इलाहाबाद हाईकोर्ट न पारिवारिक विवाद पर सुनवाई करते हुए थानों में दर्ज होेने वाली एफआईआर को लेकर अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा कि एफआईआर कोई पोर्न साहित्य नहीं है, जहां चित्रमय विवरण प्रस्तुत किया जाए। कोर्ट ने एफआईआर दर्ज कराते समय भाषा की मर्यादा को बनाए रखने के लिए अधिवक्ताओं की भूमिका को भी रेखांकित किया है। इसके साथ ही कहा कि पारिवारिक विवादों को निस्तारित करने के लिए मामलों को पहले गठित होने वाली परिवार कल्याण समितियों के पास भेजा जाए।
इसके साथ ही कूलिंग पीरियड (एफआईआर दर्ज होने के बाद दो महीने का समय) के दौरान गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। कोर्ट ने हाईकोर्ट के महानिबंधक को निर्देश दिया है कि वह कोर्ट के आदेश की कॉपी को उत्तर प्रदेश सरकार, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव कानून, जिला न्यायालयों को भेजेंगे। कहा है कि जिससे परिवार कल्याण समितियां गठित होकर तीन महीने में काम शुरू कर दें। यह आदेश न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी ने हापुर जिले के साहिब बंसल, मंजू बंसल और मुकेश बंसल की पुनर्विचार याचिका पर एक साथ निस्तारित करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि परिवार कल्याण समिति के पास उन्हीं मामलों को भेजा जाएगा जिसमें सजा की अवधि 10 साल से कम होगी। कोर्ट ने कहा कि यह परिवार कल्याण समिति जिले के भौगोलिक आकार या जनसंख्या के आधार पर कम से कम एक होगी और जरूरत के हिसाब से उसे बढ़ाई जा सकती है। इसमें कम से कम तीन सदस्य होंगे। इसके गठन और कार्य की समीक्षा उस जिले के जिला एवं सत्र न्यायाधीश या प्रधान न्यायाधीश परिवार न्यायालय द्वारा समय-समय पर की जाएगी।
समिति में पांच साल तक प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ता या मध्यस्थता केंद्र से एक युवा मध्यस्थ या अकादमिक रिकॉड रखने वाला और सार्वजनकि उत्साही इसके सदस्य होंगे। इसके अलावा सामाजिक कार्यकर्ता, सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी, वरिष्ठ न्यायिक या प्रशासनिक अधिकारियों की शिक्षित पत्नियां भी इसमें शामिल होंगी। समिति के सदस्यों को कभी भी गवाह के रूप में नहीं बुलाया जाएगा।
चिकित्सकीय रिपोर्ट, बयान आदि का लेना।
कोर्ट ने परिवार कल्याण समिति के सदस्यों को प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी विधिक सेवा सहायता समिति को सौंपी है, जो सदस्यों को बुनियादी प्रशिक्षण देगी। कोर्ट ने कहा कि पार्टियों में समझौता होने के बाद जिला न्यायाधीश मामले को समाप्त कर सकेंगे।
मामला हापुर जिले के पिलखुआ थाने का है। शिवांगी बंसल ने अपने पति साहिब बंसल, सास मंजू बंसल, ससुर मुकेश बंसल, देवर चिराग बंसल और ननद शिप्रा जैन पर मारपीट करने, यौन उत्पीड़न और दहेज अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया था। मामले में जांच के दौरान आरोप बेबुनियाद पाए गए थे। जिसमें सत्र न्यायालय ने फैसला सुनाया था। याचियों ने सत्र न्यायालय केफैसले के खिलाफ यह पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने सुनवाई कर याचिकाओं को खारिज कर दिया और मामले में तीन मुद्दों पर नए निर्देश जारी किए।