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देशों पर आर्थिक दबाव बनाना चीन का पुराना तरीका, विस्तारवाद के खिलाफ एकजुट हुए दुनिया के ताकतवर देश

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वामपंथी शासन को कामगारों के लिए स्वर्ग होना चाहिए लेकिन हकीकत इससे बहुत अलग है। चीन, जो वैश्विक फैक्ट्री का दर्जा रखता है, वहां कामगारों के अधिकारों का हनन एक आम बात हो गई है। साथ ही चीन जबरन आर्थिक दबाव बनाकर विदेशों में अपनी विस्तारवादी नीति को बढ़ा रहा है।

आर्थिक ताकत से बना रहा दबाव
चीन अपनी आर्थिक ताकत को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। बीते दिनों ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और लिथुआनिया से नाराज होकर चीन ने जिस तरह से उन पर आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंध लगाए, उससे यह साफ हो गया कि चीन व्यापार को हथियार की तरह इस्तेमाल करता है।

बता दें कि जापान के हिरोशिमा में बीती 20 मई को जी-7 देशों की बैठक हुई थी। इस बैठक में सदस्य देशों ने चीन के आर्थिक दबाव बनाने की नीति के खिलाफ मत बनाने का फैसला किया। जी-7 देशों ने बयान जारी कर कहा कि हम अपनी रणनीति और समन्यवय को मजबूत करने के लिए अतिरिक्त कदम उठा रहे हैं। विभिन्न देशों पर चीन की तरफ से पड़ रहे आर्थिक दबाव से निपटने के लिए भी कदम उठाने पर सहमति बनी। बता दें कि हाल ही में चीन ने लॉकहीड मार्टिन और रेथियोन जैसी दिग्गज कंपनियों पर भी आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे क्योंकि उन्होंने ताइवान को हथियारों की बिक्री की थी।

चीन पर कामगारों के अधिकारों के हनन का भी आरोप लगा
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया प्रेस की एक स्टडी में खुलासा हुआ है कि चीन में कामगारों के अधिकारों का हनन किया जा रहा है। चीन में बड़े पैमाने पर मजदूरों को एक जगह से दूसरी जगह काम के लिए ले जाया जा रहा हैऔर इसके जरिए तिब्बत जैसी जगहों पर चीन के मूल निवासियों को बसाया जा रहा है और तिब्बत के लोगों को अन्य जगहों पर भेजा जा रहा है। चीन के शिनजियांग प्रांत में बड़े पैमाने पर कपास का उत्पादन होता है, इसके जरिए मजदूरों का शोषण किया जा रहा है।

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