मेरे पति मुझसे कहते थे…मैं तुम्हें हमेशा अपनी नजरों के सामने रखना चाहता हूं, अपने बच्चों को हमेशा खेलते हुए देखना चाहता हूं, अगर, मैं तुम्हारे सामने कल न रहूं तो मेरी लाश को जलाना मत। बल्कि मेरे आंगन में दफना देना। मेरी आत्मा को तभी शांति मिलेगी।
लोग तुम्हें ऐसा करने से रोकेंगे। लेकिन, तुम बस मेरी बात याद रखना…अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं हमेशा परेशान रहूंगा। इसीलिए मैंने अपने पति को उनके जाने के बाद अपने पास ही रखा है। उनकी कब्र को आंगन में ही बना लिया है। मैं रोज उनकी पूजा भी करती हूं। मैंने कब्र के चारों ओर पेड़ भी लगाए हैं, जिससे कोई उस पर पैर न रखे। ये कहना है कौशांबी में रहने वाली पूजा का।
पूजा का कहना है, उनके पति करन को एक गंभीर बीमारी थी। जो उन्होंने सबसे छुपाकर रखी थी। उनको पता था उनका जीवन बहुत दिनों का नहीं है। साथ ही न उनके पास इतना पैसा है, जो वो अपना इलाज करवा सकें। मेरे पति अपने परिवार से बहुत प्यार करते थे। होली के दिन उन्होंने कमरा बंद करके सुसाइड कर लिया। वो भी पूरे परिवार के सामने…
आगे की कहानी पढ़ने से पहले पूरी घटना जानें-
बता दें, कौशांबी के मंझनपुर कस्बे के गांधी नगर निवासी करन ने 8 मार्च को अपने घर में सुसाइड कर लिया था। कुछ समय पहले ही करन के भाई ने भी दिल्ली में सुसाइड कर लिया था। ऐसा बताया जा रहा है कि करन के घर के पुरुषों को एक जेनेटिक बीमारी है।
जिसके कारण उसके पिता की मौत हो गई थी। वहीं अब दोनों भाइयों ने भी बीमारी से परेशान होकर सुसाइड कर लिया है। परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि बीमारी का इलाज हो सके। परिवार से खास जुड़ाव होने के कारण करन ने खुद को घर में ही दफन करने के लिए पत्नी से 1 महीने पहले ही बोल दिया था।
पैसों की कमी थी लेकिन परिवार का सपोर्ट रहता था
करन की पत्नी पूजा बताती हैं, हमारी शादी 2013 में हुई थी, मैं फतेहपुर की रहने वाली हूं। मेरे ससुर सुरेश चंद्र पैतृक गांव कोखराज कोतवाली के गरीब का पुरवा में रहते हैं। वहीं सास चंदा देवी प्रयागराज में किसी प्राइवेट संस्थान में काम करती हैं। घर में पैसों की कमी है, इसलिए सभी लोग कुछ न कुछ काम करते हैं। मैं भी खेतों में काम करने भी जाती हूं।
मैं अपने पति और 2 बच्चों के साथ यहां कौशांबी में ही रहती थी। पति निजी अस्पताल में सफाई कर्मी थे। शादी के बाद मेरी जिंदगी बहुत अच्छी चल रही थी। पैसों की कमी रहती थी, लेकिन परिवार और पति दोनों का पूरा सपोर्ट था। हम लोग सब कुछ मिलकर कर इंतजाम कर लेते थे। मेरे पति मेरा बहुत ध्यान रखते थे। वो मुझसे बहुत प्यार करते थे। मेरी थोड़ी सी तबीयत खराब होने पर खुद घर का सारा काम कर दिया करते थे।
अचानक से मेरे पति मुझसे दूर-दूर रहने लगे
लेकिन कुछ सालों से मेरे पति का नेचर कुछ बदल गया था। वो मुझसे कम बोलते। उन्होंने मुझे बाहर घुमाना भी बंद कर दिया था। घर में भी साथ नहीं बैठते थे। मैंने इसको लेकर उनसे बात की। जिस पर उन्होंने मुझसे कहा, बच्चे बड़े हो रहे हैं। पैसों की ज्यादा जरूरत पढ़ती है। उनकी पढ़ाई-लिखाई का सामान भी बहुत महंगा है। इन्हीं सब की चिंता में मैं परेशान रहता हूं।
उनकी बात सुनकर मैं उनसे कहा, हम लोग मिलकर सब कर लेंगे। आप परेशान न हों। लेकिन इन सबके बाद भी उनका नेचर वैसा ही थी। वो मुझसे हमेशा कटे-कटे रहते थे। कहीं साथ में जाते भी नहीं थे। कई-कई दिन तक तो वो वापस घर भी नहीं आते थे। मैं उनसे ज्यादा पूछती तो वो गुस्सा होने लगते। मैंने अपनी सास से ये बात बताई लेकिन उन्होंने ने भी मुझे ही समझा दिया।
उस दिन हम लोग आखिरी बार साथ में घूमने गए थे
लगभग 1 महीने पहले करन घर में खाना खा रहे थे। वो ज्यादा बात नहीं करते थे इसलिए मैं उनसे ज्यादा कुछ पूछती नहीं थी। लेकिन उस दिन उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया। उन्होंने मुझसे कहा, मैं तुमसे और अपने बच्चों से बहुत प्यार करता हूं। चाहता हूं हमेशा तुम लोग मेरी नजरों के सामने रहो। एक बात कहूं, बुरा न मानना…अगर कल को मैं मर जाऊं, तो मुझे जलाना मत, अपने घर के आंगन में ही दफना देना। मेरी ये इच्छा तुम जरूर पूरी करना।
अपने पति की बात सुनकर मैं उन पर चिल्लाने लगी। मैंने कहा, आप कहां जा रहे हो जो मुझसे ये सब बोल रहे हो। हम हमेशा साथ रहेंगे। आप ऐसी बातें मुझसे कभी मत करना। जिसके बाद मेरी पति हंसने लगे। उन्होंने मुझसे कहा, चलो हम लोग बच्चों के साथ आज घूमने चलेंगे। उसके बाद हम सभी लोग बाहर गए। लेकिन तब ये नहीं पता था कि ये दिन फिर कभी नहीं आएगा।
होली के दिन पहले रंग खेला फिर फांसी लगा ली
पूजा ने आगे बताया, “5 मार्च को उसकी बहन रंजना की शादी थी। शादी में करन भी गए थे। उसके बाद से वो घर में ही थे। होली थी तो घर में उसकी तैयारी चल रही थी। होली की सुबह करन ने चाय पी। बच्चों के साथ होली भी खेली। उसके बाद मैंने उनसे नहाने के लिए कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। घर में मेरी सास भी थी। वो उन्हीं के साथ बैठकर खाना खाने लगीं।
दोपहर करीब 3 बजे…करन बहुत तेज-तेज मेरा और बच्चों का नाम चिल्लाते हैं। हम लोग दौड़कर कमरे की ओर पहुंचते हैं, लेकिन कमरा अंदर से बंद होता है। जब हम लोग खिड़की से अंदर झांकते हैं तो देखते हैं करन फांसी का फंदा पकड़े खड़े होते हैं। वो हम लोगों से बोलते हैं, मैं मरना नहीं चाहता लेकिन मेरी बीमारी मुझे खाई जा रही है। मैं नहीं चाहता इसका असर मेरे परिवार पर पड़े इसलिए जान दे रहा हूं।
इस बीमारी के साथ मैं और नहीं जी सकता। उन्होंने मुझसे कहा- तुम मेरी इच्छा जरूर पूरी करना। उस दिन पहली बार उन्होंने हमें अपनी बीमारी के बारे में बताया था। हम लोग रोते रहे चीखते रहे, उनको बहुत मना किया, दरवाजा तोड़ने की कोशिश की लेकिन वो उस फंदे से लटक गए और देखते-देखते उनकी जान चली गई।
मैंने अकेले अपने पति को कब्र में लेटाया
पूजा सिसकते हुए बोलती हैं, मेरे लिए आसान नहीं था सबसे लड़ना, सबका विरोध करना। लेकिन मैंने अपने पति की इच्छा पूरी की। गांव के लोग जब मौके पर आए तो उन्होंने मेरे पति को बाहर निकाला। वो लोग उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहे थे। लेकिन मैंने सबको रोक दिया। मैंने कहा मेरे पति मेरे साथ इसी घर में रहेंगे। उनकी यही इच्छा है।
मेरी बात सुनकर सबने मेरा बहुत विरोध किया। लेकिन मैं अपनी बात पर अड़ी रही। गुस्सा होकर लोग मेरे घर से चले गए। मैंने और मेरी सास ने ही आंगन में फावड़े से गड्ढा किया। उसके बाद किसी तरह अपने पति को सफेद चादर में लपेट कर उसमें लेटा दिया।
फिर गड्ढे को ढक दिया। जब से मैंने अपने पति को दफनाया है गांव के लोग मुझसे बात नहीं करते। उल्टी सीधी बातें बोलते हैं लेकिन मुझे इस बात की खुशी है कि मैं उनकी इच्छा पूरी कर सकी।