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काशी के वेदांत ने ली तस्वीर; सौर मंडल से बाहर चला गया था यह धूमकेतु

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वाराणसी में 10वीं कक्षा के छात्र और युवा एस्ट्रोनॉमर वेदांत पांडेय ने एक दुर्लभ धूमकेतु (कॉमेट या पुच्छल तारा ) C-2-22E3 ZTF की तस्वीर खींची है। इस धूमकेतु को ग्रीन कॉमेट कहा जा रहा है। वेदांत ने टेलीस्कोप में एडॉप्टर से मोबाइल को जोड़कर कुछ अच्छी तस्वीरें निकाली है। इस धूमकेतु का रंग हरा है और एक लंबी सी पूंछ है। आज कल रात में 10 बजे से 1 बजे तक आसमान में देखा जा रहा है। आज भी रात में 10 से 1 बजे तक ग्रीन कॉमेट का नजारा आसमान में ले सकते हैं। वेदांत ने बताया कि धूमकेतु को फोन की स्क्रीन पर दिखाना आसान नहीं था।

नासा के नियमों के मुताबिक ही फोटो ली गई है। इस फोटो के लिए वेदांत कड़कड़ाती ठंड में टेलीस्काेप लेकर करीब 4 घंटे तक छत पर खड़े रहे। काफी देर तक एंगल बनाने के बाद पूंछों वाली फोटो मिली। इस तरह की फोटो नासा या फिर बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों के ही हाई टेक कैमरे ही ले जाती हैं।

अपने घर की छत से टेलीस्कोप से तस्वीरें लेता वेदांत।
अपने घर की छत से टेलीस्कोप से तस्वीरें लेता वेदांत।

इस धूमकेतु का ऑर्बिट काफी बड़ा

BHU के खगोल वैज्ञानिक प्रो. अभय कुमार ने बताया कि यह कॉमेट 50 हजार साल बाद हमें देखने को मिला। अब उतना पहले का कोई रिकॉर्ड तो होगा नहीं, मगर आगे यह कब नजर आएगा इसका पता नहीं। दरअसल, यह कॉमेट आकाश में सूर्य का चक्कर लगाता है। इसका ऑर्बिट इतना ज्यादा बड़ा है कि यह हमारे सौर मंडल की सीमाओं को भी क्रॉस कर जाता है। इस बार यह अपने सौर मंडल और पृथ्वी के पास से गुजर रहा है।

वेदांत ने बताया कि ग्रीन कॉमेट की इस तरह की साफ तस्वीर लद्दाख या पॉल्यूशन फ्री वाले जगहों से ही ली जा सकती है।
वेदांत ने बताया कि ग्रीन कॉमेट की इस तरह की साफ तस्वीर लद्दाख या पॉल्यूशन फ्री वाले जगहों से ही ली जा सकती है।

क्यों दिखता है हरा रंग

इस धूमकेतु का हरा रंग सोलर विंड और कॉमेट के पत्थरों के टकराने की वजह से बन रहा है। प्रो. अभय ने कहा कि जब कॉमेट के ये पत्थर सोलर विंड से टकराते हैं तो काॅर्बन मोनो ऑक्साइड और कॉर्बन डाईक्साइड बनता है। इसी की वजह से इस धूमकेतु का रंग हरा-हरा नजर आता है। धरती के बनने में इन कॉमेट्स का महत्व काफी ज्यादा है।

एस्ट्रोनॉट बनने का है सपना

वेदांत की उम्र महज 16 साल है। वह वाराणसी के सरायनंदन स्थित ग्लोरियस पब्लिक स्कूल में पढ़ाई करते हैं। वेदांत के पिता जितेंद्र बिजनेस मैन हैं। वह खोजवां में रहते हैं। पिछले साल ही माता का निधन हो गया था। घर में दो बहने हैं। वेदांत ने बताया, मेरा बचपन से ही खगोल में इंट्रेस्ट था। एस्ट्राेनॉट बनने का सपना देखता हूं। नासा की वेबसाइट से जानकारियां लेता रहता हूं। एक दिन नासा की वेबसाइट पर मुझे इस कॉमेट के बारे में जानकारी मिली थी। 28 जनवरी से मैं इस कॉमेट की तलाश में लग गया था। कई बार फोटो नहीं ले सका। इसके बाद एडॉप्टर से अटैच कर फोटो लेने में दिक्कत नहीं आई।

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