मुजफ्फरनगर निवासी संजीव उर्फ जीवा ने वर्ष 1991 में मुजफ्फनगर में पहला अपराध किया था। तब उसके खिलाफ कोतवाली नगर में मारपीट का केस दर्ज किया गया था। उसके केस में वह दोषमुक्त भी हो चुका था। वर्ष 1991 में किए गए पहले अपराध के बाद संजीव ने अपराध की दुनिया में एक कदम रखा कि फिर वह अपराध के दलदल में डूबता चला गया।
कुख्यात संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा पर गोलियां दागने के लिए हमलावर घात लगाए बैठा रहा। वह वकील के लिबास में था, इसलिए उस पर किसी तरह का शक नहीं हुआ। जैसे ही अपने केस की बारी आते ही जीवा कोर्ट रूम के कटघरे की तरफ चला आरोपी विजय यादव ने उसपर ताबड़तोड़ गोलियां दागनी शुरू कर दीं। पलक झपकते ही जीवा ढेर हो गया। गोलियां रिवॉल्वर से दागी गईं। पुलिस ने छह खोखे बरामद किए है। यानी पूरी रिवाॅल्वर खाली कर दी।
सूत्रों के मुताबिक संजीव के पहुंचने से काफी पहले ही विजय कोर्ट परिसर में पहुंच गया था। काली कोट, हाथों में फाइलें लिए एससी-एसटी कोर्ट रूम के बाहर वह बैठ गया। इससे उस पर किसी को शक नहीं हुआ। कोट के भीतर उसने रिवॉल्वर छिपा रखी थी। संजीव को आता देखते ही वह सक्रिय हो गया। संजीव कोर्ट रूम के भीतर गया तो वह भी पीछे से घुस गया। जैसे ही संजीव के केस की बारी और वह उठकर चला, उसने गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा कोर्ट परिसर गूंज उठा। हर तरफ भगदड़ मच गई।
विजय ने संजीव पर पीछे से गोलियां मारीं। संजीव खून से लथपथ औंधे मुंह गिर गया। भागना तो दूर उसको पीछे मुड़ने तक का वक्त नहीं मिला। अभिरक्षा में तैनात पुलिसकर्मी इधर-उधर भागने लगे। पुलिस जवाबी कार्रवाई तक नहीं कर सकी। पुलिसकर्मी को भी गोली लगी। विजय वारदात को अंजाम देकर तेजी से कोर्ट रूम से निकला और दौड़ने लगा। चूंकि वकीलों की संख्या अधिक थी, इसलिए उसको दबोच लिया।
साजिश के पीछे कोई बड़ा शख्स तो नहीं…
संजीव को मारने के लिए बड़ी साजिश रची गई। आरोपी को पता था कि संजीव की बुधवार को पेशी है। किस कोर्ट में है, यह भी पता था। वह वकील जैसा दिखे इसके लिए बाकायदा यूनिफॉर्म तैयार कराई। इस सबसे साफ है कि साजिश के पीछे कोई बड़ा शख्स है, जिसने विजय को मोहरा बनाकर संजीव का कत्ल कराया। सूत्रों के मुताबिक पहले भी वह एक बार रेकी कर घात लगा चुका था, लेकिन तब वह नाकाम रहा था।
अतीक-अशरफ की तरह मारा
कुछ समय पहले ही प्रयागराज में पुलिस कस्टडी रिमांड पर लिए गए माफिया अतीक अहमद व अशरफ की हत्या कर दी गई थी। कुछ उसी तरह से इस वारदात को भी अंजाम दिया गया। उस वारदात में पत्रकार बनकर वारदात को अंजाम दिया गया था, यहां आरोपी वकील के लिबास में पहुंचा। अतीक व अशरफ भी पुलिस अभिरक्षा में थे, जीवा भी पुलिस अभिरक्षा में कोर्ट में पहुंचा था। वारदात के बाद इसको लेकर सोशल मीडिया पर यह बात चर्चा का विषय बनी रही।
जौनपुर में उस पर सिर्फ एक केस कोविड प्रोटोकॉल उल्लंघन का दर्ज था। उसके पहले आजमगढ़ में किशोरी को भगाने का केस हुआ था, जिसमें वह जेल गया था। बाद में इस केस में समझौता हो गया था। इसके अलावा उस पर कोई भी गंभीर आपराधिक केस दर्ज नहीं है। जानकारी के मुताबिक संजीव से उसका कोई कनेक्शन भी नहीं रहा, ऐसे में उससे किसी तरह की रंजिश की भी आशंका है। इन सभी वजहों से यही आशंका है कि पर्दे के पीछे कोई बड़ा साजिशकर्ता है, जिसके इशारे पर वारदात की साजिश रची गई। जिसको विजय यादव से अंजाम दिलाया गया। अब देखना होगा कि एसआईटी मुख्य साजिशकर्ता तक पहुंचती है या नहीं।
कहीं जेल से तो नहीं संपर्क में आया, इसलिए मुंबई कनेक्शन अहम
किशोरी को भगाने में जब विजय पकड़ा गया था तो आजमगढ़ जेल भेजा गया था। कहीं ऐसा तो नहीं कि जेल में उसकी किसी बड़े आपराधी के संपर्क में वह आया हो और अपराध की दुनिया में कदम रखा। दूसरी तरफ विजय तीन साल तक मुंबई में रहा। जौनपुर के एक पूर्व सांसद का मुंबई का गहना कनेक्शन रहा है। ऐसे में आशंका ये भी है कि विजय कहीं इन्हीं के संपर्क में तो नहीं था। ये सभी अलग-अलग पहलू हैं। जिन पर तफ्तीश होगी। जांच के बाद ही सभी तथ्य सामने आएंगे।
आखिर बुलेट प्रूफ जैकेट क्यों नहीं पहनी थी
वारदात की जानकारी पर संजीव की बहन मोर्चरी पहुंची। उन्होंने बताया कि हर पेशी पर संजीव को बुलेटप्रूफ जैकेट पहनाकर ले जाया जाता था। पिछले दो बार से उसे जैकेट नहीं पहनाई जा रही थी। उनका आरोप है कि ये साजिश की ओर इशारा करता है। सवाल है कि आखिर ऐसा क्यों किया गया।
मुन्ना बजरंगी के बाद संजीव का अंत
मुख्तार के दो सबसे करीबी शूटर थे। ये हथियारों की डीलिंग भी करते थे। जिसमें मुन्ना बजरंगी व संजीव शामिल थे। दोनों उसके मजबूत हाथ थे। मुन्ना पहले ही बागपत जेल में मारा जा चुका है। अब संजीव भी मार दिया गया। पुलिस मुन्ना बजरंगी की हत्या करने वाले सुनील राठी गैंग से कनेक्शन को लेकर पड़ताल कर रही है।
वादी के अनुसार, पिंटू ने उसे और अपने दोस्त नितिन को बताया था कि उसकी एक ज़मीन बाराबंकी के पलहरी में है। उस जमीन पर संजीव उर्फ जीवा के आदमी ताम्रध्वजानंद ने फर्जी तरीके से बैनामा करवा लिया है, इस संबंध में पिंटू ने बाराबंकी कोतवाली में रिपोर्ट दर्ज करवाई थी। मुकदमे को वापस लेने और जमीन उसके नाम करने को लेने के लिए संजीव के लोग लगातार धमकी दे रहे थे। इस हत्या कांड के बाद पुलिस ने मामले की विवेचना की और चार्जशीट दायर की थी। अभियोजन की ओर से लगभग सभी गवाहियां हो चुकी हैं। मामले के विवेचक रहे तत्कालीन सीओ गोमतीनगर सत्यसेन की गवाही चला रही थी।
वर्ष 1991 में किया था पहला अपराध
मुजफ्फरनगर निवासी संजीव उर्फ जीवा ने वर्ष 1991 में मुजफ्फनगर में पहला अपराध किया था। तब उसके खिलाफ कोतवाली नगर में मारपीट का केस दर्ज किया गया था। उसके केस में वह दोषमुक्त भी हो चुका था। पुलिस रिकॉर्ड बताते हैं कि संजीव के खिलाफ मुजफ्फरनगर में 17, उत्तराखंड में 5, गाजीपुर जनपद में एक, फर्रुखाबाद जनपद में एक और लखनऊ में एक कुल 25 मामले दर्ज हैं।
एके-47 कनेक्शन
पश्चिमी यूपी में तैनात रहे एक अधिकारी ने बताया कि संजीव अपराध की दुनिया में आने से पहले एक दवाखाने में काम करता था। सबसे पहले वह उत्तराखंड के नाजिम गैंग के लिए काम करने लगा। कुछ दिन उसने सतेंद्र बरनाला गैंग के लिए काम किया और फिर मुन्ना बजरंगी का हाथ थाम लिया और मुख्तार अंसारी का करीबी हो गया। संजीव उर्फ जीवा हथियारों का डीलिंग का काम मुख्तार के लिए करता था। बताया जाता है कि कृष्णानंद राय हत्याकांड में इस्तेमाल की गई एके-47 जीवा ने ही जुटाई थी। हालांकि इस हत्याकांड में वह बरी हो गया था।
हाई सिक्योरिटी बैरक में था
संजीव पिछले दो दशक से सलाखों के पीछे है। उसको भाजपा नेता ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड व हरिद्वार के एक हत्या के केस में सजा हा चुकी थी। 2019 में वह मैनपुरी से लखनऊ जेल शिफ्ट किया गया था। तब से वह लखनऊ जेल में बंद था। उसको हाई सिक्योरिटी बैरक में रखा गया था।
पिता का नाम- ओमप्रकाश माहेश्वरी
मूल पता- मुजफ्फरनगर प्रेमपुरी
अस्थाई पता- सोनिया विहार दिल्ली
मां- कुंति
पत्नी- पायल माहेश्वरी
भाई- राजीव माहेश्वरी
बहन- पूनम, सुमन
पुत्र- तुषार, हरिओम, वीरभद्र
पुत्री- आर्य
– संजीव उर्फ जीवा का गैंग संख्या- आईएस -01 जो 9 सितंबर 2019 में पंजीकृत किया गया था।
– संजीव के गैंग में कुल सक्रिय सदस्य 10 हैं और 26 सहयोगी हैं।
– संजीव उर्फ जीवा पर दर्ज मुकदमों की संख्या-25।
– अपराधिक मुकदमों की प्रकृति- हत्या, लूट, डकैती, अपहरण, रंगदारी, जालसाली।
– राजनैतिक संबंध- मुख्तार अंसारी का सहयोगी।
– संजीव के पास मौजूद असलहे- दोनाली बंदूक और पिस्टल।
– गैंगस्टर एक्ट के तहत पुलिस संजीव उर्फ जीवा की चार करोड़ की संपत्ति जब्त कर चुकी है।
कोर्ट परिसर सुरक्षाकर्मियों से भरा रहता है। गेट से लेकर पूरे परिसर कोर्ट रूम तक सुरक्षाकर्मी तैनात रहते हैं। बुधवार को भी ये सुरक्षाकर्मी मौजूद थे। लेकिन, इतनी बड़ी वारदात का होना साबित करता है कि ये सभी सुरक्षाकर्मी ड्यूटी के नाम पर सिर्फ खानापूरी करते हैं। ये भी सवाल है कि वहां लगी डोर मैटल डिटेक्टर मशीनें भी लगी हैं। सवाल है कि जब विजय के पास असलहा था तो उसमें वह क्यों नहीं पकड़ा गया। जानकारी के मुताबिक कई मशीनें खराब भी हैं। सिर्फ शोपीस की तरह लगी हैं। वैसे भी कोर्ट परिसर में किसी का भी बेरोकटोक आना जाना लगा रहता है। सुरक्षाकर्मी किसी से न कोई पूछताछ करते हैं और न ही कोई चेकिंग होती है।
इसे लेकर सबसे अधिक आक्रोशित थे अधिवक्ता
वारदात के बाद वकील पुलिस के रवैये से बेहद आक्रोशित थे। उनका कहना था कि पुलिसकर्मियों के सामने एक हमलावर ने वारदात को अंजाम दिया और एक भी पुलिसकर्मी जवाबी कार्रवाई नहीं कर सका। उनका यह भी आरोप था कि सुरक्षाकर्मी तैनात रहे और विजय रिवाॅल्वर लेकर कोर्ट रूम तक पहुंच गया। ऐसा कैसे हुआ। साफ है कि इसमें पुलिसकर्मियों की बड़ी लापरवाही रही है। कहीं ऐसा तो नहीं कि उसको कोर्ट रूम तक पहुंचाने में किसी ने साथ दिया हो। ये सभी तथ्य एसआईटी की जांच के बाद स्पष्ट हो सकेंगे।
कमिश्नरेट पुलिस पर सवालिया निशान
कोर्ट परिसर की सुरक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी कमिश्नरेट पुलिस की है। कमिश्नरेट में वरिष्ठ पुलिस अफसर तैनात हैं। एडीजी रैंक के पुलिस कमिश्नर, दो ज्वाॅइंट पुलिस कमिश्नर के अलावा प्रत्येक जोन में एसपी रैंक के डीसीपी तैनात हैं। कोर्ट परिसर वीआईपी एरिया में है। इसके बावजूद इतनी बड़ी वारदात को अंजाम दिया गया। ये पुलिस के इकबाल पर सवाल है।मुजफ्फरनगर निवासी संजीव उर्फ जीवा ने वर्ष 1991 में मुजफ्फनगर में पहला अपराध किया था। तब उसके खिलाफ कोतवाली नगर में मारपीट का केस दर्ज किया गया था। उसके केस में वह दोषमुक्त भी हो चुका था। वर्ष 1991 में किए गए पहले अपराध के बाद संजीव ने अपराध की दुनिया में एक कदम रखा कि फिर वह अपराध के दलदल में डूबता चला गया। पुलिस रिकार्ड बताते हैं कि संजीव के खिलाफ मुजफ्फरनगर में 17, उत्तराखंड में 5, गाजीपुर जनपद में एक, फर्रूखाबाद जनपद में एक और लखनऊ में एक कूल 25 मामले दर्ज हैं। पश्चिमी यूपी में तैनात रहे एक अधिकारी ने बताया कि संजीव अपराध की दुनिया में आने से पहले एक दवाखाने में काम करता था। इसके बाद उसने अपराध करना शुरु किया और उत्तराखंड के नाजिम गैंग के लिए काम करने लगा। कुछ दिन उसने सतेंद्र बरनाला गैंग के लिए काम किया और उसने मुन्ना बजरंगी का हाथ थाम लिया और वहीं से मुख्तार अंसारी का करीबी हो गया। पुलिस सूत्रों की मानने तो संजीव उर्फ जीवा हथियारों का डीलिंग का काम मुख्तार के लिए किया करता था।