर्ग की जातियों को वास्तविक संख्या का पता चल सके। उन्होंने यह भी कहा कि निजी क्षेत्र में आरक्षण का प्रावधान कराने के लिए नियम बनाए जायेंगे और ओबीसी वर्ग के साथ न्याय किया जायेगा।
मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं। इससे पहले ओबीसी वर्ग को साधने के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों जोर लगा रहे है। इसी कड़ी में कांग्रेस ने राज्य में सरकार बनने पर जातिगत जनगणना कराने की घोषणा कर दी। दरअसल, प्रदेश की 50% से अधिक आबादी ओबीसी वर्ग से आती है। जिसका 125 विधानसभा सीटों पर सीधा प्रभाव है। यही वजह है कि दोनों ही प्रमुख दल ओबीसी वर्ग का खुद को हितैषी बता रहे हैं।
इसके पहले 2019 में कांग्रेस की सरकार बनने पर 27 प्रतिशत आरक्षण लागू कराया गया था। हालांकि, बाद में इस बढ़े हुए आरक्षण पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी।
1951 के बाद से हर जनगणना में जाति सर्वे की मांग उठती रही है। कई राज्यों ने जाति सर्वे या जनगणना का प्रयास भी किया, लेकिन अधिकांश असफल रहे। 2011 में ही कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) को अंजाम देने की योजना बनाई थी। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वेक्षण का कार्य किया और आवास एवं शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय ने शहरी क्षेत्रों में इसका संचालन किया। जाति संरचना के बिना एसईसीसी डेटा 2016 में दो मंत्रालयों द्वारा प्रकाशित किया गया था। जाति डेटा सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को सौंप दिया गया था, जिसने डेटा को वर्गीकृत करने के लिए एक विशेषज्ञ समूह का गठन किया था। हालांकि, अभी तक इस पर कोई रिपोर्ट प्रकाशित या सार्वजनिक नहीं की गई है।
इससे बाद 2014 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सिद्धारमैया सरकार के तहत कर्नाटक ने एक सामाजिक और शैक्षिक सर्वेक्षण का आदेश दिया था। तब सर्वेक्षण का उद्देश्य यह बताया गया कि यह सर्वे 127वें संविधान संशोधन विधेयक के अनुसार, ओबीसी के आनुपातिक आरक्षण पर निर्णय लेने के लिए किया गया था।
रिपोर्टों के अनुसार, यह सर्वे 2015 में अप्रैल और मई के दौरान 1.6 लाख गणनाकारों के साथ किया गया था। एच कंथाराज की अध्यक्षता में कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा आयोजित इस सर्वे में लगभग 1.3 करोड़ घरों को कवर किया गया। रिपोर्टें जून 2016 तक प्रस्तुत की जानी थीं। हालांकि, रिपोर्टें कभी सार्वजनिक नहीं की गईं।
2021 में, तेलंगाना में पिछड़ा वर्ग राज्य आयोग ने पिछड़े वर्गों (बीसी) के बीच जाति संरचना के सर्वे की प्रक्रिया शुरू की। प्राथमिक योजना एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया (एएससीआई), सेंटर ऑफ इकोनॉमिक एंड सोशल स्टडीज (सीईएसएस), ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक्स एंड स्टैटिस्टिक्स और सेंटर फॉर गुड गवर्नेंस जैसी कई विशेषज्ञ एजेंसियों को शामिल करने की थी। हालांकि, इस प्रक्रिया का क्या हुआ, सरकार ने स्पष्ट नहीं किया।
ओडिशा ने भी हाल ही में पिछड़ी जाति समुदायों की शैक्षिक और सामाजिक स्थितियों को समझने के लिए एक मई से अपना जाति-आधारित सर्वे शुरू किया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सर्वे में आजीविका और बुनियादी ढांचे तक पहुंच से जुड़े सवाल पूछे गए हैं। यह प्रक्रिया 27 मई को पूरी हुई। राज्य कल्याण मंत्री जगन्नाथ सरकार की मानें तो यह केवल पिछड़ी जाति समुदायों के लिए आनुपातिक योजनाओं और कार्यक्रमों को सुनिश्चित करने के लिए आयोजित किया गया है।
बिहार सरकार ने दो चरणों में जातीय जनगणना का काम पूरा करने का एलान किया था। पहला फेज जनवरी में पूरा हो गया था। फिर 15 अप्रैल से दूसरे फेज की शुरुआत हुई, जिसे 15 मई तक पूरा होना था। पहले चरण में लोगों के घरों की गिनती की गई। दूसरे चरण में जाति और आर्थिक जनगणना का काम शुरू हुआ। इसमें लोगों के शिक्षा का स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी, गजटेड, नॉन-गजटेड आदि), गाड़ी (कैटेगरी), मोबाइल, किस काम में दक्षता है, आय के अन्य साधन, परिवार में कितने कमाने वाले सदस्य हैं, एक व्यक्ति पर कितने आश्रित हैं, मूल जाति, उप जाति, उप की उपजाति, गांव में जातियों की संख्या, जाति प्रमाण पत्र से जुड़े सवाल पूछे जा गए। दूसरा चरण 15 मई तक चलना था। जिस पर चार मई को पटना हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। इस फैसले के खिलाफ नीतीश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की लेकिन कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। 21 जुलाई को कोर्ट ने कहा पटना उच्च न्यायालय ने सात जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
बिहार सरकार की जातीय जनगणना पर रोक लगाते वक्त पटना हाईकोर्ट ने एक अहम टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था, ‘प्रथम दृष्टया हमारी राय है कि राज्य के पास जाति-आधारित सर्वेक्षण करने की कोई शक्ति नहीं है।’ साथ ही अदालत ने कहा कि जिस तरह से यह अब चलन में है, जो जनगणना की तरह होगा, इस प्रकार संसद की विधायी शक्ति का उल्लंघन होगा।’
वहीं, कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों की राय है कि चूंकि जनगणना प्रक्रिया संघ सूची के अंतर्गत आती है, इसलिए राज्यों को इसे संचालित करने का अधिकार नहीं है। वे केवल जनसंख्या के आंकड़े या डेटा एकत्र कर सकते हैं।
बिहार में जातिगत जनगणना शुरू होने के बाद देश के दूसरे हिस्सों में भी यह मांग तेज हो चली है। कांग्रेस पार्टी ने इस मुद्दे पर दांव चला है। कर्नाटक चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने यूपीए सरकार के समय एकत्रित किए गए जाति जनगणना के आंकड़े सार्वजनिक करने की मांग रख दी। कांग्रेस पार्टी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’, नारा दे दिया है। देश के सबसे बड़े विपक्षी दल की बात करें तो जाति जनगणना के पक्ष में खड़ी पार्टी इसी बहाने विपक्ष को एकजुट करना चाहती है। कांग्रेस को लगता है कि वह अपने इस दांव से सामाजिक न्याय की राजनीति करने वाले दलों को साध सकती है। गौरतलब है कि सपा, बसपा, राजद, जदयू, डीएमके समेत कई दल इसके समर्थन में हैं। नीतीश ने कांग्रेस को विपक्ष का सर्वसम्मत मुद्दा ढूंढने की सलाह दी थी। इसके बाद कांग्रेस अध्यक्ष ने पीएम मोदी को इस संदर्भ में एक पत्र भी लिखा था।